तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने खत्म की बड़ी अड़चन, दिया ये विकल्प

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Sep, 2017 01:16 AM

6 months cooling period can end the court if there is no scope

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक के मामले में अगर दोनों पक्षों में समझौते की गुंजाइश न बची हो तो 6 महीने के वेटिंग (मोशन) पीरियड को अदालत खत्म कर सकती है

नई दिल्लीः आपसी सहमति से तलाक के मामले में अगर दोनों पक्षों में समझौते की गुंजाइश न बची हो तो 6 महीने के वेटिंग (मोशन) पीरियड को अदालत खत्म कर सकती है। ये कहना है देश सर्वोच्च अदालत का। अदालत दिल्ली के एक कपल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने आपसी सहमति से तलाक के मामले में छह महीने के वेटिंग पीरियड को खत्म करने की गुहार लगाई थी। बता दें, हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत सहमति से तलाक के मामले में पहले और आखिरी मोशन के बीच 6 महीने का वक्त दिया जाता है, जिससे दोनों पक्षों में समझौते की कोशिश हो सके। आखिरी मोशन के बाद तलाक का प्रावधान है।

मंगलवार को अदालत ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने का वेटिंग पीरियड अनिवार्य नहीं है। दोनों पक्षों में समझौते की कोशिश विफल हो चुकी है और दोनों ने बच्चे की कस्टडी और दूसरे विवाद निपटा लिए हैं तो अदालत 6 महीने के पीरियड को खत्म कर सकती है। तलाक की अर्जी के एक हफ्ते बाद ही अदालत से 6 महीने का वेटिंग पीरियड खत्म करने की गुहार लगाई जा सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट यह देखे कि दोनों पक्षों में समझौते की कोशिश हुई है लेकिन समझौते की कोशिश फेल हो गया हो। दोनों पार्टी में तमाम सिविल और क्रिमिनल मामले में समझौता हुआ हो और गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी तय हो गई हो। ऐसी स्थिति अगर बन गई है तो वेटिंग पीरियड उनके कष्ट को ही लंबा करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में पहले मोशन के 7 दिनों के बाद दोनों पक्ष वेटिंग पीरियड को खत्म करने की अर्जी के साथ सेकंड मोशन दाखिल कर सकते हैं और कोर्ट इन परिस्थितियों के आधार पर वेटिंग पीरियड को खत्म करने का फैसला ले सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परंपरागत तरीके से हिंदू लॉ जब कोडिफाइड नहीं हुआ था तब शादी एक धार्मिक संस्कार माना जाता था। वह शादी सहमति से खत्म नहीं हो सकता था। हिंदू मैरिज ऐक्ट आने के बाद तलाक का प्रावधान आया। 1976 में सहमति से तलाक का प्रावधान किया गया। 

इसके तहत फर्स्ट मोशन के 6 महीने के बाद दूसरा मोशन दाखिल किए जाने का प्रावधान है और तब तलाक होता है। इस दौरान 6 महीने का कुलिंग पीरियड इसलिए किया गया ताकि अगर जल्दीबाजी व गुस्से में फैसला हुआ हो तो समझौता हो जाए और शादी को बचाया जा सके, लेकिन इसका उद्देश्य दोनों पक्षों को कष्ट देना नहीं है अगर दोनों में समझौते की गुंजाइश न हो तो फिर उसे लंबा खींचकर दोनों को कष्ट नहीं दिया जा सकता। अगर सभी प्रयास हुए की शादी को बचाया जा सके लेकिन प्रयास फेल हुआ तो दूसरे विकल्प पर जाना होगा। 


 

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