महाराष्ट्र: हाईकोर्ट का राज्य सरकार को निर्देश, कोरोना पीड़ितों के परिजनों के अनुग्रह राशि के दावे लंबित न रखें

Edited By Anil dev,Updated: 31 Jan, 2022 04:50 PM

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बम्बई उच्च न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को एक अंतरिम आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि वह कोविड-19 पीड़ितों के परिजनों द्वारा अनुग्रह राशि के दावों के लिए किए गए आवेदनों को केवल इसलिए लंबित नहीं रखे, क्योंकि उन्हें ऑनलाइन दायर नहीं किया...

नेशनल डेस्क: बम्बई उच्च न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को एक अंतरिम आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि वह कोविड-19 पीड़ितों के परिजनों द्वारा अनुग्रह राशि के दावों के लिए किए गए आवेदनों को केवल इसलिए लंबित नहीं रखे, क्योंकि उन्हें ऑनलाइन दायर नहीं किया गया है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त के नेतृत्व वाली पीठ ने इस अंतरिम आदेश के साथ ही महाराष्ट्र सरकार, बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और केंद्र सरकार को जनहित याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इस याचिका में उन लोगों को भी अनुग्रह राशि का भुगतान करने का राज्य सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है जिन्होंने राज्य सरकार के ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम के बजाय प्रत्यक्ष या डाक से आवेदन दाखिल किये हैं। 

महाराष्ट्र सरकार की वकील पूर्णिमा कंथारिया ने अदालत को बताया कि राज्य को मुंबई उपनगरीय और शहर के इलाकों में प्रत्यक्ष रूप से या डाक से अनुग्रह राशि भुगतान के लिए कुल 114 आवेदन प्राप्त हुए थे और इनमें से 54 आवेदकों से अधिकारियों ने ऑनलाइन प्रक्रिया में सहायता के लिए संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि ये आवेदन अब बीएमसी के पास लंबित हैं। कंथारिया ने कहा कि राज्य 14 आवेदकों के ठिकाने का पता लगाने में असमर्थ है और इसलिए, आवेदन करने के ऑनलाइन तरीके से उनकी सहायता करने में असमर्थ था। अदालत ने कंथारिया से पूछा कि क्या राज्य सरकार यह बयान देने के लिए तैयार है कि वह किसी आवेदन को केवल इसलिए खारिज नहीं करेगी क्योंकि किसी ने भौतिक रूप से आवेदन किया है। हालांकि, कंथारिया ने कहा कि ऑनलाइन पोर्टल को महाराष्ट्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के अनुसार तैयार किया है और यह आवेदकों के लाभ के लिए है। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार उन लोगों को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है जो ऑनलाइन आवेदन प्रणाली के साथ सहज नहीं थे। 

याचिकाकर्ता की वकील, सुमेधा राव ने अदालत को बताया कि इस तरह के अनुग्रह भुगतान का दावा करने वालों में से कई झुग्गी-झोपड़ी या गरीब लोग थे, जो ऑनलाइन दावे दाखिल करने और दस्तावेजों को संलग्न करने में सहज नहीं थे। राव ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि इसके लिए आवेदन करने के 30 दिनों के भीतर अनुग्रह राशि का भुगतान किया जाना चाहिए। लगभग 50 लोगों ने पोर्टल बनने से पहले पिछले साल अक्टूबर और नवंबर के बीच पूरे महाराष्ट्र से भुगतान के लिए प्रत्यक्ष रूप से आवेदन किया था।'' उन्होंने बताया कि इन आवेदनों को संबंधित कलेक्टर ने स्वीकार कर लिया है, लेकिन दावेदारों को अभी तक भुगतान नहीं किया गया है। 

उन्होंने कहा, ‘‘पोर्टल बनाने में देरी हुई। राज्य को पोर्टल बनने से पहले भौतिक रूप से आवेदन करने वालों के लिए भुगतान में देरी न करने दें।'' हालांकि, कंथारिया ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं को प्रत्यक्ष रूप से आवेदन स्वीकार करने पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि ऑनलाइन प्रक्रिया आसान थी और यह एक सुविधाजनक और अधिक सुव्यवस्थित तरीका था। अदालत ने तब सभी प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि अंतरिम उपाय के माध्यम से, जिन्होंने भौतिक रूप से आवेदन किया था, उन्हें ऑनलाइन आवेदन करने के लिए राज्य के अधिकारियों द्वारा सहायता प्रदान की जानी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि आवेदकों की सहायता के लिए राज्य द्वारा "गंभीर कदम" उठाए जाने चाहिए। अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, अगर वे ऑनलाइन आवेदन करने की स्थिति में नहीं हैं, तो ऑनलाइन आवेदनों के आधार पर उनके आवेदनों को लंबित नहीं रखें।'' अदालत इस जनहित याचिका पर आगे 14 फरवरी को सुनवाई करेगी। 

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