Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Sep, 2017 03:49 PM
हाल ही में वैज्ञानिकों के एक दल ने एक ऐसे नए अत्याधुनिक रेशे की खोज की है जो खींचने या फिर मोड़ने...
नई दिल्ली: हाल ही में वैज्ञानिकों के एक दल ने एक ऐसे नए अत्याधुनिक रेशे की खोज की है जो खींचने या फिर मोड़ने पर बिजली पैदा कर सकता है। यह एक ऐसा लचीला रेशा है जो कार्बन नैनोट्यूब से बना है। इन बेहद छोटे-छोटे कार्बन कणों का आकार इंसान के बाल की तुलना में 10 हजार गुना छोटा है। यह कई कुदरती स्त्रोतों से बिजली पैदा करने में सक्षम है।यह सागर की लहरों और इंसानी गतिविधियों का इस्तेमाल कर ऊर्जा पैदा करता है।
इस रेशे को ‘ट्विस्ट्रॉन’ यार्न नाम दिया गया है।साइंस जर्नल में छपे इस शोध के प्रमुख लेखक कार्टर हाइन्स का कहना है कि ‘ट्विस्ट्रॉन हार्वैस्टर्स’ के बारे में आसानी से आप इस तरह सोच सकते हैं कि आपके पास एक रेशा है जिसे आप खींचते हैं और बिजली निकलती है। इसके अनुसार नैनोट्यूब क्षमता का उपयोग करके उपकरण सिप्रंग जैसी गति को विद्युत ऊर्जा में बदल देता है। इसे कई जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रयोगशाला में परीक्षण के दौरान एक मक्खी से भी कम वजनी रेशे ने छोटी-सी एल.ई.डी.लाइट जलाने लायक ऊर्जा पैदा की।
जब इसे टी-शर्ट में लगाया गया तो यह सांसों की गति के साथ सीने के उठने और बैठने का इस्तेमाल कर ब्रीदिंग सैंसर चलाने लायक ऊर्जा पैदा करने में कामयाब रहा। ब्रीदिंग सैंसर का इस्तेमाल बच्चों पर निगरानी रखने में किया जाता है। इस रिसर्च में शामिल रहे अमरीका में डल्लास की टैक्सास यूनिवर्सिटी के प्रोफैसर रे बाऊमन का कहना है कि इन रेशों का इस्तेमाल इंटरनैट से जुड़े रहने वाले स्मार्ट कपड़ों को बनाने में किया जा सकता है। उन्होंने कहा,‘‘इलैक्ट्रॉनिक कपड़ों में व्यापार जगत की गहरी दिलचस्पी है लेकिन आप उन्हें ऊर्जा कैसे देंगे। इंसान की गति द्वारा विद्युत ऊर्जा पैदा करने से बैटरी की जरूरत खत्म हो जाएगी।’’
हालांकि, ‘ट्विस्ट्रॉन’ का सबसे शानदार गुण है समंदर के पानी में काम करना और सागर की लहरों से भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा करना। दक्षिण कोरिया में हुए परीक्षण के दौरान देखा गया कि एक छोटा-सा ‘ट्विस्ट्रॉन’ जब एक डूबने-उतराने वाली चीज के बीच में लगाया गया तो हर लहर के साथ रेशे खिंचने पर उसने बिजली पैदा की। प्रो.रे का कहना है कि इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य में समुद्री बिजलीघरों को बनाने में किया जा सकता है और तब यह पूरे शहर को रोशन करने लायक बिजली भी पैदा कर सकता है।
फिलहाल यह तकनीक बेहद महंगी है।पैरिस जलवायु समझौते के तहत अमीर और गरीब देशों ने ग्रीन हाऊस गैसों की भारी मात्रा में कटौती की कसम खाई है।आमतौर पर ये गैसें जीवाश्म ईंधन को जलाने से पैदा होती हैं और वैज्ञानिक इन्हें धरती के बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेदार मानते हैं। ‘ट्विस्ट्रॉन’ इंसानों की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को बहुत कम कर सकता है।