परंपरागत पोशाक ‘फिरन’ पर प्रतिबंध से कश्मीर में  सियासी घमासान

Edited By Monika Jamwal,Updated: 19 Dec, 2018 01:15 PM

ban on phiran a political threat in kashmir

शिक्षा विभाग द्वारा अपने एक कार्यालय में कश्मीर के परंपरागत पोशाक ‘फिरन’ पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद राज्य में सियासी घमासान शुरु हो गया है।

श्रीनगर : शिक्षा विभाग द्वारा अपने एक कार्यालय में कश्मीर के परंपरागत पोशाक ‘फिरन’ पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद राज्य में सियासी घमासान शुरु हो गया है। इसके अलावा प्रतिबंध के प्रति लोगों ने भी आलोचना की है। इतना ही नहीं, कुछ लोगों ने इसे कश्मीरी संस्कृति पर हमले के रुप में करार दिया है। बता दें कि उतर कश्मीर में कुपवाड़ा जिला के हंदवाडा क्षेत्र में एक जोनल शिक्षाधिकारी ने अपने कार्यालय के सभी अधिकारियों को फिरन पहन कर आने से मना करते हुए सही ड्रेसकोड में ही आने का निर्देश जारी किया है। यह निर्देश ही हंगामे का कारण बन गया है। 


मेरे पिता भी पहनते हैं :उमर
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा लगाई गई फिरन पर पाबंदी की निंदा करते हुए कहा कि स्कूल शिक्षा विभाग को अपना ऐसा आदेश वापस लेना चाहिए। उन्होंने आगे लिखा है कि मुझे समझ में नहीं आता कि आखिर फिरन पर पाबंदी क्यों लगाई गई है। यह मूर्खतापूर्ण आदेश है। फिरन तो सर्दियों में कश्मीरियों के लिए खुद को गर्म रखने का एक व्यावहारिक तरीका ही नहीं हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा बन चुका है। उमर ने आगे लिखा है कि मैं और मेरे पिता डॉ फारुक अब्दुल्ला कई बार सरकारी समारोहों में भी फिरन पहनकर शामिल हुए हैं। आगे भी हम ऐसा करते रहेंगे।

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हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब कश्मीर में फिरन को लेकर किसी जगह कथित पाबंदी को लेकर विवाद पैदा हुआ है। इससे पहले 2014 में श्रीनगर स्थित सेना की चिनार कोर मुख्यालय में होने वाले अधिकारिक सैन्य समारोहोंं में सैन्य प्रशासन ने स्थानीय पत्रकारों को फिरन न पहन कर आने का आग्रह किया था। लेकिन सेना का यह आग्रह सियासी विवाद का कारण बन गया और बाद में सैन्य प्रशासन ने इसे वापस ले लिया था। उस समय भी तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला इस विषय पर खूब मुखर हुए थे।

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पीडीपी भी हुई मुखर
उधर, पीडीपी ने भी फिरन पर आदेश वापस लेने की मांग उठाई है। पीडीपी के प्रवक्ता रफी मीर ने कहा कि इस तरह के आदेश ऐसे अधिकारी जारी करते हैं  जिन्हें कश्मीरी संस्कृति की समझ नहीं है और इन आदेशों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

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जेडीईओ ने दिया था आदेश
कश्मीर में लंगेट के जोनल शिक्षाधिकारी ने गत सप्ताह एक आदेश जारी किया था। इसमें उन्होंने अपने अधीनस्थ कार्यालय में आने वाले सभी सरकारी कर्मियों व अधिकारियों से निर्देश दिए थे कि वे कार्यालय में फिरन, स्नास्लीपर और प्लास्टिक के जूते पहन कर न आएं। सभी अधिकारियों व कमर्चारियों से आधिकारिक काम से कार्यालय में आने पर ऑफिशियल ड्रेस में ही आने की नसीहत दी गई थी। वहीं, आरोप है कि जोनल शिक्षाधिकारी के इसी आदेश के आधार पर वादी में विभिन्न जिलों में मुख्य शिक्षा अधिकारियों द्वारा मौखिक निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

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परंपरा और फैशन का मिश्रण
फिरन, सर्दियों में गर्म कपड़ों पर अक्सर एक ढीला बाहरी पोशाक पहना जाता है जिसे कश्मीर में लगभग 600 साल पहले मध्य पूर्व से शुरु किया गया था। स्थानीय समुदायों की संस्कृति , सामाजिक स्थिति और बोली में मतभेदों के बावजूद सर्दियों के ठंडे तापमान से लडऩे के लिए फिरन को कश्मीरी समाज का एक बड़ा स्तर माना जाता है। हालांकि, पिछले कुछ सालों से परंपरागत पोशक को घाटी में फैशनेबल बना दिया गया है, जिसके चलते लोगों खासतौर से युवाओं को सर्दियों से लडऩे और खूबसूरत दिखने का दुगना मौका मिलता है। सरकारी आदेश को सोशल मीडिया पर भी बड़े पैमाने पर आलोचना का सामना करना पड़ा। 

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हो रही है कड़ी आलोचना
एक रेस्तरां मालिक ने आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि यह अजीब, अपमानजनक और संस्कृति के खिलाफ है। इस तरह के बकवास के साथ कौन सामने आया है। 
एक निवासी जरगर ने फेसबुक पर लिखा कि फिरन को सिर्फ सांस्कृतिक कलाकृतियों के रुप में न गिने। यह उससे भी ज्यादा है। फिरन सर्दियों में आवश्यक पोशाक है। 

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मेयर ने नहीं की पैरवी
हालांकि, श्रीनगर नगर निगम के मेयर जुनैद अजीम मट्टू जो अपने कार्यालय में फिरन पहनते हैं ने ट्वीटर पर लिखा कि हर कार्यस्थल का एक उचित गैर आक्रामक सामान्य ड्रेस कोड होने का अधिकार है। किसी ने फिरन पर युद्ध घोषित नहीं किया है। अधिकांश कार्यस्थलों पर डेनिम पर प्रतिबंध हैं। आराम करें। हमारे दमन और ध्यान के लायक होने वाले बुहत अधिक मुद्दे हैं। कोई सांस्कृतिक आक्रमण नहीं हैं। चलो आगे बढ़ते हैं। 

 
 

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