Edited By Jyoti,Updated: 06 Mar, 2022 12:58 PM

अनुवाद तथा तात्पर्य : जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले विभिन्न देवता यज्ञ सम्पन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे।
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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
अध्याय 1
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

‘यज्ञ’ का उद्देश्य
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविता:।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुड्क्ते स्तेन एवं स:।।

अनुवाद तथा तात्पर्य : जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले विभिन्न देवता यज्ञ सम्पन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे। किन्तु जो इन उपहारों को देवताओं को अर्पित किए बिना भोगता है, वह निश्चित रूप से चोर है।
देवतागण भगवान् विष्णु द्वारा भोग सामग्री प्रदान करने के लिए अधिकृत किए गए हैं। अत: यज्ञों द्वारा उन्हें अवश्य संतुष्ट करना चाहिए। वेदों में विभिन्न देवताओं के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के यज्ञों की संस्तुति है, किन्तु वे सब अन्तत: भगवान् को ही अर्पित किए जाते हैं। जो यह नहीं समझ सकता कि भगवान् क्या हैं, उसके लिए देवयज्ञ का विधान है। अनुष्ठानकर्ता के भौतिक गुणों के अनुसार वेदों में विभिन्न प्रकार के यज्ञों का विधान है।

विभिन्न देवताओं की पूजा भी उसी आधार पर अर्थात् गुणों के अनुसार की जाती है।
मनुष्य को जानना चाहिए कि जीवन की सारी आवश्यकताएं भगवान के प्रतिनिधियों द्वारा ही पूरी की जाती हैं। कोई कुछ बना नहीं सकता। स्पष्ट है कि हमारा जीवन भगवान् द्वारा प्रदत्त वस्तुओं पर आश्रित है।