इंदिरा गांधी का ये रिकॉर्ड कभी नहीं तोड़ पाएंगे PM मोदी

Edited By Anil dev,Updated: 17 Oct, 2018 03:42 PM

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गोवा विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने की दलील देकर सरकार बनाने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस का पूरा गेम भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिगाड़ कर रख दिया है। प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के दो विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं।

नई दिल्लीः  गोवा विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने की दलील देकर सरकार बनाने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस का पूरा गेम भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिगाड़ कर रख दिया है। प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के दो विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं। लेकिन फिर भी इंदिरा गांधी ने 1980 में गोवा में जो किया, उसे जानकर अाप हैरान रह जाएंगे। 1980 में तो गोवा में कांग्रेस का एक भी विधायक जीतकर नहीं आ पाया, फिर भी सरकार कांग्रेस ने ही बनाई और वो भी बिना राष्ट्रपति शासन लगाए। ये शायद भारत के इतिहास में अपनी तरह का पहला मामला था। 

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1980 में जो कांग्रेस ने किया उसे जान चौंक जाएंगे आप
वर्ष 1980 में गोवा में कांग्रेस का एक भी विधायक जीतकर नहीं आ पाया, फिर भी सरकार कांग्रेस ने ही बनाई और वो भी बिना राष्ट्रपति शासन लगाए। भारत के इतिहास में देखें तो ये अनोखा और अपनी तरह का पहला मामला था। दरअसल, 1961 में गोवा की आजादी के बाद 1963 में पहले चुनाव से लेकर 1979 की जनता पार्टी सरकार तक गोवा में एक ही पार्टी का शासन रहा और जनसंघ (बीजेपी) या कांग्रेस, दोनों ही प्रदेश में अपने पकड़ बनाने में नाकामयाब रही। ये पार्टी थी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी। इस पार्टी की ओर से सीएम बने थे दयानंद बांडोडकर और फिर शशिकला काकोडर। ये दोनों पिता-पुत्री थे।

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पार्टी में बगावत 
दरअसल, 1979 में पार्टी में बगावत हुई, जिसके बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। ये करीब 264 दिनों तक चला। इधर, शशिकला से बगावत करने वाले एमजीपी के कद्दावर नेता प्रताप सिंह राणे ने एक नई पार्टी ज्वाइन कर ली। इस पार्टी का नाम था कांग्रेस (उर्स)। इस पार्टी को कांग्रेस से अलग हुए नेता नेता देवराज उर्स ने शुरू किया था। उर्स दो बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके थे। जब 1969 में कांग्रेस में विभाजन हुआ तो उर्स इंदिरा गांधी के साथ खड़े रहे।

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 इमरजेंसी के बाद बुरी तरह हार गई थीं इंदिरा गांधी
ऐसे समय में जब बड़े-बड़े दिग्गज कांग्रेस नेता इंदिरा को छोड़कर कांग्रेस (ओ) में जा चुके थे, देवराज ने इदिरा की कांग्रेस (आर) का हाथ थामे रखा और 1971 के चुनाव में कर्नाटक की सारी लोकसभा सीटें कांग्रेस को दिलवाई। हालांकि, बाद में उनकी इंदिरा से भी बिगड़ गई और उन्होंने एक नई पार्टी बना ली, वो भी तब जब इमरजेंसी के बाद इंदिरा बुरी तरह हार गईं। इस पार्टी का नाम रखा इंडियन नेशनल कांग्रेस (उर्स)। इस पार्टी में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और गोवा के तमाम विधायक शामिल हो गए। हर किसी का इंदिरा से मोहभंग हो गया था। पार्टी में कई नाम तो ऐसे है जिन्हें सुन आप हैरान हो जाएंगे और ये है शरद पवार, प्रियरंजन दास मुंशी, ए के एंटनी, यशवंतराव चाह्वाण, देवकांत बरुआ और के पी उन्नीकृष्णन।

जब इंदिरा ने मांगी इमरजेंसी के लिए माफी
इसी लहर में गोवा के प्रताप सिंह राणे ने भी उर्स की कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया। 1980 में इंदिरा कांग्रेस और कांग्रेस (उर्स) दोनों ने गोवा में चुनाव लड़ा। इस दौरान इंदिरा गांधी ने सभाएं की और पहली बार गोवा और देशवासियों से इमरजेंसी लगाने के लिए माफी मांगी। लेकिन सभी विधायक उर्स के तरफ थे। जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया। तब गोवा में विधानसभा में कुल तीस सीटें होती थीं और जिनमें से बीस सीटें कांग्रेस (उर्स) ने जीत ली थी और 7 सीटें महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के हिस्से में आई थीं। तीन सीटों पर निर्दलय ने भी चुनाव लड़ा था। लेकिन कांग्रेस के हिस्से में एक भी सीट नहीं आई थी। इंदिरा ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया।

चुनाव हारना बना था इंदिरा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल 
वैसे भी 1980 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी केंद्र की सत्ता में फिर से वापस आ चुकी थीं। उर्स के अरमानों पर पानी फिर गया था। सबसे पहले एके एंटनी ने पार्टी छोड़ी और कांग्रेस (ए) नाम से एक नई रीजनल पार्टी बना ली, उसके बाद शरद पवार जो कि देवराज उर्स की बीमारी के चलते कांग्रेस (उर्स) के प्रेसिडेंट बन चुके थे। पीएम होने के नाते सीएम प्रताप सिंह राणे से उनका बात करना लाजिमी था। इंदिरा ने प्रताप सिंह राणे को प्रलोभन देना शुरू कर दिया। गोवा में सत्ता उर्स के नाम पर आई थी। ऐसे में प्रताप सिंह का कोई भी फैसला लेना आसान नहीं था। इंदिरा के संपर्क में गोवा की कांग्रेस उर्स के कुछ सीनियर नेता और विधायक भी आने लगे।

प्रताप सिंह ने कर दिया था गोवा में कांग्रेस का वजूद खत्म
प्रताप सिंह राणे को समझ आ गया था कि उनकी पार्टी केंद्र स्तर पर कमजोर हो चुकी है और इंदिरा ताकतवर हो चुकी हैं। मुश्किल परिस्थितियों में अपनी पुरानी पार्टी एमजीपी से भी उन्हें समर्थन की उम्मीद नहीं थी। प्रताप सिंह राणे ने गोवा में कांग्रेस (उर्स) का वजूद ही खत्म कर दिया और पूरी की पूरी गोवा कांग्रेस उर्स का इंदिरा कांग्रेस में विलय कर दिया। दो-तिहाई बहुमत से जीतने के बावजूद प्रताप सिंह राणे ने अपनी पार्टी का विलय दूसरी पार्टी में कर दिया और अब वो इंदिरा कांग्रेस के सीएम बन गए, जो बाद में असली कांग्रेस कहलाई। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के सात विधायक जरूर थे, लेकिन उनकी नेता शशिकला चुनाव हार गई थीं। शशिकला के हारते ही महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी एक तरह से नेतृत्वविहीन थी। कांग्रेस ने उसके पांच विधायकों को तोड़कर शामिल कर लिया।

जब विपक्ष को खत्म करना चाहती थीं इंदिरा
इंदिरा गांधी कांग्रेस के विपक्षियों का नामोंनिशान गोवा से मिटा देने के मूड में थीं, इस बार चुनाव हारने वाली शशिकला पर निशाना साधे हुए थीं। शशिकला को भी लग रहा था कि वो मेनस्ट्रीम राजनीति से दूर हो रही हैं, इसलिए उन्होंने भी कांग्रेस में शामिल होने का ऐलान कर दिया। इस तरह इंदिरा गांधी ने प्रलोभन और दबाव के सहारे एक भी सीट जीते बिना गोवा में सरकार बनाई।

समझें राज्य की सीटों का गणित 
अब 40 विधानसभा सीट वाले प्रदेश में 14 विधायक बीजेपी के पास और 14 ही विधायक कांग्रेस के पास बचे हैं। इससे पहले बजेपी के पास 23 विधायकों का समर्थन था और कांग्रेस के पास 16 विधायक थे। बीजेपी के पास 14 विधायक हैं। कांग्रेस के दो विधायक के शामिल होने के बाद ये आंकड़ा अब 16 हो गया है। इससे पहले बीजेपी के पास 14 विधायक, गोवा फारवर्ड पार्टी और महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी के 3-3 विधायक और 3 निर्दलीय विधायक हैं। फिलहाल, कांग्रेस सरकार बनाने का दावा नहीं कर सकती है। बता दें कि अब प्रदेश में बहुमत साबित करने के लिए 21 नहीं, बल्कि 20 सीटों की जरूरत होगी। दावा किया जा रहा है कि अभी कांग्रेस के 2 से 3 विधायक और बीजेपी में शामिल होंगे। 

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