दिल्ली विस चुनाव: चुनावों में किस पार्टी पर मेहरबान होगा, मुस्लिम मतदाता

Edited By Ashish panwar,Updated: 14 Jan, 2020 08:17 PM

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दिल्ली में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक दल वोटरों को रिझानें की कोशिशों में जुट गये हैं। भाजपा के लिए नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का मुद्दा चुनावी नतीजों पर खासा असर डाल सकता है। विशेषकर, दिल्ली के...

नेशनल डेस्कः दिल्ली में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक दल वोटरों को रिझानें की कोशिशों में जुट गये हैं। भाजपा के लिए नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का मुद्दा चुनावी नतीजों पर खासा असर डाल सकता है। विशेषकर, दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में पिछले दिनों caa ,nrc और npr जैसे मुद्दों पर जिस तरह का विरोध देखने को मिला है वह bjp की चिंता को बढ़ा सकता है। हालाकि, दिल्ली में मुसलिम भाजपा को वोट नहीं करेगा ऐसा भी नहीं है। लेकिन विपक्ष को मुस्लिमों को डराने औऱ गुमराह करने का हथियार जरूर मिल गया है। इस ड़र के चलते पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद दिल्ली में घर- घर जाकर लोगों से मिलकर सीएए और एनपीआर जैसे मुद्दों के बारे में जागरुकता अभियान चला रहे है। गौरतलब है कि, पिछले विधानसभा चुनाव की तरह मुस्लिम वोटरों ने अगर आम आदमी पार्टी का साथ दिया तो वह दुबारा सत्ता में आ सकती है। इसके उलट अगर मुस्लिम वोटर लोस चुनाव की तरह कांग्रेस के साथ गया, तो इससे कांग्रेस को लाभ मिलेगा। वहीं, मुस्लिन वोटों का बंटवारा अगर आप और कांग्रेस में हो गया तो, फिर भाजपा को इसका सीधा लाभ मिल सकता है। ज्ञात हो कि, bjp दिल्ली की सत्ता से पिछले 21 सालों से दूर है और इस बार वह सत्ता में लौटने के लिए हर संभव कोशिश करेगी।

  क्यों महत्वपूर्ण है मुस्लिम वोट 

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दरअसल, दिल्ली में मुसलमान वोटर परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक रहा है। लेकिन पिछले आम आदमी पार्टी बनने के बाद से मुस्लिमों का झुकाव आप की तरफ मुड़ गया है। इसी के परिणाम स्वरूप पिछले विस चुनावों में आप पार्टी को दिल्ली की कुल 70 विधान सभा सीटों में 67 सीटे मिली थी। दिल्ली में वर्तमान में आम आदमी पार्टी मुख्य रूप से मुस्लिमों की पहली पसंद बनती हुई नजर आ रही है। लेकिन माना जाता है कि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम वोट पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ वापस आया था। यही कारण रहा कि लोकसभा चुनावों में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया और सात सीटों में से पांच सीटों पर वह वोट फीसद के मामले में  दूसरे स्थान पर रही थी।


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कांग्रेस लोक सभा चुनाव परिणाम से बेहद उत्साहित है और मानकर चल रही है कि विधानसभा चुनाव में भी वह अपना यह प्रदर्शन दोहराएगी। अगर मुस्लिम वोटर कांग्रेस की तरफ झुकते है तो इसका सीधा असर आम आदमी पार्टी को नुकसान के तौर पर होगा। जिस कारण भाजपा को सीधा फायदा होने की उम्मीद जताई जा रही है। इसलिए माना जा रहा है कि मुस्लिम वोटर इस बार  टैक्टिकल वोटिंग कर सकता है और वह भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए आप को समर्थन कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो आप फिर से दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो सकती है। 

 

कांग्रेस को मुस्लिम वोटों का भरोसा

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दिल्ली कांग्रेस के एक शीर्ष नेता ने कहा है कि, मुसलमान यह देख रहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उसकी लड़ाई कौन लड़ रहा है। कांग्रेस लगातार उसके मुद्दों को उठा रही है और केंद्र के सामने डटकर खड़ी है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने लगातार उसकी आवाज बुलंद की है। कांग्रेस नेता शशि थरूर प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े हुए दिखाई दिये हैं। दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा प्रदर्शनकारियों के पास जाकर सहानुभूति व्यक्त कर चुके हैं। वहीं अरविंद केजरीवाल इस मामले पर पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने इसका कड़ा विरोध तो जरूर दर्ज कराया है, लेकिन वो प्रदर्शनकारियों के बीच जाकर उनसे नहीं मिले, इसलिए कांग्रेस को लगता है कि, उन्हें इसका फायदा जरूर मिलेगा।

 

भाजपा की नजर, 51 फीसदी वोटों पर

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दिल्ली भाजपा के महामंत्री राजेश भाटिया ने मुस्लिम मतदाताओं के सवाल पर कहा कि, यह बात बिलकुल गलत है कि, मुसलमान वोटर भाजपा को वोट नहीं करता। उनके मुताबिक तीन तलाक विरोधी कानून लाकर केंद्र ने प्रगतिशील मुसलमानों को अपने साथ जोड़ा है और उनका वोट भाजपा को मिलेगा। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का लक्ष्य हर सीट पर 51 फीसदी वोटरों को अपने साथ जोड़ने का हैं। इसलिए हमारे लिए यह बात मायने नहीं रखती है कि किस वर्ग का वोट कितना है। हमें सभी वोटरों को अपनी सरकार की नीतियों के बारे में बताकर सबको साथ लेकर चलेगे।

 

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को मिले थे सबसे ज्यादा वोट

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पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा को कुल 56.58 फीसदी वोट मिले थे। उसके वोटिंग परसेंटेज में 10.18 फीसदी की वृद्धि हुई थी। वहीं, कांग्रेस 22.46 फीसदी वोटों के साथ दूसरे स्थान पर तो 18 फीसदी वोटों के साथ आम आदमी पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी। अगर सीटों के अनुसार बात करें, तो चांदनी चौक से भाजपा के टिकट पर जीते डॉक्टर हर्षवर्धन को 52.94 फीसदी वोट मिले थे। उत्तर-पूर्वी सीट से जीते मनोज तिवारी को 53.90 फीसदी वोट मिले थे। पूर्वी दिल्ली से भाजपा उम्मीदवार गौतम गंभीर को 55.35 फीसदी, तो नई दिल्ली सीट से मीनाक्षी लेखी को 54.77 फीसदी वोट मिले थे। उत्तर-पश्चिम सीट से पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हंसराज हंस को 60.49 फीसदी वोट मिला थे, वहीं, पश्चिमी दिल्ली सीट से प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को 60.05 फीसदी वोट मिले थे। दक्षिण दिल्ली सीट से भाजपा उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी 56.58 फीसदी वोट पाने में कामयाब रहे थे।

इस तरह दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा आधे से अधिक वोट पाने में कामयाब रही थी। अगर विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से तुलना करें, तो भाजपा दिल्ली की 65 सीटों पर आगे रही थी, तो वहीं, कांग्रेस ने पांच सीटों पर बढ़त हासिल की थी। आम आदमी पार्टी किसी भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त बनाने में नाकाम रही थी। बूथों के लिहाज से भी भाजपा दिल्ली के 12 हजार से ज्यादा बूथों पर नंबर एक रही थी।   

 

इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का है दबदबा

मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, सीलमपुर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, वजीरपुर और तुगलकाबाद मुस्लिम बहुल आबादी वाली सीटें हैं, जहां हार और जीत की चाबी मुस्लिम मतदाता ही तय करते हैं। वहीं तिमारपुर, त्रिलोकपुरी, गांधीनगर, शकूरबस्ती और सदर बाजार जैसे क्षेत्रों में भी मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में रहती है। यही कारण है कि कोई भी पार्टी मुस्लिम मतदाताओं को हल्के में नहीं लेना चाहती है।

 

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