Watch Pics: इस पेड़ को काटना से निकलता था खून, पढ़िए क्यों

Edited By ,Updated: 19 Jun, 2015 01:15 PM

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हरियाणा प्रदेश पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर बेहद गौरवमयी एवं उल्लेखनीय स्थान रखता है।

पानीपत: हरियाणा प्रदेश पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर बेहद गौरवमयी एवं उल्लेखनीय स्थान रखता है। हरियाणा की माटी का कण-कण शौर्य, स्वाभिमान और संघर्ष की कहानी बयां करता है। यहां की धरती इतिहास के पन्नों में भी अहम स्थान रखती है। पानीपत में एक ऐसा पेड़ था जिसको काटने पर खून निकलता था, जी हां..चौकिए मत क्योंकि ये मिथ्या कहानी नहीं एक कड़वा सच है क्योंकि जिस जमीन पर यह पेड़ लगा है वहीं पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी गई थी।

पानीपत का तीसरा युद्ध भारत के सैन्य इतिहास की एक क्रान्तिकारी घटना माना जाता है। यह युद्ध 14 जनवरी 1761 को अफगान लुटेरे अहमदशाह अब्दाली की फौज और सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में मराठों के बीच लड़ा गया और इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की जीत हुई थी। यह युद्ध इतना भीषण था कि इसमें हजारों सैनिक मारे गए थे। इस जगह पर इतना रक्तपात हुआ था कि सारी जमीन लाल हो गई थी और आम का पेड़ काला पड़ गया था। जब भी इस पेड़ को काटते थे इसमें से खून रिसता था।

कई वर्षों बाद इस पेड़ के सूखने पर इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया था। सुगन चंद ने इस पेड़ की लकड़ी से खूबसूरत दरवाजे को बनवाया। यह दरवाजा अब पानीपत म्यूजियम में रखा गया है। अब इस जगह पर एक स्मारक बनाया गया है जिसको 'काला अंब' नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि पानीपत की जमीन पर तीन युद्ध लड़े गए थे, सन् 1526, सन् 1556 और सन् 1761 में। इस युद्ध को भारत में मराठा साम्राज्य के अंत के रूप में भी देखा जाता है।

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