चंद्रयान-2: दहशत के वो 15 मिनट, जब लैंडर विक्रम से टूटा ISRO का संपर्क

Edited By Anil dev,Updated: 07 Sep, 2019 09:50 AM

chandrayaan 2 vikram a sarabhai scientist

चांद की सतह पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग आज देर रात (6-7 सितम्बर की मध्य रात्रि) करीब 2 बजे करीब होनी थी। हालांकि, यह चुनौती इतनी आसान नहीं थी। लैंडिंग के अंतिम 15 मिनट बेहद चुनौतीपूर्ण थे। पूरे मिशन की कामयाबी इन अंतिम 15 मिनट पर ही टिकी थी। मगर...

नई दिल्ली: चांद की सतह पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग आज देर रात (6-7 सितम्बर की मध्य रात्रि) करीब 2 बजे करीब होनी थी। हालांकि, यह चुनौती इतनी आसान नहीं थी। लैंडिंग के अंतिम 15 मिनट बेहद चुनौतीपूर्ण थे। पूरे मिशन की कामयाबी इन अंतिम 15 मिनट पर ही टिकी थी। मगर लैंडर का सम्पर्क टूटने के साथ ही वैज्ञानिकों व भारतवासियों की उम्मीद भी टूट गई।

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चंद्रयान-2 को चंद्रमा के साऊथ पोल पर सफलतापूर्वक उतारना सबसे बड़ी चुनौती थी। एक छोटी- सी चूक पूरे मिशन को खत्म कर सकतीथी।  भारत जब चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की कोशिश कर रहा था तो सभी की नजरें लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ पर टिकी थी। 1471 किलोग्राम वजनी लैंडर ‘विक्रम’ का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डा. विक्रम ए. साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसे चांद पर ‘सॉफ्ट लैंङ्क्षडग’ करने के लिए तैयार किया गया है। यह एक चंद्र दिवस के लिए काम करेगा। एक चंद्र दिवस पृथ्वी के करीब 14 दिनों के बराबर होता है। रोवर 27 किलोग्राम वजनी 6 पहिया रोबोटिक वाहन है जो कृत्रिम बुद्धिमता से लैस है। इसका नाम ‘प्रज्ञान’ है जिसका मतलब ‘बुद्धिमता’ से है। यह ‘लैंडिंग’ स्थल से 500 मीटर तक की दूरी तय कर सकता है और यह अपने परिचालन के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा। 

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यह लैंडर को जानकारी भेजेगा और लैंडर बेंगलुरु के पास ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नैटवर्क को जानकारी प्रसारित करेगा। इसरो के अनुसार, लैंडर में 3 वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देंगे, जबकि रोवर के साथ 2 वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चांद की सतह से संबंधित समझ बढ़ाएंगे। इसरो ने कहा है कि ‘चंद्रयान-2’ अपने लैंडर को 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में 2 गड्ढों-‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपेलियस एन’ के बीच ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने का प्रयास करेगा। लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस यानी कि पृथ्वी के 14 दिनों की अवधि तक अपने वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देगा।

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