PGI में ब्रेन डैड मरीज ने दी 3 लोगों को नई जिंदगी, 2 को मिली रोशनी

Edited By Priyanka rana,Updated: 05 Sep, 2019 10:21 AM

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पी.जी.आई. में एक ब्रेन डैड मरीज की बदौलत कई जरूरतमंद मरीजों को जिंदगी मिल पाई है।

चंडीगढ़(पाल) : पी.जी.आई. में एक ब्रेन डैड मरीज की बदौलत कई जरूरतमंद मरीजों को जिंदगी मिल पाई है। इस माह का यह दूसरा ब्रेन डैड केस है। 65 साल की रतनी 9 दिन से वेंटीलेटर पर थी। 

दयालपुर जालंधर की रहने वाली रतनी 24 अगस्त को एक फंक्शन में गई थी, जहां उनकी चुन्नी पंखे में फंस गई। दम घुटने की वजह से उसे तुंरत डी.एम.सी. लुधियाना ले जाया गया। हालत ज्यादा खराब होने के कारण रतनी को 25 अगस्त को पी.जी.आई. रैफर कर दिया गया था। यहां आने के बावजूद उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हो पा रहा था। 

डॉक्टरों ने सभी प्रोटोकॉल को देखते हुए बुधवार को रतनी को ब्रेन डैड डिक्लेयर कर दिया। फैमिली ओर्गन डोनेशन को लेकर काफी अवेयर थी। कोर्डिनेटर ने जब उनसे ओर्गन ड़ोनेट की तो बेटा देस राज, बहू गुरप्रीत कौर, बेटी कुलविंदर कौर इसके लिए राजी हो गए। बेटे देसराज ने कहा कि उम्मीद है कि हमारे इस कदम से कईयों को अपने मां-बाप नहीं खोने पड़ेंगे। 

22 लिवर शेयर कर चुका है पी.जी.आई. 
रतनी के लीवर का मैचिंग रिसिपिंयट न मिल पाने के कारण इसे जयपुर के एन.आई.एम.एस. अस्पताल से शेयर किया गया है। यह 22वां लीवर था, जिसे पी.जी.आई. ने किसी बाहरी अस्पताल से शेयर किया है। 

वहीं पी.जी.आई. में अब तक 50 लीवर ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं। वहीं बाकी के ऑर्गन पी.जी.आई. में ही मरीजों में ट्रांसप्लांट किए गए हैं, जिसमें किडनी व कॉर्निया शामिल है, जिनकी बदौलत 3 लोगों को जिंदगी व 2 लोगों को आंखों की रोशनी मिल पाई है।

18 मिनट में 15 कि.मी. का सफर किया कवर :
किसी भी ऑर्गन को बॉडी से निकालने के बाद उसे कुछ घंटों तक ही यूज किया जा सकता है। ऐसे में ऑर्गन को दूसरे अस्पतालों तक जल्द पहुंचाना और मरीज में ट्रांसप्लांट को पूरा करना अपने आपमें एक बड़ी चुनौती है। पी.जी.आई. से मोहाली एयरपोर्ट तक ग्रीन कोरिडोर बनाया गया। 

18 मिनट में 15.390 किलोमीटर को कवर करते हुए लीवर को पहुंचाया गया। ट्रैफिक पुलिस इंस्पैक्टर श्री प्रकाश कहते हैं कि यह हमारी तरफ से एक छोटी सी कोशिश थी कि डोनर की फैमिली का इतना बड़ा फैसला व्यर्थ न जाए।

टाइम के साथ थी रेस :
पी.जी.आई. रोटो डिपार्टमैंट के नोडल ऑफिसर डा. विपिन कौशल कहते हैं कि इस तरह के मामलों में टाइम के साथ रेस होती है ताकि जल्द से जल्द ऑर्गन पहुंचाए जा सकें। इतने मुश्किल वक्त में फैमिली का फैसला आसान नहीं होता। उनके भरोसे को पूरा करना भी एक अहम जिम्मेदारी है। सभी स्टाफ व डाक्टरों की कोशिशों से इस ट्रांसप्लांट को पूरा किया जा सका है। 

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