बसपा और आप की जनसभाओं से दोआबा की सियासत गर्मायी

Edited By ,Updated: 16 Mar, 2016 05:14 PM

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पंजाब विधानसभा चुनावों में अभी एक साल का समय है,लेकिल दलित वोट बैंक को हथियाने के लिए सियासत में तेजी आ गई है। बसपा

पंजाब विधानसभा चुनावों में अभी एक साल का समय है,लेकिल दलित वोट बैंक को हथियाने के लिए सियासत में तेजी आ गई है। बसपा पार्टी के संस्थापक कांशी राम के जन्मदिवस के मौके पर पार्टी सुप्रीमो मायावती और आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांशीराम को भारत रत्न दिए जाने की मांग करके चुनाव प्रचार के लिए मजबूत मुद्दा बना लिया है। एक ही अवसर पर जनसभाएं आयोजित करने से राजनीतिक गलियारे में चर्चा शुरू हो गई है।

उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए मायावती कह चुकी हैं कि यदि इतने बड़े प्रदेश में बसपा अपनी सरकार बना सकती है तो पंजाब में क्यों नहीं। जबकि उत्तर प्रदेश और पंजाब के राजनीतिक समीकरणों में काफी अंतर है। उत्तर प्रदेश के पुराने चुनावों पर यदि नजर डाली जाए तो बसपा का वोट बैंक बढ़ा है जबकि पंजाब में उसेकी हालत पतली हैं। उत्तर प्रदेश की तरह बसपा पंजाब में भी किसी दल से गठबंधन नहीं करेगी। वह अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ना चा​हती है, पंजाब के दौरे पर आई मायावती यह एलान कर गई हैं। सत्तारूढ़ गठबंध्रन (अकाली—भाजपा),कांग्रेस के अपने परंपरागत वोट हैं। इसके बाद नई उभर रही आम आदमी पार्टी का मुकाबला भी बसपा को करना होगा। ऐसी स्थिति में उसे कड़ी मशक्कत करनी होगी।

अकाली दल हो या भाजपा, दोनों ने ही दलित प्रतिनिधित्व को जगह दी है। पंजाब में पार्टी की स्थिति संतोषजनक न होने पर एक बार मायावती स्वयं सहमति जता चुकी हैं। बसपा को राज्य में 1992 के चुनाव में नौ सीटें मिली थीं और 1997 ने उसे सिर्फ एक। फिर 2012 में उसका खाता शून्य रहा। जाहिर है कि राज्य में उसका वोट प्रतिशत लगातार कम हुआ है। पिछले चुनाव में सीट नहीं मिलने पर मायावती ने वरिष्ठ नेताओं के सिर पर इसका ठीकरा फोड़ा था। इस बार उनके सामने एक और प्रतिद्वंदी उभर कर सामने आ गया है जिसने दलितों पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं।

केजरीवाल ने पंजाब में कांशीराम के जन्मदिवस के मौके पर पहुंच कर अपनी पार्टी को दलितों का सच्चा हितैषी साबित करने की कोशिश की है। मायावती स्वयं को कांशीराम का उत्तराधिकारी बताती हैं,लेकिन उनके कांशीराम के परिवार से अच्छे संबंध नहीं हैं। कांशीराम के निधन के बाद इस परिवार ने मायावती से दूरी बना ली थी। उनकी बहन स्वर्ण कौर मायावती अपने परिवार का दुश्मन बताती हैं। हाल में स्वर्ण कौर के आप में शामिल होने की अटकलें भी लगाई जा रही थीं,लेकिन उन्होंने इसका खंडन कर दिया। वे दलित हितैषी पार्टी को समर्थन देने की बात कह चुकी हैं। केजरीवाल की इस परिवार से नजदीकियां बढ़ी हैं। अपने भाषण में वह स्वर्ण कौर को बुआ जी कहकर संबोधित कर रहे थे। 

मायावती इससे पहले भी पंजाब में अपने वोटरों से मिलने आ चुकी हैं जबकि केजरीवाल उन्हीं की पार्टी के संस्घापक कांशीराम के नाम का सहारा लेते हुए दलितों को अलग से प्रभावित में करने लगे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वे दलितों से मायावती का तिलिस्म कम करना चाहते हैं,इसके लिए कांशीराम के नाम का सहारा ले रहे हैं। एक समय था जब दलित वोट बैंक पर कांग्रेस का सिक्का चलता था। इसमें सेंध लगाई कांशीराम ने। उन्होंने दलितों को बसपा के बैनर के नीचे एकत्रित करने की मुहिम छेड़ी और काफी हद तक कामयाब भी हुए। दलितों को लगने लगा था कि बसपा उनकी तारणहार बन सकती है। कांशीराम के निधन के बाद मायावती विरासत में मिले इस बैंक को वे संजो कर रखने की कोशिश कर रही हैं। 

दलित वोट बैंक पर हर दल की नजर रहती है,उसी में अब आप भी शामिल हो गई है। राहुल गांधी,मुलायम सिंह यादव जैसे नेता अन्य दलों पर इस वर्ग की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए दलित हित की बात करने लगते हैं। सवाल है कि दलितों की सामाजिक और आ​र्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उनके बड़े—बड़े दावों का क्या हआ। काम कम और शोर ज्यादा मचा कर वे हर चुनाव में इस वर्ग में एक नई आस बंधा जाते हैं। दलित वर्ग के जागरूक वोटर इसे समझने लगे हैं। दोआबा के वोट बैंक को आप और बसपा कितना प्रभावित कर पाती हैं,यह आने वाला समय ही बताएगा। 

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