चुनावी साल में मोदी सरकार को खर्च का संकट

Edited By Seema Sharma,Updated: 04 Jul, 2018 09:46 AM

modi government s spending crisis in election year

चुनावी साल में लोकलुभावन वायदों को पूरा करने के लिए हर राजनीतिक दल हाथ खोलकर खर्च करते हैं। लेकिन इस बार मोदी सरकार के सामने खर्च के लिए जरूरी धन की उपलब्धता का संकट है। इसका एक प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में तेजी

नई दिल्ली: चुनावी साल में लोकलुभावन वायदों को पूरा करने के लिए हर राजनीतिक दल हाथ खोलकर खर्च करते हैं। लेकिन इस बार मोदी सरकार के सामने खर्च के लिए जरूरी धन की उपलब्धता का संकट है। इसका एक प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में तेजी तो है ही जिससे रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। दूसरी बड़ी चुनौती केंद्र सरकार के लिए बजटीय खर्चों को पूरा करने के लिए बाजार से पर्याप्त धन जुटाने की है। राज्य सरकारें भी बाजार से धन जुटाने को लेकर परेशान हैं। चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में केंद्र सरकार ने सरकारी प्रतिभूतियों (सिक्योरटीज) की बिक्री से 1,44.000 करोड़ रुपए जुटाए हैं। पिछले साल इसी अवधि में सरकार ने 1,83,000 करोड़ रुपए जुटाये थे। सरकारी प्रतिभूतियों से सरकार ने पूंजी जुटाने का जो लक्ष्य रखा था अंडर सब्सक्रिब्सन के चलते वह लक्ष्य हासिल नहीं हो सका।

सरकार सिक्योरिटीज से पर्याप्त धन जुटाने में असफल तो रही है जो धन उसे मिला भी वह पिछले साल की तुलना में ज्यादा ब्याज दर पर हासिल हुआ है। दस वर्ष के सरकारी बॉन्ड की जो अंतिम नीलामी 29 जून को हुई थी उस पर 7.89 प्रतिशत सालाना ब्याज दर था। पिछले साल यह बॉन्ड सरकार ने 6.52 प्रतिशत ब्याज पर नीलाम किया था। इस तरह सरकार को बाजार से महंगी दर पर भी पर्याप्त पैसा नहीं मिल पा रहा है। 

सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश में न तो बैंक पर्याप्त रुचि ले रहे हैं और न ही विदेशी निवेशक। अमरीकी फेडरल रिजर्व बैंक तथा यूरोपीय सेंट्रल बैंक अपनी नीति को आसान बना रहे हैं। इसके चलते डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत गिर रही है। इसके चलते विदेशी निवेशक भारतीय पूंजी बाजार से  पैसा निकाल रहे हैं। वर्ष 2017 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय प्रतिभूति में 23 बिलियन डॉलर निवेश किया था जो बिकवाली के चलते अब घटकर सिर्फ 6 बिलियन डालर के आसपास रह गया है।

सरकारी बॉन्ड में सबसे अधिक पैसा बैंक लगाते रहे हैं। वर्तमान में बैंकों के पास भी नोटबंदी के बाद जैसे हालात नहीं हैं। बैंकों में ऋण का कारोबार 12.7 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। हाल ही में ब्याज दरों में वृद्धि के चलते बैंक भी सरकारी बॉन्ड में कम ब्याज दर पर निवेश को फायदेमंद नहीं मान रहे हैं। ऐसे में विकास कार्यों व सरकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए बाजार से पैसा जुटाना मोदी सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण बन गया है। नतीजतन सरकार के चुनावी साल में खर्च को लेकर हाथ बंधे होंगे।

मोदी सरकार ने बजट में पूंजी बाजार से 605539 करोड़ रुपए वर्ष 2018-19 में जुटाने का लक्ष्य रखा था। सामान्यत: सरकार पहली छमाही में ही साठ फीसदी पूंजी बाजार से हासिल कर लेती है क्योंकि दूसरी छमाही में निजी क्षेत्र में पूंजी की मांग बढ़ जाती है। लेकिन इस साल सरकार ने लक्ष्य का 47.56 प्रतिशत ही पहली छमाही में पूंजी जुटाने का लक्ष्य रखा है। ऐसा बॉन्ड मार्केट में चल रही गिरावट को देखते हुए किया गया है। जिस तरह अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का दबाव है यह लक्ष्य भी हासिल करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। इस सबका असर चुनावी साल में मोदी सरकार के कामकाज पर भी पडऩे की संभावना है।

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