पूर्व सीजेआई यूयू ललित ने कॉलेजियम सिस्टम को बताया सही, बोले- कार्यपालिका, न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र

Edited By Yaspal,Updated: 18 Mar, 2023 06:56 PM

former cji uu lalit told the collegium right

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू. यू. ललित ने शनिवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट और देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली ‘‘आदर्श व्यवस्था' है

नई दिल्लीः भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू. यू. ललित ने शनिवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय और देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली ‘‘आदर्श व्यवस्था' है। केन्द्रीय विधि मंत्री किरेन रीजीजू द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति वाली कॉलेजियम प्रणाली पर उठाए गए सवाल की पृष्ठभूमि में न्यायमूर्ति ललित की यह टिप्पणी सामने आई है। देश के 49वें प्रधान न्यायाधीश के पद से आठ नवंबर, 2022 को सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति ललित ने यह भी कहा कि न्यायपालिका कार्यपालिका से पूरी तरह स्वतंत्र है और जबकि सुप्रीम कोर्ट ‘‘ शानदार है'', वहां ‘‘सुधार की तमाम गुजाइशें'' (भी) हैं।

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली ऐसी संस्था को न्यायाधीशों की नियुक्ति का भार सौंपती है जो ‘जमीनी स्तर' पर न्यायाधीशों के कामकाज की निगरानी करती है और सलाह के बाद शीर्ष अदालत द्वारा सिफारिश की जाती है। उन्होंने कहा कि एक न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करते हुए सिर्फ उनका कामकाज नहीं बल्कि अन्य न्यायाधीशों के उनके प्रति विचार, आईबी की रिपोर्ट भी प्रक्रिया में शामिल की जाती है और नियुक्ति की नयी प्रक्रिया ‘‘सिर्फ कानून द्वारा मान्य तरीके से ही लायी जा सकती है।''

जस्टिस ललित ने कहा, ‘‘मेरे अनुसार, कॉलेजियम प्रणाली आदर्श व्यवस्था है... आपके पास लोग हैं जिनका पूरा प्रोफाइल उच्च न्यायालयों द्वारा देखा जाता है। सिर्फ एक या दो व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि एक संस्था के रूप में बार-बार देखा जाता है। ऐसे ही, उच्च न्यायालयों में वकालत करने वाले अधिवक्ता; संस्था को बनाने वाले न्यायाधीश, वे उनके कामकाज को रोज देखते हैं। ऐसे में प्रतिभा को उनसे बेहतर कौन पहचान सकता है? ऐसा व्यक्ति जो कार्यकारी (कार्यपालिका) के रूप में यहां बैठा हुआ है वह, या ऐसा व्यक्ति जो जमीनी स्तर पर.. कोच्चि, या मणिपुर या आंध्र प्रदेश या अहमदाबाद में उनका कामकाज देख रहा है।''

जस्टिस ललित ने इसपर जोर दिया कि ‘‘यह तंत्र बेहतरीन प्रतिभाओं को एकत्र करने के लिए है'' और उच्च न्यायालयों से जिन नामों की सिफारिश आती है वे सभी स्वीकार नहीं किये जाते हैं। उन्होंने बताया कि उच्चतम न्यायालय में ‘द्वितीय स्थान के न्यायाधीश' के तौर पर उनके बनाए कॉलेजियम ने 255 न्यायाधीशों की नियुक्ति की, उच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तावित 70-80 नाम खारिज कर दिए गए और करीब 40 नामों पर सरकार अभी भी विचार कर रही है। न्यायमूर्ति ललित ने कहा, ‘‘हम फैसले देखते हैं। हम लंबी समय तक किया गया कामकाज देखते हें। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीश देखते हैं कि वह व्यक्ति योग्य है या नहीं। उसी वक्त हमें सलाहकार न्यायाधीशों (कंसल्टी जज) से मिली सलाह से सहायता मिलती है... उसी वक्त कार्यपालिका का भी अपना विचार होता है। उसके पास व्यक्ति के प्रोफाइल के बारे में कुछ हो सकता है।''

जस्टिस ललित ने कहा, ‘‘किसी प्रकार की शिकायत हो सकती है या फिर व्यक्तित्व में कोई खोट/कमी हो सकती है जिसके बारे में हमें जानकारी नहीं है। ऐसे में आईबी (खुफिया विभाग) की रिपोर्ट के माध्यम से हमें वह सलाह दी जाती है। उसके बाद फैसला लिया जाता है।'' पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल की दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति नहीं होने में कॉलेजियम की गलती नहीं है, गलती कहीं और हुई थी। न्यायमूर्ति ललित ने आगे कहा कि वह अदालतों के ‘कार्यपालिका की अदालतें' बनने के सिद्धांत से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उन्होंने टिप्पणी की है कि बाहरी लोगों के लिए आलोचना करना और तुरंत ही सबको एक ही तराजू से तौल देना आसान है। उन्होंने कहा, ‘‘सभी अदालतें स्वतंत्र हैं और आपको प्रक्रिया में यह दिखेगा। मेरे सामने आए दो मामलों... सिद्दीकी कप्पन, तीस्ता सीतलवाड़... दोनों को जमानत पर रिहा किया गया। अन्य मामले में विनोद दुआ को राहत दी गई। तीसरा, वरवरा राव को भी राहत दी गई।''

जस्टिस ललित ने कहा, ‘‘हम तुरंत एक सामान्य से निष्कर्ष पर पहुंच जाते हें। ऐसा नहीं है। अदालतें पूरी तरह स्वतंत्र हें। न्यायाधीशों के लिए यह बहुत मुश्किल है और किसी बाहरी के लिए आलोचना करना बहुत आसान है।'' सोहराबुद्दीन मामले में अधिवक्ता रहते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के वकील के रूप में पैरवी करने के संबंध में सवाल करने पर न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि उन्होंने तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं की पैरवी की है और उनके लिए यह पेशा था। उन्होंने कहा, ‘‘वकील के रूप में मैंने अलग-अलग मामलों में 18 मुख्यमंत्रियों की पैरवी की है... लेकिन मैं उनमें से किसी से नहीं मिला।''

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!