Edited By Anil dev,Updated: 20 May, 2019 11:26 AM
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान खत्म हुआ। अब आंकड़ों का गुणा-गणित जारी है। तमाम एक्जिट पोल फिर केंद्र में मोदी सरकार बनते हुए दिखा रहे हैं। लेकिन आंकड़े कितने सटीक हैं, यह कहना आसान नहीं है। कम से कम इसके पहले के चुनावों के एग्जिट पोल का विश्लेषण...
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान खत्म हुआ। अब आंकड़ों का गुणा-गणित जारी है। तमाम एक्जिट पोल फिर केंद्र में मोदी सरकार बनते हुए दिखा रहे हैं। लेकिन आंकड़े कितने सटीक हैं, यह कहना आसान नहीं है। कम से कम इसके पहले के चुनावों के एग्जिट पोल का विश्लेषण करने से यह तो साफ हो जाता है कि ये आंकड़े वास्तविक परिणाम से काफी दूर रहे हैं। वैसे हर एग्जिट पोल को 5 फीसदी कम या ज्यादा के तौर पर लेकर चला जाता है। लेकिन 2004 और 2014 के लोकसभा चुनाव के एक्जिट पोल वास्तविकता से काफी दूर रहे। 2014 में केवल चाणक्य का एग्जिट पोल ही वास्तविक परिणाम के करीब रहा।
2004 में जब सारे एग्जिट पोल एनडीए को 248 से 290 के बीच दिखा रहे थे तब उसे केवल 159 सीटें मिली थीं। इससे साफ है कि लोगों ने पांच साल की अटल बिहारी वाजपेयी नीत एनडीए के इंडिया साइनिंग अभियान से प्रभावित थे, लेकिन आम जनता का मूड उसके उलट निकला। वहीं 2014 में जब एग्जिट पोल एनडीए को 280-290 के इर्दगिर्द ही रखे हुए थे, तब वह 336 पर जा पहुंची। हालांकि चाणक्य ने 340 सीटें दी थी, जो कि वास्तविकता के करीब रहा। 2014 का चुनाव ऐसे हालात में हुए थे, जब केंद्र में दस साल की यूपीए सरकार रह चुकी थी, जिसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के साथ ही आए दिन भ्रष्टाचार के मामले लगातार निकल कर सामने आ रहे थे। उसी दौरान अन्ना आंदोलन चला और गुजरात मॉडल को लेकर भाजपा ने मोदी की ब्रांडिंग की थी। तब भी एग्जिट पोल एनडीए को बहुमत देते नहीं दिखे थे।
इसके पहले 1998 का लोकसभा चुनाव तब हुआ था, जब केंद्र में दो साल के भीतर तीन प्रधानमंत्री बन चुके थे। आर्थिक स्थिति उस हालत में पहुंच गई थी कि देश का सोना भी गिरवी रखना पड़ा था। उस वक्त ज्यादातर एक्जिट पोल में भाजपा गठबंधन को 214 से 249 सीटें दिखाया था जो वास्तविक परिणाम 252 के करीब ही रहा। 1999 में भी एग्जिट पोल एनडीए को 300 से 336 दिखा रहे थे और वास्तविक परिणाम 296 में रहा था। तब क्षेत्रीय दलों के समर्थन से भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में दूसरी बार सरकार बनाई थी। हालांकि एआईएडीएमके समर्थन वापस ले लेने के कारण वाजपेयी सरकार 13 महीने में ही गिर गई थी और एक बार फिर देश चुनाव में झोक दिया गया था।
वाजपेयी ने अपने 13 महीने की सरकार के दौरान ही 1998 में पोखरण विस्फोट किया था, इसके बाद भी 1999 के चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत नहीं पा सकी और जेडीयू, डीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर सत्ता में पहुंची। इस बार वाजपेयी ने 5 साल पूरा किया और कारगिल युद्ध भी लड़ा बावजूद इसके 2004 में सत्ता में वापसी नहीं कर पाए थे।