यहां देवी मलाहसनी की पूजा के बिना खेतों में नहीं उगता है अनाज

Edited By ,Updated: 19 Apr, 2015 08:00 PM

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देवभूमि कुल्लू में ऐसी अनेक अजीबो-गरीब प्रथाएं हैं जोकि आम जनमानस को अचंभित करती हैं। ऐसी ही एक मान्यता कोहना मलाणा तांदला में देखने को मिलती है।

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू में ऐसी अनेक अजीबो-गरीब प्रथाएं हैं जोकि आम जनमानस को अचंभित करती हैं। ऐसी ही एक मान्यता कोहना मलाणा तांदला में देखने को मिलती है। यहां पर हर साल खेतों में बीज बोने से पहले देवी मलाहसनी का विधिवत पूजन करना जरूरी माना जाता है। ऐसा न करने पर देवी रुष्ट हो जाती है। ऐसी स्थिति में खेतों में बीजी गई फसल सूख जाती है या फिर बीज अंकुरित ही नहीं हो पाते हैं।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि आज से सैंकड़ों साल पहले तांदला में राणा ठाकुरों का शासन था। आरंभ में तो राणा ठाकुर देवी मलाहसनी की पूजा-अर्चना करते रहे लेकिन बाद में अहंकार और पाप बढ़ जाने के कारण उन्होंने देवी की पूजा-अर्चना करना छोड़ दिया। पहले तो माता की कृपा से खेतों में फसल की अच्छी पैदावार होती थी लेकिन बाद में माता के रुष्ट होने पर खेतों में बीजी गई फसल सूख गई।

जब इतना सब कुछ होने के बाद भी राणा ठाकुर नहीं समझ पाए तो उन्होंने दोबारा जमीन में बीज बोकर अपनी हठधर्मी जारी रखी। इसके बाद तो बीज अंकुरित ही नहीं हो पाया। अंत में देवी मलाहसनी ने राणा ठाकुरों का समूल नाश कर दिया, तब से लेकर आज तक ऐसी भूल करने का कोई साहस नहीं कर सकता है। बैसाख व ज्येष्ठ माह में यहां के किसान-बागवान खेतों में काम शुरू करने से पहले देवी मां की आराधना करते हैं तथा उसके बाद ही खेतों में काम आरंभ किया जाता है। यहां के लोगों का मानना है कि माता का सच्चे मन से पूजन पर अन्न व धन की कमी नहीं रहती है। 

फाल्गुन माह में किया जाता है पूजन
देव थीरमल नारायण के कारदार तोत राम ठाकुर ने कहा कि हर साल फाल्गुन संक्रांति के 4 प्रविष्टे की तिथि पर धारा गांव के अधिष्ठाता देवता थीरमल नारायण और तांदला के देव शुकली नाग अपने मुख्य कारकूनों और सैंकड़ों हरियानों सहित यहां पहुंचते हैं। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए मुख्य कारकूनों के द्वारा यहां पूजा-अर्चना की जाती है इसके बाद देव पूछ डालकर क्षेत्र की खुशहाली और समृद्धि के लिए हरियान देवी मां से प्रार्थना करते हैं।

फसल तैयार होने पर माता को दिया जाता है पिंदलू
फसल तैयार होती है तो हर घर के सबसे बड़े व्यक्ति द्वारा गेहंू, जौ, मक्की व कोदरे के आटे का गोला (पिंदलू) बनाकर देव स्थान पर जाकर चढ़ाया जाता है। उसके बाद परिवार के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से अनाज में बरकत होती है तथा घर में रखा हुआ अन्न जल्दी खत्म नहीं होता है। 

आड़ू का पेड़ सूख गया तो अनहोनी होने का रहता है अंदेशा
मान्यता है कि देवी मलाहसनी को दूर से चिन्हित करने वाले आड़ू के पेड़ के सूख जाने से क्षेत्र में कोई बड़ी घटना होने का संदेश होता है। इसका उदाहरण वर्ष 1978 में देखने को मिला जब पूरा तांदला गांव अग्रिकांड की भेंट चढ़ गया था। अग्रिकांड से पूर्व यह पेड़ सूख गया था। लोगों ने जब देव पूछ डाली तो देव शुकली नाग ने गूर के माध्यम से देववाणी की गई थी कि क्षेत्र में कोई बड़ी घटना घटेगी। अग्रिकांड के बाद जब गांव बसा तो फिर से देव शक्ति के कारण आड़ू का पेड़ दोबारा उग गया। देववाणी में देवता कहता है कि जब भी क्षेत्र में कोई घटना घटेगी तो आड़ू का पेड़ सूख जाएगा तब समझना कि विपदा को कोई नहीं टाल सकता है।

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