राहुल ‘खाना’ और मोदी ‘लगाना’, चुनाव से लेकर बरसात तक सट्टा बाजार में लगते हैं दांव

Edited By vasudha,Updated: 14 Apr, 2019 10:48 AM

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राजस्थान के जोधपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा है फलौदी। यहां का सट्टा बाजार सटोरियों के बीच सबसे विश्वसनीय माना जाता है। यहां बरसात से लेकर चुनावी नतीजों तक हर बात पर सट्टा लगाया जा सकता है...

नेशनल डेस्क: राजस्थान के जोधपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा है फलौदी। यहां का सट्टा बाजार सटोरियों के बीच सबसे विश्वसनीय माना जाता है। यहां बरसात से लेकर चुनावी नतीजों तक हर बात पर सट्टा लगाया जा सकता है। इस बाजार का नेटवर्क पूरे देश में फैला है। नेटवर्क से आने वाली सूचनाओं के आधार पर ही रेट तय किए जाते हैं। थाने सें चंद कदम की दूरी पर यह धंधा बेरोक टोक चलता है। टीन के छोटे-छोटे खोखे सरकारी दफ्तरों की तरह सुबह ठीक दस बजे खुल जाते हैं और शाम पांच बजे बंद होते हैं। तब तक यहां रोज करोड़ों का वारा-न्यारा हो चुका होता है। 

‘खाना’ और ‘लगाना’
इस सट्टा बाजार में दो शब्द चलते हैं ‘खाना’ और ‘लगाना’। जब जीत की संभावना बहुत कम और जोखिम ज्यादा हो तो उसे ‘खाना’ कहा जाता है। ‘खाना’ में दाव लगाकर अगर जीत मिलती है तो लाभ कई गुना होता है। राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना को यह सट्टा बजार बहुत कम आंक रहा है। राहुल गांधी का रेट 25 रुपये है। ऐसे में राहुल गांधी पर दाव लगाना यहां ‘खाना’ कहलाता है। अगर राहुल प्रधानमंत्री बनते हैं तो ‘खाना’ दाव लगाने वाले को एक रुपये के बदले पच्चीस रुपये मिलेंगे। 

मोदी का भाव 20 पैसे
फलौदी का सट्टा बाजार नरेंद्र मोदी के फिर प्रधानमंत्री बनने की संभावना सबसे मजबूत मान रहा है और मोदी का रेट 20 पैसे है। संभावना ज्यादा होने से यह दाव ‘लगाना’ कहा जाएगा। मोदी पर दाव लगाने वाले को एक रुपये के बदले सिर्फ 20 पैसे मिलेंगे। जो दाव जीतते हैं पैसा उनके मोबाइल खाते में नतीजे आते ही ट्रांसफर कर दिया जाता है। हारने वालों की राशि जब्त कर ली जाती है।

रोजगार का कोई और साधन नहीं
फलौदी कस्बा जोधपुर से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर बसा है। यहां न फैक्टरियां हैं और न अच्छी खेती। ऐसे में रोजगार के अन्य साधन नहीं है। पुलिस और सरकार यहां धड़ल्ले से चलते सट्टे पर कोई रोक टोक नहीं करती। बल्कि सटोरिये दावा करते हैं कि देश के कई नेता फोन कर दाव लगाते हैं। इनमें विधायक, सांसद और मंत्री तक शामिल होते हैं।

15 दिन पहले लगता है बरसात का सट्टा
बारिश होगी या नहीं होगी? होगी तो कितनी होगी? क्या यह इतनी होगी कि छत्त का पानी बहकर नीचे तक आए। इन सब बातों पर सट्टा 15 दिन पहले लगता है।  

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