अब आश्वासन नहीं मालिकाना हक चाहिए

Edited By ,Updated: 04 Apr, 2015 04:01 PM

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1947, 1965 एंव 1971 के युद्ध के दौरान हुए रिफ्यूजियों की एकमुश्त सैटलमैंट की मांग 66 वर्षों के बाद ज्यों की त्यों बनी हुई है।

जम्मू (सतीश): 1947, 1965 एंव 1971 के युद्ध के दौरान हुए रिफ्यूजियों की एकमुश्त सैटलमैंट की मांग 66 वर्षों के बाद ज्यों की त्यों बनी हुई है। पीओके डीपी रिफ्यूजी फ्रंट द्वारा कई बार प्रदर्शन किए गए, जेल भरो आंदोलन किए गए, विभिन्न मंत्रियों को ज्ञापन सौंपे गए लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा। 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य के राजनीतिक दलों ने रिफ्यूजियों की दुखती रग पर हाथ रखा लेकिन मरहम नहीं लगाया गया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दैारान पत्र संख्या नं. 33(2)97/सैटलमैंट वो.4 दिनांक 9.8.2000 स्वीकृत हुआ था। वहीं राज्य सरकार ने वर्ष 1965 में 254 सी 1965 एक्ट के तहत रिफ्यूजियों को मालिकाना हक देने के लिए आदेश जारी किए थे लेकिन आज तक उन आदेशों पर अमल नहीं किया गया है। रिफ्यूजियों की मागों के प्रति राज्य व केन्द्र सरकार गंभीर नहीं है।

रिफ्यूजियों को केन्द्र व राज्य सरकार के आश्वासन नहीं चाहिए बल्कि पैकेज चाहिए जिसके लिए वे सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर सरकारें रिफ्यूजियों की मांगों के प्रति इतनी गंभीर होती तो वाधवा कमेटी की सिफारिशों को क्यों नहीं लागू किया गया। वाधवा कमेटी ने 29 नवम्बर, 2007 को अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश कर दी थी लेकिन आज तक कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई।

उन्होंने कहा कि विगत में भी 4 कमेटियां बनी जिसमें से 2 ने अपनी सिफारिशें ही नहीं दीं। प्रधानमंत्री की ओर से नियुक्त किए गए वर्किंग ग्रुप और फिर वार्ताकारों ने सुझाव प्रस्तुत किए,  जिन पर अमल नहीं किया गया। दिल्ली और जम्मू में रिफ्यूजियों के साथ बैठक को एक चुनावी स्टंट बताते हुए रिफ्यूजी संगठनों का कहना है कि जब राज्य में अन्य विस्थापितों को राहत देने की बात आती है तो कोई कमेटी नहीं बनाई जाती और उन्हें तुरंत राहत व अन्य लाभ जारी कर दिए जाते हैं लेकिन पीओके रिफ्यूजियों के साथ हमेशा भेदभाव किया गया।
 

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