Edited By vasudha,Updated: 22 Jul, 2021 11:12 AM
अंतरिक्ष की गहराइयों और चांद तारों की चाल पर नजर रखने वालों के लिए 22 जुलाई का दिन इतिहास में एक बड़ी घटना के साथ दर्ज है। दरअसल 2019 को आज ही के दिन चंद्रमा के अनछुए पहलुओं का पता लगाने के लिए चंद्रयान-2 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष...
नेशनल डेस्क: अंतरिक्ष की गहराइयों और चांद तारों की चाल पर नजर रखने वालों के लिए 22 जुलाई का दिन इतिहास में एक बड़ी घटना के साथ दर्ज है। दरअसल 2019 को आज ही के दिन चंद्रमा के अनछुए पहलुओं का पता लगाने के लिए चंद्रयान-2 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से शान के साथ रवाना किया गया।
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इसे ‘बाहुबली' नाम के सबसे ताकतवर और विशाल राकेट जीएसएलवी-मार्क ।।। के जरिए प्रक्षेपित किया गया। इसे देश के अंतरिक्ष इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया है। चंद्रयान-2 जब चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया था। प्रधानमंत्री मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय बेंगलुरू पहुंचे थे, लेकिन आख़िरी पल में चंद्रयान-2 का 47 दिनों का सफ़र अधूरा रह गया था।
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इसरो का विक्रम लैंडर 2.1 किलोमीटर चांद की सतह से दूर था, तभी ग्राउंट स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यह एक साइंटिफिक मिशन था और इसे बनने में 11 साल लगे थे। इसका ऑर्बिटर सफल रहा और लैंडर, रोवर असफल रहे। बसे पहले 2008 में तत्कालीन UPA सरकार ने इस मिशन को मंजूरी दी थी. 2009 में डिजाइन तैयार कर लिया गया था. पहले इसे 2013 में लॉन्च किया जाना था. रूस द्वारा लैंडर नहीं मिलने पर इसे अप्रैल 2018 तक टाल दिया गया था। उसके बाद कई बार लॉन्च करने का फैसला टाला गया और आखिरकार 15 जुलाई 2019 को अब इसे लॉन्च किया गया।