अयोध्या विवाद : वीपी सिंह इसलिए नहीं निकाल पाए थे निदान

Edited By Seema Sharma,Updated: 17 Oct, 2019 10:33 AM

ayodhya dispute vp singh was unable to remove the diagnosis

साल 1990 में भी लगा था कि अयोध्या कांड का सुखांत होगा। केंद्र और राज्य में जनता दल की सरकारें बन चुकी थीं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार तो भाजपा के समर्थन से ही चल रही थी। अब रास्ता निकलने की संभावना दिखने लगी थी पर हुआ इसका ठीक...

नेशनल डेस्कः साल 1990 में भी लगा था कि अयोध्या कांड का सुखांत होगा। केंद्र और राज्य में जनता दल की सरकारें बन चुकी थीं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार तो भाजपा के समर्थन से ही चल रही थी। अब रास्ता निकलने की संभावना दिखने लगी थी पर हुआ इसका ठीक उलटा। अयोध्या के सवाल पर जितनी दूरी विहिप और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी में थी, उससे ज्यादा दूरी प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह और यू.पी. के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के बीच थी। परस्पर अविश्वास, धोखाधड़ी और षड्यंत्रों की बुनियाद पर दोनों के संबंध खड़े थे। उस दौर में मुलायम सिंह यादव अक्सर निजी और गोपनीय बातों पर मुझसे चर्चा करते थे।

 

मुलायम का मानना था कि वी.पी. सिंह मंदिर के बहाने उनकी सरकार गिराने में लगे हैं, हर रोज उनके खिलाफ नए षड्यंत्र करते हैं। मुलायम आशंकित थे कि प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह साधु-संतों से बातचीत के बहाने उन्हें बुलाते हैं और उनके खिलाफ भड़काते हैं। अयोध्या को लेकर वी.पी. सिंह पर बीजेपी का जबरदस्त दबाव था, क्योंकि इस मुद्दे पर 2 सीटों से 85 सीटों तक का उछाल बीजेपी को मिला था। वी.पी. सिंह सरकार ने जब अयोध्या पर झगड़ रहे कट्टरपंथियों से बातचीत का सिलसिला शुरू किया, तो मुलायम ने उनसे टकराव की नीति अपना ली। वी.पी. सिंह और मुलायम सिंह के बीच गहरे पाले ङ्क्षखच गए थे। उधर वी.पी. सिंह से हिसाब चुकाने के लिए मुलायम सिंह यादव ने अतिवादी लाइन ली, वह बाबरी समर्थकों के पाले में चले गए। वी.पी. सिंह के साथ इस शीतयुद्ध में मुलायम की पीठ पर हाथ चंद्रशेखर का था, जो प्रधानमंत्री पद की दौड़ में पिछड़ गए थे। मुलायम के ‘बाबरी समर्थक स्टैंड’ से मजहबी धुव्रीकरण तेज होता गया। समाज मंदिर और मस्जिद में बंट गया। रास्ता निकालने के लिए बीजेपी की सहमति से केंद्र सरकार ने अयोध्या की विवादित जमीन के अधिग्रहण का अध्यादेश लागू किया, तो मुख्यमंत्री के तौर पर मुलायम ने ऐलान किया कि वह इसे लागू नहीं होने देंगे।

 

वी.पी. सिंह ने एक साक्षात्कार में बताया कि जब मैं साधु-संतों से अपने घर 28 लोधी एस्टेट में बात कर रहा था, उसी वक्त अपने हाथ से कारसेवा टालने की एक अपील लिखकर विहिप नेताओं को दी। मेरी अपील का असर हुआ और संतों से 4 महीने का वक्त मिला। लेकिन दूसरी ओर वी.पी. सिंह ने बताया, जिन संतों से मैं बात कर रहा था, उन्हें ही मुलायम सिंह ने बाद में गिरफ्तार करवा दिया, जिससे बात बनने की जगह बिगड़ गई। उन संतों को मुझे ही छुड़वाना पड़ा। ऐसे मामले सुलझाने का जरिया अदालत हो सकती थी पर साधु-संत इस बात पर अड़े थे कि वे अदालत की नहीं सुनेंगे। यह आस्था का सवाल है जिसका फैसला तर्क से नहीं हो सकता है। वी.पी. सिंह ने उनसे कहा, ‘मुझे तो संविधान के दायरे में ही काम करना पड़ेगा इसलिए मैंने इस मुद्दे पर दोनों पक्षों से बात करने के लिए मधु दंडवते, जॉर्ज फर्नांडीस और मुख्तार अनीस की एक कमेटी बना दी।’

 

वी.पी. सिंह के मुताबिक, ‘मैंने जानबूझ कर इस कमेटी में मुलायम सिंह यादव और गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को नहीं रखा था, क्योंकि इन दोनों को अंतिम फैसला लेना था। अगर ये दोनों संवाद में उलझ गए तो अंतिम फैसला कौन लेता? लेकिन मुलायम ने इसे गलत समझा और मेरे खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मुलायम को मेरे विरोधियों ने यह समझाया कि प्रधानमंत्री इस मामले में आपको किनारे कर फैसले ले रहे हैं, ताकि आपकी सरकार को गिराने में आसानी हो।’ वी.पी. सिंह इस बात से परेशान रहते थे कि मुलायम ने यह झूठी बात उनके कई सहयोगियों से शिकायत के तौर पर कही थी। इन्हीं बातों से लगता है कि वी.पी. सिंह अयोध्या का निदान नहीं निकाल पाए थे।
-हेमंत शर्मा

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