Edited By vasudha,Updated: 05 Sep, 2018 02:10 PM
उच्चतम न्यायालय ने लेखक एस हरीश के मलयाली उपन्यास ‘मीशा’ को प्रतिबंधित करने से बुधवार को इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़...
नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने लेखक एस हरीश के मलयालम उपन्यास ‘मीशा’ को प्रतिबंधित करने से बुधवार को इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता एन राधाकृष्णन की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि किसी लेखक की कल्पना पर रोक नहीं लगायी जा सकती। लेखक की कल्पना को संरक्षण मिलना चाहिए।
हर किसी को अपने विचार रखने का अधिकार
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि संविधान में साफ स्पष्ट है कि किसी भी शख्स को अपने विचारों को रखने का अधिकार है। एक लेखक अपने चारों तरफ के वातावरण को देखता है, उसे अनुभव करता है और अपनी कल्पना को शब्दों के जरिये बयां करता है। आप किसी शख्स का विरोध तो कर सकते हैं लेकिन आपको उसे गलत ठहराने के लिए तार्किक आधार पर अपनी बात कहनी होगी।
हिंदूवादी संगठनों ने किया उपन्यास का विरोध
उल्लेखनीय है कि मलयालम लेखक एस हरीश के उपन्यास पर कुछ हिंदूवादी संगठनों को ऐतराज था। उपन्यास मीशा के कुछ अंश सोशल मीडिया में वायरल हो गए थे। जुलाई के दौरान ‘मीशा’ के तीन अध्याय मलयालम साप्ताहिक मातृभूमि में प्रकाशित हुए थे। लेकिन इसके बाद एस हरीश को हिंदूवादी संगठनों की धमकियां मिलने लगीं और उन्होंने 21 जुलाई को अपना उपन्यास वापस ले लिया। हालांकि इस फैसले के बाद केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन सहित राज्य के कई जाने-माने लेखक उनके समर्थन में आए थे।