कृषि सुधार कानूनों को रद्द करने पर अड़े किसान संगठन, लेकिन कटघरे में खड़ा कर रहा उनका दोहरा रवैया

Edited By rajesh kumar,Updated: 05 Dec, 2020 04:44 PM

farmers organizations adamant on repealing agricultural reform laws

नए कृषि सुधार कानूनों को रद्द करने पर अड़े किसान संगठन एक तरफ सरकार से बातचीत जरूर कर रहे हैं, पर साथ ही यह भी रट लगा रखें हैं कि सरकार मानेगी नहीं। वास्वत में किसानों का यह बात बार बार दृढ़ता से कहना किसानों को स्वयं ही कटघरे में खड़ी कर रही है।

नई दिल्ली (सुधीरशर्मा): नए कृषि सुधार कानूनों को रद्द करने पर अड़े किसान संगठन एक तरफ सरकार से बातचीत जरूर कर रहे हैं, पर साथ ही यह भी रट लगा रखें हैं कि सरकार मानेगी नहीं। वास्वत में किसानों का यह बात बार बार दृढ़ता से कहना किसानों को स्वयं ही कटघरे में खड़ी कर रही है। क्योंकि देश सदैव सम्भावनाओं पर आगे बढ़ता है, न कि जिदपन पर। जब वार्तालाप का दौर जारी है, तो किसानों को सरकार के लगातार प्रयास के प्रति आशान्वित रहना भी जरूरी है।

 कोई और कर रहा उन्हें संचालित
आखिर सरकार और किसान दोनों अपने ही तो हैं। ऐसे में किसानों के इस नकारात्मक कथन से लगता है कि उन्हें कोई दूसरा है जो संचालित कर रहा है, इसीलिए किसान ऐसी सम्भावनाहीन बात दोहरा रहे हैं। सच कहें तो हर भारतीय किसान व देश के कृषक संगठनों के मन की गहराई में एक बात जरूर बैठी है कि अंग्रेजों के समय के बने पुराने कृषि कानूनों के परम्परागत ढांचे में कुछ तो खामी है, जो देश आजाद होने के बाद सरकारों द्वारा बार-बार कृषि कानून में बदलाव लाने के बावजूद किसानों की प्रगति आज तक रुकी रही है।

समझ नहीं पा रहे किसान
किसान यह भी कहीं न कहीं अनुभव कर रहा है कि मोदी सरकार कहीं उसी रुकी प्रगति के ताले को अपने नये बिल से खोल तो नहीं रहे हैं। लगता है किसानों का मन वर्तमान कृषि कानून में जुड़ी कुछ अच्छाइयोंं का आभास तो कर रहा है, पर समझ नहीं पा रहा है। जिसके कारण किसानों के अंदर हिचक है और उसी हिचक के चलते ही इसे रद्द करवाने के प्रति पूर्णसफलता नहीं देख पा रहा है। बिल विरोध के लिए सामने आये कृषक संगठन किसान के उसी अर्धशंकाओं का लाभ लेकर भड़काते दिख रहे हैं।

मोदी के हर फैसले विवादों में
यद्यपि जब से मोदी जी आये हैं, उनके द्वारा लिये गये हर फैसले लगभग विवादों में रहे। देश में भरपूर बिरोध भी हुआ। पर अंतत: पक्ष सदैव सरकार का ही मजबूत हुआ। वह चाहे नोटबंदी रही हो, जीसटी, धारा 370, राममंदिर, सीएए-एनआरसी जैसे निर्णय रहे हों। एनआरसी सीएए पर तो विगत वर्ष पूरे देश भर में लम्बे समय तक सरकार के साथ टकराव बना रहा। पर सरकार के अपने निर्णयों पर टस से मस न होने के पीछे सरकार की दृढ़ इच्छा शाक्ति के साथ उसका गहरा होमवर्क भी है। इस दौरान कई चुनाव हुए, जिसमें पहले लगता रहा कि इस निर्णयों के चलते बीजेपी का कहीं सूपड़ा न साफ हो।

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