Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Jun, 2025 03:18 PM
अगर मन में आशा, उत्साह, ऊर्जा और उमंग हो तो व्यक्ति 70 वर्ष की आयु में 40 वर्षीय व्यक्ति की तरह क्रियाशील रह सकता है, नहीं तो निराशा और कुंठा से घिर
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Staying young forever: अगर मन में आशा, उत्साह, ऊर्जा और उमंग हो तो व्यक्ति 70 वर्ष की आयु में 40 वर्षीय व्यक्ति की तरह क्रियाशील रह सकता है, नहीं तो निराशा और कुंठा से घिर हुआ व्यक्ति 40 की उम्र में ही 70 के तुल्य हो जाता है। यही कारण है कि बुढ़ापे का संबंध हमारे तन की बजाय मन के साथ अधिक होता है। मजबूत मन का व्यक्ति उम्र को जीत लेता है। 90 बसंत देख कर भी पिकासो चित्रकारी किया करते थे। महान दार्शनिक सुकरात 70 वर्ष की उम्र में भी मानव जाति के समक्ष अपने दर्शन का प्ररूपण किया करते थे। 72 वर्ष की आयु में भगवान महावीर लगातार चौबीस घंटे तक उपदेश और धर्म मार्ग का प्ररूपण करने में समर्थ थे।

मन डूबा तो नाव डूबी
मन का युवा होना जरूरी है। मन डूबा तो नाव डूबी। जो लोग बुढ़ापे को कारागार समझते हैं या चारदीवारी में रह कर दमघोंटू संघर्ष समझते हैं, उनसे अनुरोध है कि वे बुढ़ापे को जीवन का स्वर्ण शिखर समझें। प्रकृति की व्यवस्था के मुताबिक जिनका जन्म हुआ है, उन्हें मृत्यु के द्वार से गुजरना ही पड़ता है, जो फूल खिलता है उसे मुरझाना भी पड़ता है। धरती पर आज तक कोई ऐसा दिन नहीं आया जब सूरज उगा तो हो, पर अस्त न हुआ हो। संयोग के साथ ही वियोग भी है। अगर व्यक्ति प्रकृति की इस व्यवस्था को प्रेम से स्वीकार कर ले तो उसके जीवन की आपाधापी खुद-ब-खुद समाप्त हो जाए।
व्यक्ति की 80 प्रतिशत समस्याएं तो प्रकृति की व्यवस्था को स्वीकारते ही कम हो जाती हैं। पेड़ पर कोंपलें फूटती हैं, पत्ते हरे होते हैं, पीले पड़ते हैं और झड़ जाते हैं पर इसके बावजूद पेड़ को कोई शिकायत नहीं होती, ताप और संताप नहीं होता।
अगर हम इस तथ्य को समझ लें तो किसी का प्रेम हमारे लिए राग और मोह का अनुबंध न बनेगा और किसी का विरोध हमारे लिए द्वेष का आधार नहीं बनेगा। अनुकूलता, प्रतिकूलता में जीवन स्थिर रहेगा।
जीवन की असली साधना यही है कि व्यक्ति अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही स्थितियों में सहज रहे। यहां मित्र ही शत्रु और शत्रु ही मित्र बन जाते हैं। प्रकृति के साथ तालमेल करके जीने से जीवन बहुत ही सहजता से जीया जा सकेगा। जीवन को सहजता से जीना ही जीवन की सार्थकता और सफलता का मंत्र है।