Edited By ,Updated: 22 Jul, 2015 10:54 AM
‘ऑर्गनाइजर’ के एक लेख में आईआईटी रुड़की को कैंटीन में नॉन-वेज फूड परोसने के नाम पर ‘हिंदू विरोधी’ करार दिया गया था। इस लेख ने आरएसएस को उलझन में डाल दिया है
मुंबई: ‘ऑर्गनाइजर’ के एक लेख में आईआईटी रुड़की को कैंटीन में नॉन-वेज फूड परोसने के नाम पर ‘हिंदू विरोधी’ करार दिया गया था। इस लेख ने आरएसएस को उलझन में डाल दिया है क्योंकि संघ के कई शीर्ष नेता नॉन-वेज फूड के शौकीन रहे हैं। आरएसएस पर शोध करने वाले और इस संगठन पर 42 किताबें लिख चुके दिलीप देवधर का कहना है कि 2009 में सरसंघचालक बनने तक मोहन भागवत और बालासाहब देवरस नॉन-वेज खाने का आनंद लिया करते थे। इसके अलावा भी बहुत से आरएसएस प्रचारक नॉन-वेज खाना खाते हैं, जिसमें की हिंदू विरोधी होने जैसी कोई बात नहीं है।
ऑर्गनाइजर के एडिटर प्रफुल्ल केतकर का कहना है कि पहली बात यह कि हमारी पत्रिका आरएसएस की माउथपीस नहीं है। यह आरएसएस से प्रेरणा लेने वाला प्रकाशन है। हमने आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ भी कई बार लिखा है। दूसरी बात यह है कि वह लेख संदीप सिंह ने लिखा था, जो आईआईटी से जुड़े रहे हैं। वह हमारा लिखा हुआ संपादकीय नहीं था। हम उनके (संदीप) विचारों का समर्थन नहीं करते हैं, लेकिन हम उसे लिखने की उनकी आजादी के पक्ष में हैं। केतकर ने माना कि सिंह के लेख पर आरएसएस के कई लोगों ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा, ‘अगले अंक में हम उनके विचार भी प्रकाशित करेंगे।’
देवधर के मुताबिक, आरएसएस ने कभी भी मीट या नॉन-वेज फूड पर बैन लगाने की बात नहीं कही। देवधर ने कहा, आरएसएस में नॉन-वेज फूड खाने पर कोई रोक नहीं है। हालांकि मुख्यालय में या संघ के आयोजनों में आप मांसाहार नहीं कर सकते हैं। बाकी समय में आप अपनी पसंद का खाना रेस्तरां या अपने घर पर खाएं। उन्होंने कहा कि अगर नॉन-वेज फूड में मछली, चिकेन और मटन तक का मामला हो तो संघ को कोई दिक्कत नहीं है, दिक्कत बीफ से है।