सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार, मोदी बोले- खून और पानी साथ-साथ नहीं बहेंगे

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2016 11:10 AM

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उरी आतंकी हमले का बदला लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान पर शिकंजा कसते हुए सिंधु जल समझौते को हथियार बनाया लगता है।

नई दिल्ली: उरी आतंकी हमले का बदला लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान पर शिकंजा कसते हुए सिंधु जल समझौते को हथियार बनाया लगता है। इस समझौते के तहत पाकिस्तान को पानी रोका जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पाकिस्तान के नापाक हथकंडों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत हर संभव प्रयास करेगा। उन्होंने कहा कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बहेंगे। भारत के हितों की रक्षा की जाएगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद के माहौल में वार्ता संभव नहीं। इस समझौते को फिलहाल रद्द करने का फैसला नहीं लिया गया है।

डेढ़ घंटे तक चली बैठक
मोदी ने सिंधु नदी के जल बंटवारे से संबंधित समझौते को लेकर सोमवार को यहां अहम समीक्षा बैठक की जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव नृपेन्द्र मिश्रा, विदेश सचिव एस. जयशंकर भी मौजूद थे। बैठक में पाकिस्तान की तरफ बहने वाले सिंधु, जेहलम और चिनाब नदियों के जल के बेहतर इस्तेमाल पर विचार-विमर्श किया गया। सिंधु नदी के जल के बंटवारे को लेकर पाकिस्तान के साथ 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। समझौते के तहत पाकिस्तान को तीनों नदियों का 80 प्रतिशत जल मिलता है। जल संसाधन मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर हुई बैठक में मोदी को जल बंटवारे से जुड़े विभिन्न तथ्यों से अवगत करवाया। स्थायी सिंधु आयोग की बैठक फिलहाल न बुलाने का फैसला किया गया, क्योंकि इससे दोनों देशों के बीच जल पर सहयोग की प्रक्रिया धीमी पड़ सकती है।

पाकिस्तान को पानी कम देने पर विचार
बैठक में तीनों नदियों से पाकिस्तान को पानी कम देने पर विचार किया गया। इन नदियों पर बिजली परियोजनाएं बनाने पर जोर दिया गया। यह भी कहा गया कि जल समझौते में बदलाव करने की कोई जरूरत नहीं। इस समझौते के तहत ही पाकिस्तान को पानी की सप्लाई रोकी जा सकती है। बैठक में कहा कि पाकिस्तान के साथ 112 बैठकें की जा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि इस समझौते पर पुनर्विचार करने के लिए भारत गंभीर है। बैठक में यह भी कहा गया कि चीन इस समझौते का हिस्सा नहीं है फिर चिंता की क्या आवश्यकता है।

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