Edited By prachi upadhyay,Updated: 05 Sep, 2019 01:50 PM
महान दर्शनिक अरस्तु ने कहा कि, ‘जो लोग बच्चों को अच्छी तरह से शिक्षित करते हैं उनको उनसे अधिक सम्मानित किया जाना चाहिये जो उन्हें पैदा करते हैं, ये उन्हें केवल उन्हें जीवन देते हैं, जबकि वो उन्हें अच्छी तरह से जीने की कला सिखाते हैं।’ शिक्षा किसी...
नेशनल डेस्क: महान दर्शनिक अरस्तु ने कहा कि, ‘जो लोग बच्चों को अच्छी तरह से शिक्षित करते हैं उनको उनसे अधिक सम्मानित किया जाना चाहिये जो उन्हें पैदा करते हैं, ये उन्हें केवल उन्हें जीवन देते हैं, जबकि वो उन्हें अच्छी तरह से जीने की कला सिखाते हैं।’ शिक्षा किसी की भी जिंदगी का एक जरूरी और अहम हिस्सा होती हैं। और शिक्षक उससे भी ज्यादा श्रेष्ठ। वैसे तो स्कूल-कॉलजों में आपको हमको बहुत से शिक्षक मिलते है। लेकिन कुछ शिक्षक ऐसे भी होते जिनके विचार और शिक्षा के प्रति समपर्ण उनको सही मायने में एक टीचर, एक गुरू बना देता है। आज शिक्षक दिवस के मौके पर हम आपको ऐसे ही कुछ वीर शिक्षकों की कहानी से रुबरू कराएंगे।
बाबर अली
पश्चिम बंगाल का एक जिला है मुर्शिदाबाद। जहां एक नौ साल का बच्चा स्कूल जाता था। लेकिन उसका दोस्त गरीबी के कारण स्कूल जाने की बजाय कूड़ा-कचरा बीनने जाता था। ये बात उस मासूम के दिल में घर कर गई और उसने 9 साल की उस कच्ची उम्र में ही दूसरों को शिक्षित करने का फैसला लिया। ये कहानी है बाबर अली की जिनकी शिक्षा के प्रति लगन ने उनको दुनिया के सबसे छोटी उम्र के हेडमास्टर बना दिया। ये शिक्षा के प्रति उनकी लगन ही थी कि पांचवीं कक्षा के छात्र बाबर अली ने अपने घर के पीछे के आंगन में गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। जिसके बाद 2002 में बाबर ने आनंद शिक्षा निकेतन खोला जहां गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। इतना ही नहीं यहां पढ़नेवाले बच्चों को कपड़े, किताबें और पढ़ने लिखने की अन्य सामग्री भी मुहैया करवाई जाती हैं। महज 8 बच्चों के साथ शुरू हुई इस संस्थान में आज 800 बच्चें पढ़ते हैं और बाबर इस स्कूल के प्रिसिंपल है। बाबर को उनके इस नेक काम के लिए कई अवॉर्ड और पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। ये बाबर अली का समर्पण ही था कि खुद की हजार रूकवटों और तकलीफों के बावजूद बाबर ने कभी अपने कदम पीछे नहीं लिए। और आज शिक्षा के प्रति उनका ये समर्पण एक मिसाल है।
भारती सिंह
12 साल की उम्र में हर रोज 2 मील चलकर पढ़ाने जाने की ललक आज के वक्त में बहुत ही कम टीचरों में दिखाई देती है। लेकिन बिहार की भारती सिंह के लिए शिक्षा का दान महादान के समान था, इसीलिए महज 12 साल जैसी छोटी सी उम्र से ही शिक्षा के प्रति भारती के समपर्ण ने उनको इतना जिम्मेदार और सजग बना दिया। भारती जब बहुत छोटी थी तब उनको बिहार के एक रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया गया। जहां उनको एक आदमी ने गोद लिया। वो आज भारती के पिता है। खुद बेहद गरीबी में रहनेवाले भारती के इस पिता ने उनकी पढ़ाई लिखाई का पूरा ख्याल रखा। इतना ही नहीं उन्होने भारती को दूसरों को शिक्षित करने के लिए भी प्रेरित किया। भारती पहले खुद हर रोज पढ़ने के लिए अपने घर से स्कूल जाती हैं। फिर उसके बाद वो अपने गांव और आस-पास के करीब 50 गांवों के बच्चों जिनकी उम्र 4 से 10 साल के बीच है उनको हिंदी, अंग्रेजी और गणित पढ़ाती हैं। शिक्षा के प्रति भारती की इस मुहिम को सलाम।
बरून बिस्वास
बरून बिस्वास शिक्षा के क्षेत्र के शहीद है। लोगों को अन्याय के खिलाफ जागरूक करनेवाले बरुन अपनी इसी निर्भीकता और साहस के कारण शायद बहुत लोगों को खटकने लगे थे और 2012 को महज 39 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई। बरून पश्चिम बंगाल के सूतिया इलाके रहनेवाले थे। वो यहां गरीब बच्चों को पढ़ाते थे। बरुन बिस्वास एक आईएएस ऑफिसर बनना चाहते थे। लेकिन बच्चों को पढ़ाने और अपने इलाके की बेहतरी के काम जुटे रहने की वजह से उनको पढ़ने के लिए काफी कम वक्त मिल पाता था। हालांकि बरुन ने राज्य के सिविल सर्विस एग्जाम को क्वालिफाई कर लिया था। लेकिन अपने इलाके के विकास के प्रति उनके रूझान के कारण उन्होने इस नौकरी से इंकार कर दिया। बरून एक टीचर के साथ-साथ एक सोशल ऐक्टिविस्ट भी थे। सूतिया भारत-बांग्लादेश के बॉर्डर के पास स्थित है। ऐसे में यहां दशकों से आपराधिक और उग्रवादी गिरोह काफी सक्रिय रहे है। जो यहां सभी प्रकार की अवैध गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं। ये आपराधिक तत्व यहां की गरीब जनता को हर तरह से परेशान करते आए थे। अगर कोई उनके किसी भी काम को लेकर मना करता या उसमें खलल पैदा करता तो ये गुंडे उसे पूरे परिवार के साथ मारपीट करते, उन्हें मार देने का धमकी देते, उनके अंदर डर पैदा करने के लिए घर की महिलाओं के गैंगरेप तक की धमकी देते। जिस कारण इस असामाजिक कुरीतियों के खिलाफ किसी की भी आवाज उठान की हिम्मत नहीं हुई। ऐसे में बरुन ने इन लोगों के लिए आवाज उठाई और उनको समझाया कि डर के रहने के बजाय लड़ना जरूरी है। हमें अपने परिवार और अपने इलाके की रक्षा खुद करनी होगी। बरून की ये आवाज लोगों में साहस जगाने लगी और वो अपने हक के लिए लड़ने को तैयार होने लगे। लेकिन ये साहस आपराधिक तत्वों को शायद खलने लगा। लोगों में अपना डर खत्म होता देख इन गुंडों ने बरुन को खत्म कर देने का फैसला किया और 5 जुलाई 2012 को बरून बिस्वास की हत्या कर दी गई। लेकिन अपने साहसिक और अन्याय के प्रति लड़ने के जज्बे ने बरून को शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा के लिए अमर बना दिया।