कर्नाटक विधानसभा चुनाव: इन पार्टियों ने लगा दिया जोर, जानिए कौन ताकतवर कौन कमजोर

Edited By ASHISH KUMAR,Updated: 30 Mar, 2018 05:08 PM

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कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है। यहां तीन बड़ी पार्टियां- भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) चुनाव मैदान में हैें। 12 मई को राज्य की 224 सीटों पर मतदान है। वहीं, 15 मई को राज्य में चुनी गई सरकार...

नेशनल डेस्क (आशीष पाण्डेय): कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है। यहां तीन बड़ी पार्टियां- भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) चुनाव मैदान में हैें। 12 मई को राज्य की 224 सीटों पर मतदान है। वहीं, 15 मई को राज्य में चुनी गई सरकार पर मतगणना के बाद फैसला होना है। एक  तरफ नरेंद्र मोदी व अमित शाह लागतार रैलियां कर येदूरप्पा को विजयश्री दिलाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं सिद्धारमैया व राहुल ने पूरी जिम्मेदारी अपने कंधो पर उठा रखी है। सिद्धारमैया द्वारा लिंगायत कार्ड खेलने के बाद कांग्रेस खेमा खुद को जीत के नजदीक देख रहा है। वहीें रंग में भंग डालने की तैयारी में जेडीएस ने भी कमान संभाल ली है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस व बसपा साथ मिलकर चुनावी समर में उतर रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि तीनों पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है।
हम आपको इन ​तीनों पार्टियों की ताकत व कमजोरी बता रहे हैं:-
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कांग्रेस
ताकत: 
- सिद्धारमैया के नेतृत्व में पार्टी की सरकार होने के चलते अन्न भाग्य, आरोग्य भाग्य, क्षेत्र भाग्य और इंदिरा कैंटीन जैसी योजनाओं का फायदा लोगों को मिल रहा है। इसका लाभ चुनाव में कांग्रेस को मिल सकता है।
- राज्य में सीएम ने एक नई राजनीति की शुरुआत करते हुए अहिंडा (पिछड़े), दलित और मुस्लिमों को साथ लाकर मजबूत स्थिति में खड़ा किया है। इसके बाद अलग धर्म के मुद्दे पर लिंगायत समुदाय को भी साधने की कोशिश हुई है। 
- कर्नाटक की राजनीति में देर से आने के बावजूद कांग्रेस ने सीएम और पार्टी का नेता सबकी पसंद से चुना। सिद्धारमैया एकमात्र सीएम हैं, जो पिछले चार दशकों में पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए हैं। 
- पंजाब के बाद कर्नाटक में भी खुद को बचाकर रखने के लिए कांग्रेस कड़ी तैयारी कर रही है।
कमजोरी: - सरकार की जनहित योजनाओं के प्रचार-प्रसार को लेकर सरकार और पार्टी के बीच तालमेल की कमी है। 
- बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं। 
- सिद्धारमैया की लीडरशिप को समर्थन के अलावा कई मुद्दों पर कांग्रेस के अंदर गुटबाजी है। 
- कई मामलों में पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा की मौजूदगी खेल बिगाड़ सकती है। 
- अहिंडा को मजबूत करने की सरकार की कोशिश के बाद सीएम पर बीजेपी की ओर से लगे हैं तुष्टीकरण के आरोप।
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बीजेपी
ताकत: - बीएस येदियुरप्पा को सीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश कर बीजेपी ने बड़े भगवा चेहरे के सहारे पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट किया है। 
- सिद्धारमैया की लिंगायत समुदाय को लुभाने की कोशिश के बावजूद इसका 15 से 17 प्रतिशत वोट शेयर बीजेपी के साथ जा सकता है क्योंकि येदियुरप्पा उनके समुदाय से हैं। राज्य की 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। 
- पीएम मोदी की अपील एक बार फिर काम आ सकती है। 

कमजोरी: - येदियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले। कांग्रेस ने तो उनको 'जेलबर्ड' तक कहा। 
- अमित शाह की कोशिश के बावजूद येदियुरप्पा और केएस ईश्वरप्पा के बीच गुटबाजी की स्थिति। दोनों ही शिवामोगा जिले से। 
- केंद्र सरकार के चौथे साल में पीएम मोदी पर ज्यादा भरोसा। 
- देवगौड़ा की अपील से ऐंटी-बीजेपी वोटों में बंटवारे की कम संभावना बचती है।
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जेडीएस
ताकत: - खासकर वर्किंग क्लास के बीच एचडी कुमारस्वामी की लोकप्रियता। 
- बीएसपी और लेफ्ट दलों के साथ पार्टी का गठबंधन। तेलुगू सुपरस्टार पवन कल्याण को साथ लाने की कोशिश। 
- ओल्ड मैसूर क्षेत्र में पार्टी को मजबूत करने के लिए बनते समीकरण।

कमजोरी: - पिता-पुत्र की पार्टी होने का वंशवादी टैग। 
- एक खास इलाके में सीमित रहते हुए पूरे कर्नाटक में पार्टी का मौजूद न होना और वोटरों को लुभाने वाले नेताओं की कमी। 
- कांग्रेस और बीजेपी के मुकाबले जेडी (एस) के पास रिसोर्सेज की कमी। 

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