काबुल में आत्मघाटी हमला: पीड़ितों ने बयां की दर्द की दास्तां

Edited By vasudha,Updated: 21 Nov, 2018 06:58 PM

victims tell the story about suicide attack in kabul

अफगानिस्तान के काबुल में पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर इस्लामी विद्वानों पर हुआ हमला इतना जोरदार था कि वहां बैठा अहमद फरीद जमीन पर जा गिरा। उसके आसपास खून से सने लोगों के शव पड़े थे और खुशकिस्मती से उसकी जान बच गई...

काबुल: अफगानिस्तान के काबुल में पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर इस्लामी विद्वानों पर हुआ हमला इतना जोरदार था कि वहां बैठा अहमद फरीद जमीन पर जा गिरा। उसके आसपास खून से सने लोगों के शव पड़े थे और खुशकिस्मती से उसकी जान बच गई। 
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फरीद (40) ने कहा कि यह पूरी तरह भयानक था, लोगों की मौत हुई और वे घायल हो गए। शवों के टुकड़ें पड़े थे और वे खून में सने थे। उसके पैर और कंधे में चोटें आयी और वह अस्पताल के बेड पर लेटा हुआ था। उन्होंने बताया कि मेरा दोस्त और उसका छोटा-सा बेटा भी मेरे बगल में पड़े थे, वे खून में सने थे और उनमें कोई हलचल नहीं थी। 

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उरानस वेडिंग पैलेस के एक बैंक्वेट हॉल में मंगलवार शाम को आत्मघाती विस्फोट में कम से कम 55 लोगों की मौत हो गई और 94 लोग घायल हो गए। यह इस साल अफगानिस्तान में हुए सबसे नृशंस हमलों में से एक है। सोशल मीडिया पर विस्फोट की एक कथित वीडियो पोस्ट की गई है जिसमें विस्फोट से अफरा तफरी मचने से पहले बड़ी संख्या में लोग कुरान की तिलावत सुन रहे हैं। बुधवार सुबह को जब सफाईकर्मी बहुमंजिला आयोजन स्थल को साफ करने आए तो वहां खून से सनी टोपियां, सैंडल, पलटी हुई कुर्सियां और खिड़कियां टूटी हुई पड़ी थीं। 
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अफगानिस्तान और विदेशों में इस हमले की व्यापक स्तर पर निंदा की गई है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘‘नृशंसता’’ बताया है। काबुल में अमेरिका के राजदूत जॉन बास ने कहा कि वह विस्फोट से बहुत ‘‘दुखी’’ हैं जबकि अफगानिस्तान में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि यह विस्फोट हम पर हमला है जो आजादी को महत्व देते हैं चाहे हम धार्मिक हो या नहीं। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने हमले में मारे गए पीड़ितों के शोक में बुधवार को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया। उन्होंने इस हमले को ‘‘अक्षम्य अपराध’’ बताया। अभी किसी ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है हालांकि तालिबान ने हमले की निंदा की है।
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इस साल काबुल में ज्यादातर आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी लेने वाले इस्लामिक स्टेट समूह ने कोई बयान जारी नहीं किया है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पवित्र दिनों में से एक पर धार्मिक विद्वानों को क्यों निशाना बनाया गया। धार्मिक मामलों के मंत्री के सलाहकार मेहराब दानिश ने बताया कि सभा में एकत्रित ज्यादातर लोग सूफी थे। साथ ही उन्होंने कहा कि लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि उन्हें इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे सूफीवाद को मानते थे। पाकिस्तान में साम्प्रदायिक आतंकवादी लंबे समय से सूफियों को निशाना बनाते रहे हैं लेकिन अफगानिस्तान में ऐसे हमले दुर्लभ है।      
 

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