ज्यादा वोट शेयर के बावजूद कई बार सत्ता से दूर रहीं पार्टियां

Edited By Pardeep,Updated: 25 Mar, 2019 02:33 AM

despite excess vote share many parties away from power

आम तौर पर माना जाता है कि यदि चुनाव में किसी पार्टी का वोट शेयर बढ़ता है तो उस पार्टी को जीत मिल जाती है लेकिन क्या वह पार्टी सत्ता हासिल कर लेती है या उससे दूर हो जाती है? आज चर्चा है पार्टियों के वोट शेयर की। हालिया चुनाव परिणामों पर नजर डालने पर...

नई दिल्ली: आम तौर पर माना जाता है कि यदि चुनाव में किसी पार्टी का वोट शेयर बढ़ता है तो उस पार्टी को जीत मिल जाती है लेकिन क्या वह पार्टी सत्ता हासिल कर लेती है या उससे दूर हो जाती है? आज चर्चा है पार्टियों के वोट शेयर की। 

हालिया चुनाव परिणामों पर नजर डालने पर पता चलता है कि ज्यादा वोट शेयर पाने के बावजूद वह पार्टी सत्ता हासिल नहीं कर पाई है। भारी बहुमत से आई सरकारों के लिए भी 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर पाना कठिन है। 1951 से अब तक हुए आम चुनाव में किसी पार्टी को 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर नहीं मिल पाया। पं. जवाहर लाल नेहरू के जमाने में भी यह आंकड़ा पार नहीं हो पाया। 1984 तक 8 आम चुनावों में सरकार बनाने वाली पार्टी का वोट शेयर 40 प्रतिशत से ज्यादा ही रहा। 

जीतने वाली पार्टी का वोट शेयर 40 प्रतिशत से कम पहली बार 1989 में हुआ जब नैशनल फ्रंट ने जीत हासिल की थी। 1991 तक सरकार बनाने वाली पार्टी का वोट शेयर 30 प्रतिशत से अधिक ही रहा। 1991 में कांग्रेस जीतने वाली मुख्य पार्टी थी। वोट शेयर 30 प्रतिशत से कम पहली बार 1996 में रहा जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी। तब से 2009 तक लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी का वोट शेयर 30 प्रतिशत से कम ही रहा है। 1991 के बाद पहली बार 2014 में जब भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो वोट शेयर 30 प्रतिशत से अधिक रहा। 

कांग्रेस की स्थिति 
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1984 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे तब कांग्रेस का वोट शेयर सबसे अधिक रहा। उस साल चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 48 प्रतिशत रहा था। कांग्रेस के वोट शेयर में पहली बार भारी गिरावट 1989 के चुनावों में देखने को मिली। इन चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर पहली बार गिरकर 40 प्रतिशत से भी कम रह गया। 1996 में पहली बार कांग्रेस का वोट शेयर 30 प्रतिशत से भी नीचे गया। 2009 चुनावों तक यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से नीचे ही रहा जबकि 2004 और 2009 में कांग्रेस नेतृत्व में 2 बार देश में यू.पी.ए. की सरकार थी। 2014 का चुनाव कांग्रेस के लिए शर्मनाक पराजय लेकर आया। पहली बार कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 20 प्रतिशत से भी कम रह गया। 

भाजपा की स्थिति 
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भाजपा की स्थिति कांग्रेस से उलट रही है और धीरे-धीरे भगवा पार्टी ने अपनी पैठ बनाई। पहली बार 1989 में भाजपा का वोट शेयर 10 प्रतिशत से अधिक पहुंचा था। 1991 के चुनावों में पहली बार भाजपा का वोट शेयर 20 प्रतिशत से अधिक रहा और 2004 में सत्ता गंवाने के बाद भी यह आंकड़ा कमोबेश समान ही रहा। 2009 में पहली बार भाजपा को बड़ा झटका लगा और वोट शेयर 20 प्रतिशत से भी कम रह गया। 2014 चुनाव भाजपा के अब तक के इतिहास का सबसे सफल चुनाव रहा है। पहली बार 1991 के बाद किसी पार्टी को 30 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर मिला।

जनता दल के नेतृत्व में 2 बार बनी सरकार 
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अब पार्टियां स्मार्ट तरीके से वोट शेयर हासिल कर रही हैं क्योंकि कभी-कभी 20 प्रतिशत से कम वोट शेयर वाली पाॢटयां भी देश को प्रधानमंत्री दे सकती हैं। 1989 में 39.5 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने के बावजूद कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई थी जबकि महज 17.8 प्रतिशत वोट शेयर वाला जनता दल गठबंधन के सहयोग से सरकार बना गया था। यही नहीं, 1996 में भी सिर्फ 8 प्रतिशत वोट वाला जनता दल संयुक्त मोर्चा सरकार बनाने में सफल रहा और 20 प्रतिशत वोट शेयर वाली भाजपा बहुमत नहीं जुटा पाई और अटल बिहारी वाजपेयी को 13 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा।

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