जलवायु परिवर्तन ने बिगाड़ा मौसम का गणित, दुनिया भर की मौसम एजेंसियों के सामने बड़ी चुनौती: IMD महानिदेशक

Edited By rajesh kumar,Updated: 07 Aug, 2022 04:42 PM

climate change spoiled the mathematics of the weather

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन ने मौसम संबंधी गंभीर घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करने की पूर्वानुमान एजेंसियों की क्षमता को प्रभावित किया है।

नेशनल डेस्क: भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन ने मौसम संबंधी गंभीर घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करने की पूर्वानुमान एजेंसियों की क्षमता को प्रभावित किया है। उन्होंने बताया कि दुनियाभर की मौसम एजेंसियां अपने निगरानी/अवलोकन नेटवर्क और मौसम पूर्वानुमान मॉडल में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। महापात्रा ने यह भी कहा कि हालांकि, देश में मानसूनी बारिश का कोई स्पष्ट रुझान देखने को नहीं मिला है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण भारी वर्षा के मामले बढ़े हैं, जबकि हल्की बारिश की घटनाओं में कमी दर्ज की गई है।

मानसूनी बारिश का कोई स्पष्ट रुझान नजर नहीं आ रहा

भारत में मानसून पर जलवायु परविर्तन के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “हमारे पास 1901 से लेकर अब तक का मानसूनी बारिश का डेटा उपलब्ध है। इसके तहत उत्तरी, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में बारिश में कमी, जबकि पश्चिम में कुछ क्षेत्रों, मसलन पश्चिमी राजस्थान में वर्षा में वृद्धि की बात सामने आती है।” महापात्रा ने कहा, “पूरे देश पर गौर करें तो मानसूनी बारिश का कोई स्पष्ट रुझान नजर नहीं आता। मानसून अनियमित है और इसमें व्यापक स्तर पर उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं।” केंद्र सरकार ने 27 जुलाई को संसद को बताया था कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नगालैंड में बीते 30 वर्षों (1989 से 2018 तक) में दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली बारिश में उल्लेखनीय कमी देखी गई है। इन पांच राज्यों और अरुणाचल प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में वार्षिक औसत बारिश में भी उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। 

अगर बारिश हो रही है तो बहुत ज्यादा पानी बरस रहा

महापात्रा ने कहा कि हालांकि, 1970 से लेकर अब तक के बारिश के दैनिक डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि देश में भारी वर्षा के दिनों में वृद्धि हुई है, जबकि हल्की या मध्यम स्तर की बारिश के दिनों में कमी आई है। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा' को दिए साक्षात्कार में कहा, “इसका मतलब है कि अगर बारिश नहीं हो रही है तो यह एकदम नहीं हो रही है। और अगर बारिश हो रही है तो बहुत ज्यादा पानी बरस रहा है। कम दबाव वाला क्षेत्र बनने पर बारिश अधिक तीव्र होती है। यह भारत सहित उष्णकटिबंधीय बेल्ट में देखे जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण रुझानों में से एक है। अध्ययनों ने साबित किया है कि भारी बारिश की घटनाओं में वृद्धि और हल्की वर्षा के दिनों में कमी जलवायु परिवर्तन का नतीजा है।”

वरिष्ठ मौसम विज्ञानी ने समझाया कि जलवायु परिवर्तन ने सतह पर बहने वाली हवाओं के तापमान में वृद्धि की है, जिससे वाष्पीकरण दर में इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि चूंकि, गर्म हवा में अधिक नमी होती है, लिहाजा यह तीव्र बारिश का कारण बनती है। उन्होंने कहा, “जलवायु परिवर्तन ने वायुमंडल में अस्थिरता बढ़ा दी है, जिससे संवहनी गतिविधियों, मसलन बादल गरजने, बिजली कड़कने और भारी बारिश होने के मामलों में वृद्धि हुई है। अरब सागर में चक्रवातों की तीव्रता भी बढ़ती जा रही है। चरम मौसम घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि पूर्वानुमानकर्ताओं के लिए चुनौती पेश कर रही है। अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारी वर्षा की भविष्यवाणी करने की क्षमता प्रभावित हुई है।” 

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