कांग्रेस की रार है कि थमती ही नहीं

Edited By Pardeep,Updated: 18 Jul, 2019 05:07 AM

congress does not have the strength

प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित द्वारा संगठन में जिला और ब्लाक पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करने के बाद से प्रदेश प्रभारी पीसी चाको और शीला दीक्षित के बीच चल रही खींचतान लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसका संगठन के कार्यकर्ताओं पर भी विपरीत असर...

नई दिल्ली: प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित द्वारा संगठन में जिला और ब्लाक पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करने के बाद से प्रदेश प्रभारी पीसी चाको और शीला दीक्षित के बीच चल रही खींचतान लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसका संगठन के कार्यकर्ताओं पर भी विपरीत असर पड़ता दिख रहा है। ताजा जानकारी के अनुसार अब चाको की ओर से एक पत्र लिखा गया है, जिसमें यह जानकारी दी गई है कि आप बीमार हैं, इसलिए प्रदेश संगठन के तीनों कार्यकारी स्वतंत्र रूप कार्य कर निर्णय लेंगे। बाद में उसकी जानकारी आपको दे दी जाएगी। 
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इससे लगता है कि चाको द्वारा शीला को अलग-थलग करने की तैयारी चल रही है। चाको ने शीला दीक्षित को पत्र लिखकर कर कहा है कि आपकी सेहत ठीक नहीं है। ऐसे में तीनों कार्यकारी अध्यक्ष स्वतंत्र रूप से काम करेंगे। तीनों कार्यकारी अध्यक्षों को भी चाको ने पत्र लिखकर इस बात की जानकारी दे दी है। पत्र में यह भी कहा गया है कि आप बैठकें ले सकते हैं। चाको ने शीला को लिखे पत्र में इस बात की भी शिकायत की है कि उनका फोन नहीं उठाया जा रहा। उन्होंने नाराजगी जताते हुए भी लिखा है कि आपको फोन किया लेकिन आपने नहीं उठाया। आपको पत्र लिखा गया, लेकिन जवाब नहीं दिया। प्रतिनिधि भी गैरजिम्मेदार बयान दे रहे हैं। 
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इसपर पलटवार करते हुए शीला दीक्षित ने तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के कार्यक्षेत्र में बदलाव किया है। हारून यूसुफ  और देवेंद्र यादव के अधिकार कम और राजेश लिलोठिया का कार्य बढ़ा दिया गया है। इसके तहत हारून यूसुफ को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ और एनएसयूआई चुनाव की देखरेख करेंगे। देवेंद्र यादव भी डूसू चुनाव और एनएसयूआई चुनाव का कामकाज देखेंगे, जबकि राजेश लिलोथिया उत्तर दिल्ली, दक्षिण दिल्ली नगर निगम व कांग्रेस के विभिन्न प्रकोष्ठों का कामकाज देखने का दायित्व दिया गया है। लेकिन शीला दीक्षित ने इस पत्र में इस बात का कोई खुलासा नहीं किया है कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम का कामकाज कौन देखेगा? 

इसमें दो राय नहीं कि संगठन में चल रही वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए एक तरीके से संगठन कमजोर होता नजर आ रहा है। लोकसभा चुनाव में जिस तरह पार्टी का पुराना वोट बैंक वापस आया था, अब आपसी खींचतान में यदि वह फिर से पलटने लगे तो कोई अजूबा नहीं होगा। साफ है कि गुटबाजी बढ़ रही है, जिसका आगामी विधानसभा चुनाव पर भी प्रतिकूल असर पडऩा लाजमी लग रहा है। याद रहे कि तीनों कार्यकारी अध्यक्षों ने पिछले दिनों शीला दीक्षित को पत्र लिखकर उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि जिस तरीके से ब्लाक और जिला पर्यवेक्षकों की नियुक्ति उनसे सलाह मश्विरा लिए बिना की गई है, वह सरासर गलत है। उसके बाद शीला विरोधी गुट ने एक बैठक का आयोजन कर राहुल गांधी से मिलने का समय मांगा है। 

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