6 हजार की उधारी के बदले 20 साल की गुलामी, पीएम मोदी की इस योजना ने कराई रिहाई

Edited By prachi upadhyay,Updated: 04 Aug, 2019 06:56 PM

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उत्तर प्रदेश में एक जिला है जालौन। वहां एक गांव है गड़ेरना। जहां रामजी विश्वकर्मा रहते हैं। अब आप सोचेंगे की ये रामजी विश्वकर्मा कौन है। रामजी विश्वकर्मा इलाके कोई नेता, समाजसेवी, या ऐसी  कोई भी बड़ी और जानीमानी शख्सियत नहीं है। बल्कि रामजी...

उत्तरप्रदेश: उत्तर प्रदेश में एक जिला है जालौन। वहां एक गांव है गड़ेरना। जहां रामजी विश्वकर्मा रहते हैं। अब आप सोचेंगे की ये रामजी विश्वकर्मा कौन है। रामजी विश्वकर्मा इलाके कोई नेता, समाजसेवी, या ऐसी  कोई भी बड़ी और जानीमानी शख्सियत नहीं है। बल्कि रामजी विश्वकर्मा आज के बदलते भारत के बंधुआ मजदूर हैं। जी हां, बंधुआ मजदूर। एक ऐसी प्रथा जो कागजों पर तो सालों पहले खत्म हो चुकी है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कुछ मेल नहीं खाती है। आज भी कई गांवों में सशक्त लोग पैसों के बदले गरीबों और मजदूरों का शोषण करते है जिसमें बंधुआ मजदूरी भी शामिल है। और ऐसी ही एक हकीकत रामजी की भी है।

साल 1999 की बात है, जब रामजी के छोटे भाई बीमार पड़ गए। हालात गंभीर हुई तो रामजी ने इलाके के बड़े आदमी रामशंकर बुधौलिया के आगे 6 हजार रूपयों के लिए हाथ फैलाया। पैसा मिला और भाई का इलाज हो गया। लेकिन तबतक रामजी पर 10 हजार का कर्जा चढ़ गया था। कर्ज चुकाने के लिए पैसे तो थे नहीं, तो रामशंकर बुधौलिया ने रामजी को अपने यहां रख लिया बतौर ‘बंधुआ मजदूर’। रामजी और उनके परिवार का हाल 1950-60 दशक की उऩ फिल्मी कहानियों जैसा हो गया, जिसमें गांव लाला कर्जा देने के बाद उसपर ऐसा ब्याज लगाता है कि असल को छोड़िए पीड़ित गांववाला सूद-सूद देते ही दम तोड़ देता है।

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रामजी के साथ भी ये ही हुआ। वो दिन-रात रामशंकर के यहां काम की चक्की में पीसते रहे। खाने के साथ गालियां भी भर-भरकर परोसी जाती। रामशंकर तो साल दर साल अपने इलाके के बड़े और बड़े नेता बनते गए। लेकिन रामजी की बंधुआ मजदूरी में घुटते रहे। इधर कर्ज की असल रकम तो छोड़िए केवल ब्याज ही रॉकेट की स्पीड से भी तेज ऊपर चढ़ता रहा। जिसे चुका पाना रामजी के परिवार की हैसियत के बाहर था। रामजी के छोटे भाई की पत्नी केशकली जब भी रामजी को छुड़ाने जाती तो उसके सामने हिसाब की कॉपी रख दी जाती। हर बार अलग हिसाब बताया जाता। अब केशकली पढ़ी लिखी तो थी नहीं, इसलिए किस हिसाब से कुछ हज़ार रुपयों का कर्जा लाखों में तब्दील हो गया ये समझ पाना उसके लिए मुश्किल था।

फिर जब प्रधानमंत्री के हर घर शौचालय योजना के तहत रामजी के परिवार को 6 हजार की रकम मिली तो केशकली ने फिर उनको छुड़ाने के लिए दौड़-धूप शुरू की। केशकली ने बताया कि, ‘6 हजार रूपए मिलने के बाद हम उरई मुख्यालय गए। वहां से हमको थाने में जाने को बोला। थाने से दरोगा जी छुड़वा के लाए। हमसे दो जगह अंगूठा लगवाया गया। फिर 26 जून को पूरा दिन हमारे जेठ को थाने में रखा और रात को छोड़ा गया।‘

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वहीं जब इस पूरे मामले पर रामशंकर बुधौलिया से सवाल किया गया तो उन्होने रामजी  और केशकली के सभी आरोपों को सिरे नकार दिया। उल्टा उन्होने इसे अपने खिलाफ एक राजनैतिक षड़यंत्र बताया, ताकि जनता के सामने उनकी छवि को धूमिल किया जा सके। इधर जब केशकली से आगे की कार्रवाई को लेकर सवाल किया गया तो उन्होने आंखों में बेबसी और बहते हुए आंसूओं को लेकर कहा कि, ‘जो अरबो-खरबों के मालिक हैं उनसे हम गरीब कैसे लड़ेंगे, जान भी तो बचानी है ना।‘

हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हमें अपने हक के लिए मौलिक अधिकार दिए गए हैं। हम चांद तक पहुंच चुके हैं। लेकिन वो सब रामजी के मामले में ना जाने कहां चला गया। क्योंकि महज 6 हजार का उधार के बदले बीस साल के मजदूरी कहीं से भी मौलिक और लोकतांत्रिक नहीं लगती।    

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