एक झटके से VVIP के लिए बनेगी बुलेट प्रूफ दीवार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Apr, 2018 08:30 AM

a shock bullet proof wall will be made for vvip

यू.के. की एस.ए.एस. (स्पैशल एयर सर्विस फोर्स) और जर्मनी की जी.एस.जी.-9 (सीमा गार्ड समूह-9) की तर्ज पर 1986 में गठित एन.एस.जी. के ब्लैक कैट कमांडो अब जल्द ही अत्याधुनिक हथियारों और ब्रीफकेस बैलिस्टिक शील्ड के साथ लैस होंगे।

जालंधर: यू.के. की एस.ए.एस. (स्पैशल एयर सर्विस फोर्स) और जर्मनी की जी.एस.जी.-9 (सीमा गार्ड समूह-9) की तर्ज पर 1986 में गठित एन.एस.जी. के ब्लैक कैट कमांडो अब जल्द ही अत्याधुनिक हथियारों और ब्रीफकेस बैलिस्टिक शील्ड के साथ लैस होंगे। एन.एस.जी. का गठन जमीन, हवा और जल में विशेषकर आतंकवाद निरोधक अभियानों एवं अपहरण विरोधी अभियानों के लिए किया गया था।

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की सुरक्षा में ब्रीफकेस
अक्सर प्रधानमंत्री के  साथ एक स्पैशल प्रोटैक्शन गार्ड (एस.पी.जी.) ब्रीफकेस लेकर चल रहा होता है। असल में यह ब्रीफकेस बैलिस्टिक शील्ड होता है। अब इसी तरह के ब्रीफकेस का इस्तेमाल गृह मंत्री राजनाथ सिंह की सुरक्षा में होने लगा है। हाल के दिनों में राजनाथ सिंह की सुरक्षा में एन.एस.जी. ने खतरे के आकलन के आधार पर ब्रीफकेस बैलिस्टिक शील्ड के इस्तेमाल को बढ़ाया है।

क्या है ब्रीफकेस बैलिस्टिक शील्ड
ब्रीफकेस बैलिस्टिक शील्ड पोर्टेबल बुलेट प्रूफ  शील्ड होती है। एक झटके के साथ ब्रीफकेस खुलने के साथ ही ढाल की तरह काम करने लगती है। ब्रीफकेस बैलिस्टिक शील्ड अतिविशिष्ट (वी.वी.आई.पी.) व्यक्तियों को तत्काल सुरक्षा देती है। असल में इस पोर्टेबल बुलेट प्रूफ शील्ड को हमले के दौरान खोला जा सकता है, यानी एन.एस.जी. कमांडो अतिविशिष्ट व्यक्ति पर हमले की सूरत में इस शील्ड को नीचे की ओर झटक देते हैं जिससे यह खुल जाती है। इस ब्रीफकेस नुमा शील्ड में एक गुप्त जेब भी होती है जिसमें पिस्तौल को रखा जाता है।

कमांडो को गॉगल्ज पहनने की अनुमति
इसका मकसद मनोवैज्ञानिक ढंग से ध्यान भटकाने के साथ-साथ सार्वजनिक समारोह में संदिग्ध को देखते ही उस पर झपटना है।

वी.वी.आई.पी. सुरक्षा ड्यूटी पर एन.एस.जी. कमांडो के लिए कौशल कार्यक्रम
ब्लैक कमांडो को कड़ा अनुशासन सिखाया जाता है। उसकी बंदूक की नोजल जमीन की तरफ होती है। पहले की ड्रिल को अतीत की प्रक्रिया से अलग कर दिया गया है और स्थिति के हिसाब से उन्हें गतिशील और लचीलापन से चलने की छूट दी गई है।

हैंड फ्री कम्यूनिकेशन सैट
कमांडोज को अब हैंड फ्री कम्यूनिकेशन सैट (कान में लगाने वाले यंत्र) और बल्की वाकी-टाकी मिलेंगे जो उनके कंधे पर अटैच होंगे। इसके अतिरिक्त इन कमांडोज को सब-मशीन गन, हैकलर एंड कोच एम.पी., असाल्ट राइफल और ग्लॉक पिस्टल तथा ग्लॉक नाइफ के साथ लैस किया जाएगा।

निजी सुरक्षा में विश्व की श्रेष्ठ प्रक्रिया के साथ कमांडो को लैस किया जा रहा
कमांडो की कार्रवाई को मजबूत बनाने के लिए इनको आधुनिक हथियारों से लैस किया जा रहा है ताकि ये सुरक्षा के कारोबार पर अधिक जोर दे सकें। राडार के नीचे रहने से वैश्विक रूप से स्वीकार सुरक्षा सिद्धांतों की मांग है कि गार्डों/कमांडो की गतिविधि ऐसी होनी चाहिए कि वे हैरतअंगेज ढंग से घुसपैठियों को पकड़ सकें।

रूस की मदद से भारत में होगा क्लाश्निकोव का निर्माण
सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही दुनिया भर में मशहूर क्लाश्निकोव राइफल भारत में बनेगी। इसे भारत में आमतौर पर ए.के.-103 कहा जाता है। मेक इन इंडिया के तहत केंद्र सरकार रूस के साथ मिलकर इसकी प्रोडक्शन भारत में करने की दिशा में काम कर रही है। भारत में निर्माण होने के बाद यह राइफ ल इंडियन ऑर्मी और बॉर्डर पर तैनात जवानों के काम आएगी।  प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय दल जल्द ही इस पर बातचीत के लिए रूस जाने वाला है। इस मामले में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से चर्चा हो चुकी है। भारत अपनी इस मंशा से रूस सरकार को अवगत करवा चुका है।

ऑर्डिनैंस फैक्टरी बोर्ड के साथ मिलकर होगी प्रोडक्शन
रूस सरकार ने पिछले साल ही इस राइफल के भारत में निर्माण का प्रस्ताव दिया था। तब यह सेना के मानकों के अनुरूप नहीं थी। हाल में सेना ने 7.62 कैलिबर श्रेणी की असाल्ट राइफल में कुछ नए स्पैसीफिकेशन जोड़े हैं। ऑर्डिनैंस फैक्टरी बोर्ड के साथ मिलकर यह राइफल भारत में निर्मित होगी। कुछ राइफल को भारत में मंगवाया जाएगा। बाद में इन्हें बड़े पैमाने पर देश में ही बनाया जाएगा। शुरूआत में इन्हें सेना के लिए बनाया जाएगा।

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