ऑफ द रिकॉर्डः जन्मजात लड़ाका ममता बनर्जी इस बार की जंग में दलदली जमीन पर उतर गईं

Edited By Pardeep,Updated: 20 Apr, 2021 06:24 AM

birthright fighter mamta banerjee landed in the marshy ground in this battle

तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी जन्मजात लड़ाका होंगी और विगत में उन्होंने कई जंगें जीती होंगी परंतु 2021 के चुनाव में वह जिस युद्धभूमि में उतरी हैं, वह दलदली है। 2011 में जब ममता ने वाम किला फतेह किया था, उसके बाद से उनके 10 साल के शासन के खिलाफ

नई दिल्लीः तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी जन्मजात लड़ाका होंगी और विगत में उन्होंने कई जंगें जीती होंगी परंतु 2021 के चुनाव में वह जिस युद्धभूमि में उतरी हैं, वह दलदली है। 2011 में जब ममता ने वाम किला फतेह किया था, उसके बाद से उनके 10 साल के शासन के खिलाफ जनता की विमुखता के साथ-साथ कई और समस्याएं हैं जो उनके सामने मुंह बाय खड़ी हैं। 

दूसरे, ममता के कई वरिष्ठ, ताकतवर एवं विश्वासपात्र नेता उनका साथ छोड़ गए हैं। तीसरे, ममता ने अपने भतीजेे अभिषेक बनर्जी को आगे बढ़ाकर बेवजह विपक्षी दलों को एक मुद्दा दे दिया है। अभिषेक बनर्जी को लोकसभा का टिकट दिया गया था, उसके बाद उन्होंने पार्टी में अपनी चलानी शुरू कर दी जिससे वरिष्ठ नेता असहज महसूस करने लगे। ममता के भतीजे की चढ़त ने ममता को भाई-भतीजावाद का तमगा दे दिया है। ममता इससे बच सकती थीं। 

एक बड़ा कारक यह है कि भाजपा ने हिंदुओं को एकजुट करके राज्य में मतदाताओं को सफलतापूर्वक एक तरफ कर लिया है। मुस्लिम मतदाता बंटे हैं या नहीं, यह 2 मई को पता चलेगा। यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि पिछले वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव में ए.आई.एम.आई.एम. के ओवैसी ने राजद-कांग्रेस गठबंधन के मताधार को भारी नुक्सान पहुंचाया था। प. बंगाल में एक नया मुस्लिम संगठन ममता के वोट बैंक को नुक्सान पहुंचाएगा।

सबसे बड़ी बात, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बंगलादेश दौरे में ऐतिहासिक मतुआ मंदिर जाने से भाजपा को बड़ा फायदा पहुंचा है। मतुआ समुदाय राज्य की 40-45 सीटों पर अपना प्रभाव रखता है। एक और महत्वपूर्ण कारक है सी.बी.आई., ई.डी., एन.आई.ए., एन.सी.बी. जैसी केंद्रीय जांच एजैंसियों की भूमिका जो इस विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ ज्यादा ही नजर आ रही है। इन सब बातों को देखते हुए क्या यह कहा जा सकता है कि बाजी पलट गई है? 

सबसे मजेदार बात यह है कि तृणमूल के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा करवाए गए आंतरिक सर्वे के लीक होने के बाद दोनों पाॢटयां आमने-सामने आ गई हैं। सर्वे में दिखाया गया है कि तृणमूल हार रही है। सर्वे से प्रफुल्लित भाजपा ने सब तरफ यह सुसमाचार फैला दिया जबकि किशोर का संगठन (आई.पी.ए.सी.) खंडन के बाद खंडन दे रहा है परंतु नुक्सान तो हो चुका है। ममता बलिष्ठ भुजाओं के साथ नहीं लड़ रही हैं।        

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