राहुल के जातिगत जनगणना के मुद्दे पर कांग्रेस में ही फूट! आनंद शर्मा बोले- यह इंदिरा-राजीव की विरासत का अपमान

Edited By Yaspal,Updated: 21 Mar, 2024 06:19 PM

anand sharma said  this is an insult to the legacy of indira rajiv

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने जाति जनगणना पर पार्टी के आधिकारिक रुख का विरोध करते हुए गुरुवार को कहा कि समावेशी दृष्टिकोण रखने वाली इस पार्टी का अपने पुराने रुख से विचलित होना इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी की विरासत का अपमान है

नेशनल डेस्कः कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने जाति जनगणना पर पार्टी के आधिकारिक रुख का विरोध करते हुए गुरुवार को कहा कि समावेशी दृष्टिकोण रखने वाली इस पार्टी का अपने पुराने रुख से विचलित होना इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी की विरासत का अपमान है। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को लिखे गए पत्र में यह भी कहा कि जाति जनगणना देश में व्याप्त असमानताओं और बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए रामबाण नहीं हो सकती। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य शर्मा ने जाति जनगणना के मुद्दे पर पार्टी से अलग रुख ऐसे समय अपनाया है जब लोकसभा चुनाव की आधिकारिक घोषणा हो चुकी है और पार्टी ने इस चुनाव में जो पांच ‘न्याय' और 25 ‘गारंटी' की बात की है उनमें से एक जाति जनगणना भी है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले कई महीनों से जाति जनगणना और सामाजिक न्याय को विषय को जोर-शोर से उठा रहे हैं। शर्मा ने खरगे को लिखे लिखे पत्र में कहा, ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना चुनावी विमर्श में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरा है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘इंडिया' गठबंधन ने इसका समर्थन किया है। गठबंधन में वे दल भी शामिल हैं जिन्होंने लंबे समय से जाति आधारित राजनीति की है। हालांकि, सामाजिक न्याय पर कांग्रेस की नीति भारतीय समाज की जटिलताओं की परिपक्व समझ पर आधारित है।''

शर्मा का कहना है, ‘‘संविधान में निहित सकारात्मक कदम के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। यह भारतीय संविधान निर्माताओं के सामूहिक ज्ञान को दर्शाता है। दशकों बाद, अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को एक विशेष श्रेणी के रूप में शामिल किया गया और तदनुसार आरक्षण का लाभ दिया गया। इसे अब 34 वर्षों से पूरे देश में स्वीकृति मिल गई है।'' उन्होंने कहा कि जाति भारतीय समाज की एक वास्तविकता है, लेकिन कांग्रेस कभी भी पहचान की राजनीति में शामिल नहीं हुई और न ही इसका समर्थन किया।

शर्मा के अनुसार, क्षेत्र, धर्म, जाति और जातीयता की समृद्ध विविधता वाले समाज में ऐसी राजनीति लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘कांग्रेस एक ऐसे समावेशी दृष्टिकोण में विश्वास करती है, जो गरीबों और वंचितों के लिए समानता और सामाजिक न्याय के लिए नीतियां बनाने में भेदभाव रहित है।'' उन्होंने 1980 में इंदिरा गांधी के समय पार्टी के नारे ‘न जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर'' का उल्लेख किया।

शर्मा के अनुसार, ‘‘विपक्ष के नेता के रूप में राजीव गांधी ने छह सितंबर 1990 को लोकसभा में अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा था कि अगर हमारे देश में जातिवाद को स्थापित करने के लिए जाति को परिभाषित किया जाता है तो हमें समस्या है। ....अगर संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में जातिवाद को एक कारक बनाया जाएगा तो हमें समस्या होगी।'' उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक रुख से पीछे हटना देश भर के कई कांग्रेसजन के लिए चिंता का विषय है।

शर्मा ने कहा कि इस रुख से पीछे हटना इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की विरासत का अपमान माना जाएगा तथा यह कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों को भी मदद प्रदान करने वाला है। पत्र में उन्होंने कहा, ‘‘यह उल्लेख करना आवश्यक है कि जातिगत भेदभाव की गणना करने वाली आखिरी जनगणना 1931 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी। स्वतंत्रता के बाद, सरकार द्वारा एससी और एसटी को छोड़कर जनगणना में जाति से संबंधित प्रश्नों को शामिल नहीं करने का एक सचेत नीतिगत निर्णय लिया गया था।'' उन्होंने कहा, ‘‘मेरे विचार में जाति जनगणना न तो रामबाण हो सकती है और न ही बेरोजगारी को समाप्त करने के लिए व्याप्त असमानताओं का समाधान हो सकती है। इस महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर लंबे समय से चली आ रही नीति से मौलिक विचलन के प्रमुख दीर्घकालिक राष्ट्रीय निहितार्थ हैं।''

शर्मा ने कहा, ‘‘समावेशी दृष्टिकोण वाली पार्टी के रूप में कांग्रेस को राष्ट्रीय सर्वसम्मति के निर्माता के रूप में अपनी भूमिका को पुनः प्राप्त करने और एक सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण करने का प्रयास करना चाहिए। पार्टी के रुख की अभिव्यक्ति संतुलित होनी चाहिए और क्षेत्रीय एवं जाति आधारित संगठनों के कट्टरपंथी रुख से बचना चाहिए।'' उनका कहना था, ‘‘ कांग्रेस ने पारदर्शिता, लोकतांत्रिक चर्चा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करने में दृढ़ता से विश्वास किया है। मैं इस पत्र को उसी भावना से लिख रहा हूं।''

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