Edited By Jyoti,Updated: 31 May, 2018 09:40 AM
ऋषि आयोद धौम्य के दूसरे शिष्य का नाम उपमन्यु था। आचार्य ने उसको गाय चराने का काम सौंपा। वह गाय चराने लगा। एक दिन ऋषि आयोद धौम्य ने उपमन्यु से पूछा कि तुम हट्टे-कट्टे कैसे लग रहे हो?
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ऋषि आयोद धौम्य के दूसरे शिष्य का नाम उपमन्यु था। आचार्य ने उसको गाय चराने का काम सौंपा। वह गाय चराने लगा।
एक दिन ऋषि आयोद धौम्य ने उपमन्यु से पूछा कि तुम हट्टे-कट्टे कैसे लग रहे हो? उपमन्यु ने कहा कि मैं भिक्षाटन कर पेट भर लेता हूं। तब ऋषि ने कहा कि तुम्हें भिक्षा मेरे पास लानी चाहिए। अब उपमन्यु भिक्षा से प्राप्त अन्न ऋषि को देते, ऋषि उसे रख लेते।
कुछ दिनों के पश्चात गुरु ने उपमन्यु से पूछा, ‘‘भिक्षा के बगैर भी तुम्हारी सेहत बनी हुई है, कैसे?’’ उपमन्यु ने गाय का दूध पीने की बात बताई।
गुरु ने कहा, ‘‘दूध पर बछड़ों का हक होता है।’’
कुछ दिन बाद फिर आचार्य ने पूछा, ‘‘अब भी तुम्हारी सेहत कैसे बेहतर है?’’
उपमन्यु ने कहा कि दूध पीने के बाद बछड़े जो फेन उगलते हैं उसका सेवन करता हूं। आचार्य ने इसके लिए भी मना कर दिया। उसके बाद उपमन्यु ने भूख से विवश होकर आक के जहरीले पत्ते खा लिए जिससे वह अंधा होकर एक कुएं में गिर गया।
उसे खोजते हुए आचार्य अन्य शिष्यों के साथ कुएं के पास पहुंचे तो उपमन्यु मिला। आचार्य ने उसको देवताओं के चिकित्सक अश्विनी कुमार की स्तुति की सलाह दी। उपमन्यु ने अश्विनी कुमार की स्तुति की।
अश्विनी कुमार ने प्रकट होकर उपमन्यु को एक फल दिया लेकिन उपमन्यु ने कहा, ‘‘मैं आचार्य की अनुमति के बगैर यह फल नहीं खा सकता।’’
अश्विनी कुमार बोले, ‘‘आचार्य के आदेशों ने ही तो तुम्हारी यह दशा की है। फिर भी तुम आचार्य की अनुमति के पीछे पड़े हो?’’
उपमन्यु ने विचलित हुए बिना कहा, ‘‘आचार्य की आज्ञा मेरे लिए सर्वोपरि है।’’
तभी दिव्य वाणी सुनाई पड़ी, ‘‘बेटा, तुम्हारी परीक्षा पूर्ण हुई। तुमने अपनी पात्रता साबित कर दी। तुम मेरी सभी विद्या के अधिकारी हो।’’
उपमन्यु ने नजरें उठाईं तो देखा सामने आचार्य खड़े मुस्कुरा रहे थे।
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