Edited By PTI News Agency,Updated: 21 Jul, 2022 06:09 PM
इस्लामाबाद, 21 जुलाई (भाषा) पचहत्तर साल बाद जब 90 वर्षीय रीना छिब्बर वर्मा पाकिस्तान में अपने पुरखों के घर पहुंचीं तो उनकी नजरों के सामने बचपन की यादें तैरने लगीं और वह भावविह्वल हो गयीं।
इस्लामाबाद, 21 जुलाई (भाषा) पचहत्तर साल बाद जब 90 वर्षीय रीना छिब्बर वर्मा पाकिस्तान में अपने पुरखों के घर पहुंचीं तो उनकी नजरों के सामने बचपन की यादें तैरने लगीं और वह भावविह्वल हो गयीं।
पुणे निवासी वर्मा का रावलपिंडी में अपने पैतृक घर जाने का सपना तब साकार हुआ जब पाकिस्तान ने उन्हें तीन महीने का वीजा दिया। वह 16 जुलाई को वाघा-अटारी सीमा से लाहौर पहुंचीं।
बुधवार को जब वह प्रेम नवास मोहल्ला पहुंचीं तब मोहल्ले के लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया। ढोल बजाये गये और उन पर फूल बरसाये गये। वर्मा अपने आप को रोक नहीं पायीं और वह ढोलक की थाप पर नाचती रहीं। विभाजन के समय जब वह महज 15 साल की थीं तब उन्हें अपना घर-बार छोड़कर भारत आना पड़ा था।
वर्मा अपने पैतृक घर के दूसरे तल पर हर कमरे में गयीं और अपनी पुरानी यादें बटोरीं। उन्होंने बालकनी में खड़े होकर गाना गया एवं वह अपने बचपन को याद कर रो पड़ीं।
पाकिस्तानी मीडिया ने बृहस्पतिवार को उनके हवाले से लिखा कि उन्हें लगा ही नहीं कि वह दूसरे देश में हैं। वर्मा ने कहा, ‘‘ सीमा के दोनों पार रह रहे लोग एक-दूसरे से प्यार करते हैं और हमें एक होकर रहना चाहिए।’’
वह बहुत देर तक अपने घर के दरवाजों, दीवारों, शयनकक्ष, आंगन और बैठक को निहारती रहीं। उन्होंने उन दिनों की अपनी जिंदगी के बारे में बातें कीं। उन्होंने पड़ोसियों को बताया कि वह बचपन में बॉलकनी में खड़ी होकर गुनगुनाती थीं।
रीना वर्मा को आज भी वह दिन याद है जब उन्हें और उनके परिवार को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा था। उनका परिवार उन लाखों लोगों में था जो 1947 में भारत के विभाजन की विपदा में फंस गये थे।
डॉन अखबार के अनुसार, रीना वर्मा ने दोनों देशों से वीजा व्यवस्था आसान बनाने की अपील की ताकि लोग बार बार मिल पायें। उन्होंने कहा, ‘‘मैं नयी पीढ़ी से मिलकर काम करने और चीजें आसान बनाने की अपील करूंगी। ’’ उन्होंने कहा कि मानवता सब चीजों से ऊपर है और सभी धर्म मानवता का पाठ पढ़ाते हैं।
वर्मा ने कहा कि उनकी उम्र के सभी लोगों की मौत हो चुकी है। उनके पुराने पड़ोसियों के पोते अब उस घर में रहते हैं जहां वह और उनका परिवार रहता था।
वो कहती हैं, "लेकिन दीवारें आज भी वैसी की वैसी हैं।"
वह कहती हैं, “दोस्त और यहाँ का खाना अभी भी मेरे दिमाग में ताज़ा है। आज भी इन गलियों की महक पुरानी यादें ताजा कर देती है। मैंने सोचा भी नहीं था कि जिंदगी में कभी यहां वापस आऊंगी। हमारी संस्कृति एक है। हम वही लोग हैं। हम सब एक दूसरे से मिलना चाहते हैं। एक स्थानीय व्यक्ति ने मुझे ढूंढा और वीजा दिलाने में मदद की जिसके बाद मैं वाघा सीमा के रास्ते रावलपिंडी पहुंची।’’
रीना वर्मा ने कहा कि केवल एक चीज जिसने उसे दुखी किया, वह यह थी कि उनके आठ सदस्यों के परिवार में से कोई भी उनकी खुशी साझा करने के लिए जीवित नहीं है।
उन्होंने कहा,“मैं यह देखकर बहुत खुश हूं कि घर बरकरार है; यहां तक कि अलाव अभी भी काम करता है। सर्दियों में छुट्टियों के दौरान हम हीटिंग के लिए इसी में लकड़ी जलाते थे"।
उन्होंने कहा, "मैं पाकिस्तान से बेहद प्यार करती हूं और बार-बार पाकिस्तान आना चाहती हूं।"
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