Edited By ,Updated: 15 Nov, 2015 02:10 PM
विज्ञानेनात्मानं सम्पादयेत्।
ज्ञान से राजा अपनी
विज्ञानेनात्मानं सम्पादयेत्।
ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
केवल ज्ञान प्राप्त कर लेना ही सब कुछ नहीं है। राजा को चाहिए कि उत्तम ज्ञान प्राप्त करके वह अपनी आत्मा अर्थात् अपने स्वभाव, विचार, व्यवहार और आचरण से प्रजा को प्रसन्न करे। राज्य का संचालन आंखें बंद करके नहीं करना चाहिए। राजा को अपनी आंखें सब दिशाओं में खुली रखनी चाहिएं।