बाबा गज्जू जी ने जिंदा जमीन में समाधि ली थी, मिट्टी निकालने से होती हैं पूरी मुरादें

Edited By ,Updated: 07 Sep, 2015 09:38 AM

article

लुधियाना स्थित बाबा गज्जू जी का समाधि स्थल लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। माना जाता है कि इस समाधि पर मुंहमांगी मुरादें पूरी होती हैं, लोगों के कष्ट दूर होते हैं निराश लोग आशावादी बनते हैं और

लुधियाना स्थित बाबा गज्जू जी का समाधि स्थल लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। माना जाता है कि इस समाधि पर मुंहमांगी मुरादें पूरी होती हैं, लोगों के कष्ट दूर होते हैं निराश लोग आशावादी बनते हैं और संतानहीनों को संतान प्राप्त होती है। यह समाधि स्थल छोटी ईंटों से अष्टकोणीय आकार में बना हुआ है। जहां पर हिन्दू धर्म में अति शुद्ध माने-जाने वाले त्रिवेणी वृक्ष पीपल, वट और नीम का संगम भी है। इस पवित्र स्थल की महिमा अकथनीय है।

मानव कल्याण और संसार को सच्चा मार्ग दिखाने के लिए बाबा जी ने बाल्यकाल में अनेकों चमत्कार कर दिखाए, उन्हीं चमत्कारों को बचपन की शरारतों का नाम देकर उनकी माता ने उनसे कहा कि यदि तुममें इतनी शक्ति और भक्ति है तो जिंदा जमीन में समाधि लेकर दिखाओ। माना जाता है कि उसी वक्त भाद्रपद अमावस्या के समय श्री बाबा जी ने जीते जी समाधि ले ली थी और उसी समय आकाशवाणी हुई कि यहां पर समाधि स्थल का निर्माण किया जाए, उसके पश्चात इस धार्मिक व पवित्र स्थल की महत्ता बढ़ती गई।
 
बाबा गज्जू जी महाराज की मूल समाधि अफगानिस्तान स्थित काबुल में है और थापर वंश का मूल स्थान भी काबुल ही माना गया है। आज से 400 वर्ष पूर्व 17वीं शताब्दी में थापर परिवारों से संबंधित कुछ लोग रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करके पंजाब विशेषकर लुधियाना में आ बसे। ये लोग अपने साथ वास्तविक समाधि स्थल से चंद ईंटें व मूल्यवान मिट्टी धरोहर समझकर ले आए थे। जो वर्तमान समाधि स्थल में आज भी विराजमान हैं। थापर समुदाय के लोगों ने बाबा गज्जू जी के नाम का ध्यान करके अपना कारोबार शुरू किया था, जो आज भी शिखर पर है।
 
बाबा गज्जू जी के आशीर्वाद से 37 वर्ष पहले 1978 में समाधि श्री बाबा गज्जू थापर बिरादरी का गठन हुआ। पहले पहल सभी थापर परिवारों के सदस्य अपने-अपने घरों में यथा योग्य स्वादिष्ट भोजन बनाकर समाधि पर आते थे और  बाबा जी को अर्पण करके आपस में मिल बांट कर भोजन का आनंद  उठाते थे। 1987 में थापर परिवार  के ही लोगों ने भंडारा लगाने का निर्णय लिया और तब से लेकर आज तक समस्त लोग यथा योग्य सेवाएं करके निरंतर भंडारे का आयोजन सभा स्थल पर करते आ रहे हैं।
 
रक्षाबंधन के 15 दिन पश्चात भाद्रपद की अमावस्या को यहां बहुत बड़ा मेला लगता है, दूरदराज और देश-विदेश से थापर परिवारों व अन्य समुदायों  के लोग यहां इकट्ठे होते हैं। मन्नतें मांगते हैं और उत्साह से बाबा जी को राखियां चढ़ाते हैं। 
 
परम्परा के अनुसार आज भी मिट्टी निकाल कर मनोकामना मांगी जाती है। हर वर्ष की भांति इस बार भी यह मेला 13 सितम्बर 2015 दिन रविवार को आरती सिनेमा के नजदीक गुरदेव नगर (वैलकम पैलेस) में लग रहा है। समाधि स्थल पर क्रांतिकारी भगत सिंह और राजगुरु के साथी रहे सुखदेव थापर की स्मृति और कारगिल युद्ध में शहीद हुए विजयंत थापर की याद में दो ए.सी. हालों का निर्माण  करवाया गया है जो गरीब व जरूरतमंद लड़कियों की शादी हेतु नि:शुल्क उपलब्ध हैं। बाबा जी की सेवा और पूजा अर्चना के लिए पुजारी नियुक्त है जो सुबह-शाम बाबा जी की स्तुति और आरती करते हैं। शहीदों की याद में नि:शुल्क मैडीकल कैम्प भी लगवाए गए। 
—अशोक थापर

Trending Topics

India

Ireland

Teams will be announced at the toss

img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!