मालदीव में सत्त्ता परिवर्तन: चीन को लगा झटका, हिन्द महासागर में बढ़ेगा भारत का दबदबा

Edited By Yaspal,Updated: 23 Oct, 2018 08:39 PM

चीन समर्थक मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम  को अब आखिरकार राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ेगा। दरअसल  अब्दुल्ला यामीन चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के...

नई दिल्लीः (मनीष शर्मा) चीन समर्थक मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम  को अब आखिरकार राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ेगा। दरअसल  अब्दुल्ला यामीन चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता इब्राहिम मोहम्मद सोलिह से हार गए थे जिसपर उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और आरोप लगाया था की मतपत्रों से छेड़छाड़ की गई है।  रविवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव को वैध घोषित करते हुए  उनके आरोपों को खारिज कर दिया। सोलिह 11 नवंबर को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। भारत के करीबी समझे जाने वाले सोलिह के राष्ट्रपति बनने से दक्षिण एशिया के इस छोटे द्वीप पर फिर से भारत का प्रभाव स्थापित हो जायेगा जो अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान लगभग समाप्त हो गया था।

PunjabKesari

मालदीव में फिर मिला भारत को अवसर-
भारत पहला देश था, जिसने सोलिह को चुनाव जीतने पर बधाई दी।
सोलह ने भरोसा दिलाया है, कि उनकी सरकार शुरू से चली आ रही 'पहले भारत नीति' को तवज्जो देगी।
सोलिह सरकार मालदीव में बढ़ते चीन के प्रभाव को कम करने में भारत के लिए मदगार साबित हो सकती है।

PunjabKesari

वैसे तो मालदीव ऐतिहासिक रूप से भारत का हमेशा से सहयोगी रहा है, लेकिन अब्दुल्ला यामीन के पिछले शासन ने चीन के साथ मजबूत संबंध स्थापित कर दिए थे । मुंबई स्थित गेटवे हाउस थिंकटैंक के मुताबिक, यामीन सरकार के दौरान चीन ने मालदीव में 1.5 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा धन का निवेश किया जो मालदीव की जीडीपी का लगभग 40 प्रतिशत है।

PunjabKesari

यामीन सरकार में बिगड़े भारत से रिश्ते- 
30 अगस्त 2018: मालदीव में चीन की सहायता से बनाए गए शिनमाले ब्रिज के उद्घाटन में भारत के प्रतिनिधि ने हिस्सा नहीं लिया।
23 फरवरी 2018: मालदीव में इमरजेंसी के दौरान यामीन सरकार ने भारत को अंदरूनी मामलों में दखल न देने की धमकी दी। 
8 दिसंबर 2017: मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता पर दस्तखत किया। पाकिस्तान के बाद मालदीव दूसरा देश बना जिसने चीन के साथ ऐसा समझौता किया।
8 दिसंबर 2017: मालदीव चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा बना। भारत इस प्रोजेक्ट का विरोध करता रहा है।
23 जुलाई 2015: यामीन सरकार ने चीन को पट्टे पर अपने कई महत्वपूर्ण द्वीप देने के लिए कानून में परिवर्तन किया।
15 सितम्बर 2014:  मालदीव ने भारतीय कंपनी जीएमआर इंफ़्रास्ट्रक्चर से एयरपोर्ट बनाने का ठेका लेकर चीन को दे दिया। 

सोलिह भले ही अपने आपको भारत का करीबी कहते हों लेकिन चुनाव के दौरान उन्होंने साफ़ संकेत दे दिए थे कि उनके लिए देश की सम्प्रुभता सबसे पहले है और वह किसी विदेश ताक़त के दबाव के आगे नहीं झुकेंगे। सोलिह सरकार के सामने चीन को लेकर  कुछ वास्तविक दिक्क़तें हैं जो भारत के लिए ठीक नहीं हैं।

सोलिह के सामने क्या होंगी दिक्कतें-
यामीन सरकार द्वारा लिए गए चीन के भारी भरकम क़र्ज़ को कैसे उतारेंगे?
क़र्ज़ के बोझ में दबे श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह की बड़ी हिस्सेदारी चीन को देनी पड़ी थी  जिससे उसकी  सम्प्रुभता को खतरा उत्पन्न हो गया है। मालदीव तो श्रीलंका के मुक़ाबले बहुत छोटा देश है।
चीन के वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में मालदीव का अब क्या रुख होगा?
चीन की सुविधा के लिए बनाए नए कानून क्या निरस्त कर सकेंगे ?

PunjabKesari

हिन्द महासागर में बसा मालदीव भारत के लिए आर्थिक, कूटनीतिक और सामरिक लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत का ज़्यादातर आयात और निर्यात का सामान मालदीव से गुज़र कर जाता है और विश्व के 40 प्रतिशत कच्चे तेल का आवागमन भी इसी रास्ते से हो कर गुज़रता है। मालदीव में भारतीय नौसेना के जहाज़ों की मौजूदगी भी भारत के लिए सामरिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। भारत को मालदीव में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए नएरास्ते तलाश करने होंगे ताकि इब्राहिम मोहम्मद सोलिह चीन के प्रभाव में ना आ सके।  

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!