ग्लासगो में तय समय से अधिक देर तक चली जलवायु वार्ता, छाया रहा कोयला-नकदी का मुद्दा

Edited By Tanuja,Updated: 13 Nov, 2021 03:15 PM

un climate summit heads into extra time as negotiators work to strike deal

ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर चर्चा शुक्रवार को तय समय से अधिक देर तक चली। वार्ता के लिए एकत्रित हुए वार्ताकार अब ...

ग्लासगोः ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर चर्चा शुक्रवार को तय समय से अधिक देर तक चली। वार्ता के लिए एकत्रित हुए वार्ताकार अब भी कोयले का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर आम राय बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं विकासशील देशों के अनुसार अमीर राष्ट्रों को अपने उत्सर्जन-कटौती के वादों और विशेष रूप से आर्थिक मदद के संकल्प को पूरा करने की आवश्यकता है। मध्य अफ्रीकी देश गैबॉन के वन मंत्री ली व्हाइट ने कहा कि बातचीत में ‘‘गतिरोध'' बना हुआ है और यूरोपीय संघ के समर्थन से अमेरिका बातचीत को रोक रहा है।

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जलवायु वार्ता में ‘‘निरंतर प्रयास जारी
लंबे समय से वार्ता के पर्यवेक्षक रहे जलवायु और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी विचारक समूह (थिंक-टैंक) पावर शिफ्ट अफ्रीका के मोहम्मद एडो ने कहा कि जिस तरह से ब्रिटेन ने मसौदे तैयार किए हैं, वह ‘‘सम्पन्न देशों'' की वार्ता बन गई है। मसौदा में जो प्रस्तावित किया गया है उसे गरीब देश स्वीकार नहीं कर सकते। बैठक के मेजबान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के प्रवक्ता ने कहा कि उनका मानना ​​​​है, ‘‘एक महत्वाकांक्षी परिणाम मिलने की उम्मीद है।'' अपने चीनी समकक्ष के साथ देर रात की बैठक के बाद और भारत के मंत्री से बातचीत से पहले अमेरिकी जलवायु दूत जॉन केरी ने शुक्रवार रात कहा कि जलवायु वार्ता में ‘‘निरंतर प्रयास जारी है।''

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जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय सहायता महत्वपूर्ण मुद्दा
चीनी जलवायु दूत जी झेंहुआ ने केरी से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वर्तमान मसौदा किसी नतीजे पर पहुंचने के अधिक करीब है।'' स्थानीय समयानुसार शाम छह बजे तक कोई समझौता नहीं हुआ। शुक्रवार को तीन मुद्दे लोगों को नाखुश कर रहे थे - नकद, कोयला और समय। गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय सहायता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है।

 

सम्पन्न राष्ट्र सहमति के अनुरूप उन्हें 2020 तक सालाना 100 अरब अमेरीकी डॉलर देने में विफल रहे, जिससे वार्ता के दौरान विकासशील देशों में काफी नाराजगी थी। मसौदा उन चिंताओं को दर्शाता है जिसमें गहरा ‘‘खेद'' जताया गया है कि 100 अरब अमेरीकी डॉलर का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका और अमीर देशों से उत्सर्जन को कम करने और गरीब देशों के लिए अपने वित्त पोषण को बढ़ाने का आग्रह किया गया है।

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गरीब देशों का कहना-अफसोस काफी नहीं
गरीब देशों का कहना है कि अफसोस काफी नहीं है। जलवायु विज्ञान और नीति विशेषज्ञ तथा बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन और विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र के निदेशक सलीमुल हक ने कहा, ‘‘उन्हें (अमीर देशों को) दाता देश न कहें। वे प्रदूषक हैं। उन पर यह पैसा बकाया है।''

 

मसौदे में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का सामना करने वाले गरीब देशों को सहायता के मौजूदा स्रोतों का इस्तेमाल करने में मदद करने के लिए एक क्षतिपूर्ति कोष बनाने का भी प्रस्ताव है। लेकिन अमेरिका जैसे समृद्ध राष्ट्र, जो ऐतिहासिक रूप से मानव-जनित हरित गैस उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत रहे हैं, गरीब देशों को क्षतिपूर्ति करने के लिए किसी भी कानूनी दायित्व के विरोध में हैं।

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 कोयले से बिजली उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से कम करने का आह्वान
शिखर सम्मेलन में छोटे द्वीपों के गठबंधन के लिए प्रमुख वार्ताकार लिया निकोलसन ने कहा कि विकासशील देशों और चीन की इस पर ‘‘एकजुट स्थिति'' रही है। शुक्रवार के मसौदे में देशों से ‘‘कोयले से बिजली उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से कम करने और जीवाश्म ईंधन के लिए सब्सिडी'' में तेजी लाने का आह्वान किया गया। केरी ने कहा कि वाशिंगटन वर्तमान मसौदे का समर्थन करता है।

 

ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों ने जल्द ही किसी भी समय कोयले के इस्तेमाल को खत्म करने के आह्वान का विरोध किया है। वैज्ञानिक 2015 के पेरिस समझौते के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को जल्द से जल्द समाप्त करने की आवश्यकता से सहमत हैं। नेताओं, कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों की कड़ी चेतावनी के बीच 31 अक्टूबर को लगभग 200 देशों के वार्ताकार ग्लासगो में ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए हैं। 

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