कालभैरव जयंती: जानें, इस दिन का खास महत्व

Edited By Lata,Updated: 18 Nov, 2019 09:33 AM

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हिंदू पंचांग के अनुसार कालभैरव का पर्व मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू पंचांग के अनुसार कालभैरव का पर्व मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है और ये दिन 19 नवंबर दिन मंगलवार का मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव के स्वरूप कालभैरव की पूजा की जाती है। बता दें कि इनके दो रूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है तो वहीं दूसरा काल भैरव आपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है। इनका वाहन कुत्ता है तो इस दिन काले कुत्ते का पूजन करना बहुत जरूरी होता है। 
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शास्त्रों के अनुसार इनकी पूजा करने से व्यक्ति के घर से व उसके आस-पास की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इसके साथ ही किसी तरह के जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से होने वाला भय दूर हो जाता है। जो शिव भक्त शंकर के भैरव रूप की आराधना नित्य प्रति करता है उसके लाखों जन्मों में किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल,तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है। 
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शिव पुराण में कहा गया है कि ''भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।'' अर्थात भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं। इस दिन काले कुत्ते को मीठी चीज़ खिलाने का भी विधान बताया गया है। 

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