कारगिल योद्धा की नसीहत, भावनाओं से मत खेलिए

Edited By vasudha,Updated: 17 Feb, 2019 11:01 AM

do not play with the feelings of soldiers

कारगिल की लड़ाई के योद्धा मेजर देवेंद्र पाल सिंह मौत को मात दे चुके हैं। लड़ाई में उन्हें मृत मानकर शवगृह भेजने का आदेश दिया गया था, पर एक डॉक्टर ने उनकी डूबती सांसों को पहचान लिया। महीनों की बेहोशी के बाद जब उन्हें होश आया तो जिंदगी बचाने के लिए एक...

नेशनल डेस्क: कारगिल की लड़ाई के योद्धा मेजर देवेंद्र पाल सिंह मौत को मात दे चुके हैं। लड़ाई में उन्हें मृत मानकर शवगृह भेजने का आदेश दिया गया था, पर एक डॉक्टर ने उनकी डूबती सांसों को पहचान लिया। महीनों की बेहोशी के बाद जब उन्हें होश आया तो जिंदगी बचाने के लिए एक पांव काटना पड़ा, फिर वह मैराथन में दौड़ते हैं। पुलवामा हमले के बाद प्रतिशोध पर मीडिया में चल रही बहस पर मेजर डी पी सिंह ने कहा कि हम शहीदों और उनके परिवारों के साथ खड़े हैं। हमें इस बर्बरता का जरूर बदला लेना चाहिए, लेकिन कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा और अभी जो लोगों में उफान है, वह भी सामान्य हो जाएगा।

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राजनीतिक पार्टियों, मीडिया और आम लोगों के बीच भी सब कुछ सामान्य हो जाएगा। जिन्होंने अपनी जिंदगी न्यौछावर कर दी, उनके परिवारों का दर्द कोई नहीं समझ सकता। एक सैनिक हंसते हुए तिरंगा और वतन के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देता है, लेकिन कुछ सवाल भी हैं। क्या हम कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिससे सिस्टम में कुछ सुधार हो सके? शुक्रवार की सुबह मैं एक न्यूज चैनल पर था। मैं उस बहन में भावनाओं और बड़बोलेपन से परे तर्क रखने की कोशिश कर रहा था। इस पर टीवी एंकर ने कहा, ‘शायद आपने पुलवामा की तस्वीरें नहीं देखी हैं इसलिए आप इस बात से सहमत नहीं हैं कि इसका एक ही समाधान है- बदला। मेरे लिए यह हैरान करने वाला नहीं होता है। उसे नहीं पता होगा कि मैं कुछ साल पहले ही युद्ध में जख्मी हुआ था। 
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वह एंकर जो बहस में मेरा परिचय करवा रही थी, वह इस बात से अनजान थी कि मैं रैंक वन मेजर रहा हूं। मैंने उस महिला से कहा कि एक सैनिक तिरंगे पर जान न्यौछावर करने के लिए हमेशा तैयार रहता है लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी जानना चाहिए कि वकास कमांडो (पुलवामा का फिदाइन हमलावर) बनने की तुलना में डबल सेना मेडल और अशोक चक्र पाने वाला कश्मीरी युवक लांस नायक नजीर वानी हमारे लिए अधिक प्रेरणादायक है। हमें इस मोर्चे पर भी कोशिश करने की जरूरत है। अगर एक पागल पड़ोसी मेरे घर में घुस मेरे युवाओं को भड़काता है और हम इसे रोकने में नाकाम हैं तो कहीं न कहीं हम गलत हैं। 40 परिवार बर्बाद हुए हैं और हम समाधान की तरफ नहीं बढ़ते हैं तो भविष्य में और परिवार बर्बाद होंगे। जब आप बदला के लिए चीख रहे होते हैं तो कृपया दूसरे परिवारों, अभिभावकों, पत्नियों और बच्चों से पूछिए कि क्या वे उन हीरो सैनिकों यानी अपने पति, अपने पिता और अपने बेटे के बिना जीने के लिए तैयार हैं? जब तक अगली पीढ़ी सकारात्मक रूप से चीजों को नहीं समझेगी तब तक कोई बदलाव नजर नहीं आता है। हमला, बदला, उनका बदला और हमारा बदला जारी है। मुझे उस महिला एंकर को तार्किक बनाने में कोशिश करनी पड़ी और इसके बाद टीवी बहस में शामिल पूरा पैनल मेरी भाषा बोलने लगा। 

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टीवी एंकर और खास करके उस महिला जैसी टीवी एंकर अपनी बात आपके मुंह में ठूंसने की कोशिश करते हैं ताकि हम उनसे सहमत हो जाएं। इन्हीं के सुर में कई भोले लोग चीखने लगते हैं और बकवास बातों पर सहमत होने लगते हैं। कोई कल्पना नहीं कर सकता है कि जिंदगी खत्म होने का क्या मतलब होता है। इसके बाद आप अदलातों में इंसाफ और मुआवजे के लिए चक्कर काटते रहिए। हम चाहते हैं कि सैनिक मर जाएं लेकिन उसकी विधवा को बकाये और पेंशन के लिए के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। कुछ लोगों को तो प्रमाण देना पड़ता है कि उनका पति शहीद हुआ था। जख्मी अवस्था में पेंशन के लिए मुझे सात साल की लड़ाई लडऩी पड़ी और साबित करना पड़ा कि मैं युद्ध में घायल हुआ था। अदालतों में सैकड़ों मामले लंबित हैं। 

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मेजर नवदीप सिंह और सांसद राजीव चंद्रशेखर के साथ मेरी आखिरी मुलाकात रक्षा मंत्री से हुई थी। उन्होंने वादा किया था कि जनवरी के आखिर तक युद्ध में घायल होने के बाद विकलांग हुए सैनिकों के खिलाफ अनावश्यक अपील वापस ली जाएंगी। जनवरी खत्म हो गई और वादा वहीं है। लोग चाहते हैं कि सैनिक मरे लेकिन उनके बच्चों की शिक्षा के लिए मिलने वाले भत्ते खत्म कर दिए जाएं क्योंकि सरकार को ये बोझ लगने लगता है। हमने इसके लिए भी लड़ाई लड़ी और लगा कि रक्षा मंत्री हमारे साथ खड़ी होंगी। वह भी महिला हैं पर विधवाओं का दर्द नहीं समझ पा रहीं। हमने हाल ही में एचएएल मामले को देखा है। जिंदगियों का मजाक मत उड़ाइए। अपने कारोबार को चमकाने के लिए भावनाओं से मत खेलिए। भारतीय सेना और सीआरपीएफ को पता है कि क्या करना है और कब करना है। अतीत में सेना ने खुद को दिखाया है। उसे स्थिति से निपटना आता है। कृपया आप हमें ना बताएं कि हमें क्या करना है लेकिन इन सबके बावजूद सभी को बोलने का अधिकार है और इसका ध्यान कौन रखता है कि सैनिकों को गुमनामी में छोड़ दिया जाता है। -जय हिंद 

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