'ओल्ड मैसूर' जहां से होकर गुजरता है कर्नाटक की सत्ता का रास्ता

Edited By Anil dev,Updated: 11 May, 2018 12:13 PM

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आने वाली 12 मई को कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर एक चरण में मतदान होगा और 15 मई को ये तय हो जाएगा कि अगले 5 साल के लिए सत्ता की बागडोर कौन संभालेगा।  ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ऐढ़ी चोटी का जोर लगा रहे है। चुनावों को लेकर जहां एक और राहुल...

नई दिल्ली: आने वाली 12 मई को कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर एक चरण में मतदान होगा और 15 मई को ये तय हो जाएगा कि अगले 5 साल के लिए सत्ता की बागडोर कौन संभालेगा।  ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ऐढ़ी चोटी का जोर लगा रहे है। चुनावों को लेकर जहां एक और राहुल गांधी ने राज्य के करीब 30 जिलों का दौरा कर 20 अलग अलग मठो और मंदिरों में माथा टेका। वहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी जनता को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे है। इसी बीच आज हम आपको बताने जा रहे है कर्नाटक के ऐतिहासिक शहर ओल्ड मैसूर के बारे में जहां से राज्य की सत्ता का रास्ता होकर गुजरता है।

राजनैतिक तौर पर क्यों खास है मैसूर 
मैसूर शहर के अंतर्गत 11 विधानसभा सीटें आती हैं  लेकिन ओल्ड मैसूर नाम से जो क्षेत्र है उसके तहत आठ जिले और 52 विधानसभा सीटें आती हैं। इस इलाके की पहचान पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के गढ़ के रुप में जाना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीएस को र्जाय में 40 सीटें मिली थी जिसमें से 20 सीटें ओल्ड मैसूर नाम से मिलीं थी। देवगौड़ा जिस जाति वोक्कालिग से ताल्लुक रखते हैं उसका इस इलाके में वार्चस्व है। लेकिन इस इलाके में  बैकवर्ड, दलित और मुस्लिम समीकरण के बूते कांग्रेस जेडीएस से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। 

2013 में कांग्रेस को मिली थी इतनी सीटें
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इस रीजन से 25 सीटों पर जीत मिली थी। इसी रीजन से 2014 में लोकसभा चुनाव में 34 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को बड़त हासिल हुई थी। हरअसल इस पूरे इलाके में कांग्रेस और जेडीएस के बीच ही मुकाबला रहता है। बीजेपी इस रीजन में कमजोर है क्योंकि यहां बीजेपी के वोट बैंक माने जाने वाले लिंगायत की संख्या कम है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां पूरे देश में मोदी लहर थी तब इस इलाके में बीजेपी को मात्र 10 सीटें ही अपने नाम कर पाई थी। इस बार भी जो तस्वीर दिख रही है उसमें लड़ाई कांग्रेस और जेडीएस के बीच ही लड़ाई दिख रही है। बीजेपी के लिए इस रीजन को लेकर कोई खास परेशान भी नहीं है क्योंक् बीजेपी को पूरा यकीन है कि उसके पास इस रीजन को गवाने जैसा कुछ भी नहीं है। इस रीजन से उसे जो भी मिलेगा उससे उसका फायदा ही होगा। बीजेपी की नजर कांग्रेस के दलित वोट के साथ साथ जेडीएस के अपर कास्ट वोटबैंक पर भी है।

मोदी सरकार को लेकर क्या सोचती है इस रीजन की जनता
यहां के वोटर में मोदी को लेकर जिग्यासा तो है लेकिन वो बीजेपी सरकार के 2008 के अनुभव से ज्यादा खुश नहीं है। इतना ही नहीं यहा के लोगों को लगता है कि जेडीएस अकेले ही बहुमत हासिल कर लेगी। कांग्रेस को लेकर यहां के वोटरों में नाराजगी देखने को नहीं मिल रही है।    

गठबंधन का खेल 
राजनीतिक गलियारों में खबरे जोरो पर है कि जेडीएस बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकती है। कांग्रेस ने भी इस बात को ये कहते हुए मजबूती दे दी है कि बीजेपी और जेडीएस दोनों साथ में गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही है। लेकिन यो वो इलाका है जहां जेडीएस और बीजेपी में तनातनी है। जेडीएस को लगता है कि उसके कारण बीजेपी यहा मजबूत हो सकता है। वहीं इस इलाके में अपनी बढ़त बनाने के लिए कांग्रेस जेडीएस- बीजेपी के साथ रिश्तों को हवा दे रही है। 

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