कोरोना वैक्सीन रिसर्च का पहला स्कैंडल: भारत की 'संजीवनी' के लिए संकट बने 3 इंडियन रिसर्चर्स ?

Edited By Tanuja,Updated: 07 Jun, 2020 03:14 PM

as lancet and nejm authors retract studies on covid

कोरोना वायरस की वैक्सीन खोजने की खबरों के बीच कोरोना काल का पहला रिसर्च सकैंडल सामने आया है जिसने सारी दुनिया को हैरानी में डाल दिया है...

कोरोना वायरस की वैक्सीन खोजने की खबरों के बीच कोरोना काल का पहला रिसर्च सकैंडल सामने आया है जिसने सारी दुनिया को हैरानी में डाल दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस उपचार के लिए मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन के ट्रायल पर पिछले हफ्ते रोक लगा दी थी। WHO ने यह कदम प्रतिष्ठित पत्रिका 'द लैंसेट' की जिस स्टडी के बाद उठाया था अब उसे कोरोना काल के पहले बड़े रिसर्च स्कैंडल के तौर पर देखा जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस स्कैंडस में भारत की 'संजीवनी' के लिए 3 इंडियन रिसर्चर्स ही संकट बने नजर आ रहे हैं।

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दरअसल, इस स्टडी को ही वापस ले लिया गया है क्योंकि इसमें इस्तेमाल किए गए डेटा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए थे। इस स्टडी के लेखकों सपन देसाई, मंदीप मेहरा और अमित पटेल ने अपने एक और पेपर को भी वापस ले लिया है, जो 'द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' (NEJM) में छपा था। मशहूर जर्नल 'साइंस' के लिए चार्ल्स पिलर और केली सरविक की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन रिसर्चर्स ने सपन देसाई की शिकागो की कंपनी सर्जीस्फेयर से अस्पतालों का डेटा लिया था। जब लैंसेट में स्टडी छपने के बाद डेटा को लेकर सवाल उठे तो उसका इंडिपेंडेंट रिव्यू शुरू किया गया, लेकिन कंपनी के नियमों के चलते रिव्यू के लिए डेटा नहीं दिया गया। निजता और क्लाइंट अग्रीमेंट का हवाला देते हुए क्लाइंट कॉन्ट्रैक्ट और ऑडिट रिपोर्ट रिव्यू के लिए सर्वर को नहीं दी गईं इसलिए जिस डेटा के आधार पर तीनों ने पेपर पब्लिश किया था, उसकी वैधता ही अमान्य हो गई और तीनों ने अपना पेपर वापस लेने का ऐलान कर दिया।

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देसाई, पटेल और मेहरा के अलावा ज्यूरिक के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के फ्रैंक रूशिजका भी इस स्टडी के लेखक थे। इसमें दावा किया गया था कि मर्कोलाइड के बिना या उसके साथ भी क्लोरोक्वीइन और HCQ के इस्तेमाल से कोविड-19 मरीजों की मृत्युदर बढ़ जाती है। शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस से संक्रमित 96,000 मरीजों के शामिल होने का दावा किया था। उन्होंने कहा था कि संक्रमित लोगों में से 15,000 को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन या क्लोरोक्वीन दवा एटीबायोटिक के साथ और उसके अलावा दी गई। जिसके आधार पर दावा किया गया कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन या क्लोरोक्वीन दवा लेने वाले मरीजों में मृत्युदर ज्यादा देखी गई। NEJM में छपी स्टडी में भी Surgisphere के डेटा का इस्तेमाल किया गया था। इसके मुताबिक ब्लड प्रेशर के लिए कुछ खास दवाएं लेने से COVID-19 के मरीजों में मौत का खतरा नहीं बढ़ता है, जिसकी आशंका पहले के पेपर्स में जताई गई थी।

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इसे भी मेहरा, पटेल और देसाई के साथ-साथ बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के श्रेराम कुई और सिनसिनाटी के क्राइस्ट हॉस्पिटल के टिमोथी हेनरी ने वापस ले लिया। माफीनामे में कहा गया कि प्राइमरी डेटा को न ही लेखकों को दिया गया और न ही रिव्यू के लिए, इसलिए उसे वैध नहीं कहा जा सकता। यही नहीं, Surgisphere के डेटा के आधार पर एक तीसरा पेपर भी मेहरा, पटेल और देसाई ने दूसरे लेखकों के साथ मिलकर ऑनलाइन प्रीप्रिंट के तौर पर छापा था। इसमें ivermectin नाम की ऐंटी-पैरासिटिक दवा के COVID-19 के कारण मौतों को कम करने का दावा किया गया था। इसके बाद लैटिन अमेरिका के कई देशों ने इस दवा को मंजूरी दे दी थी। हालांकि, लैंसेट के पेपर के बाद Surgisphere के डेटा पर सवाल उठने लगे।

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