महाभारत काल से जुड़ा है जितिया व्रत का रहस्य, पढ़े इसकी पौराणिक कथा

Edited By Jyoti,Updated: 22 Sep, 2019 08:42 AM

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जैसे कि अपने वेबसाईट के माध्यम से हम आपको बता ही चुके हैं आज से संतान की दीर्घायुष्य की कामना वाला जितिया व्रत रखा जाएगा। इस बार अलग-अलग पंचांग के अनुसार इस व्रत की तारीख़ भी भिन्न बताई जा रही है।

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जैसे कि अपने वेबसाईट के माध्यम से हम आपको बता ही चुके हैं आज से संतान की दीर्घायुष्य की कामना वाला जितिया व्रत रखा जाएगा। इस बार अलग-अलग पंचांग के अनुसार इस व्रत की तारीख़ भी भिन्न बताई जा रही है। जहां बनारस पंचांग के अनुुसार ये व्रत 22 सितंबर से शुरु होकर 23 सितंबर की सुबह तक समाप्त होगा। तो वहीं मिथिला वहीं मिथिला और विश्वविद्यालय पंचांग दरभंगा के मुताबिक श्रद्धालुओं द्वारा 21 सितंबर को ही व्रत रख लिया है और जिसका पारण आज यानि  22 सितंबर की दोपहर तीन बजे होगा। अब ये तो हुई व्रत की तिथि की। अब बात करते हैं इस व्रत से जुड़ी रहस्य की, कि आख़िर इस व्रत की शुरुआत कैसे व कब हुई। साथ ही जानते हैं जितिया व्रत का महाभारत से जुड़े गहरे संबंध के बारे में- 
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बहुत दुखी व नाराज़ थे। इस दुख और नाराज़गी के चलते उनके मन में बदले की भावना भड़क रही थी। अपनी इसी क्रोध के आगे बेबस होकर वे पांडवों के शिविर में घुस गए। जब वो अंदर गए तो उन्होंने देखा कि शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे जिन्हेें उन्होंने पांडव समझकर मार डाला। परंतु असल में वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। कहा जाता है इसके बाद अर्जुन ने उन्हें बंदी बनाकर उनकी दिव्य मणि छीन ली। 
जिसके बाद अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया। मगर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। कहा जाता है तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।  
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व्रत से जुड़ी पौराणिक कथाः
प्राचीन काल में गन्धर्वराज नामक जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। ये अपनी युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन इन्हेें भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली जो विलाप में थी। जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है। अपने वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। जिसमें आज उनके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। 

नागमाता की पूरी बात सुनने के बाद जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे। बल्कि उनके पुत्र की जगह खुद कपड़े में लिपटकर गरुड़ के समक्ष उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ठीक ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाया और पहाड़ की तरफ उड़ने लगा। थोड़ा आगे जकर जब गरुड़ ने सोचा कि हमेशा की तरह आज नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जिसके बाद जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बताई। कहा जाता है इस घटना के बाद गरुड़ ने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और उन्हें नागों को न खाने का वचन दिया।
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