किसान आंदोलन: क्या कृषि कानूनों पर फंस गई है मोदी सरकार? ये हैं 5 बड़ी वजहें

Edited By Anil dev,Updated: 22 Jan, 2021 11:58 AM

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तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को समाप्त करने के एक प्रयास के तहत केंद्र सरकार ने आंदोलनकारी किसान संगठनों के समक्ष इन कानूनों को एक से डेढ़ साल तक निलंबित रखने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन का...

नेशनल डेस्क: तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को समाप्त करने के एक प्रयास के तहत केंद्र सरकार ने आंदोलनकारी किसान संगठनों के समक्ष इन कानूनों को एक से डेढ़ साल तक निलंबित रखने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन का प्रस्ताव रखा। हालांकि किसान संगठनों ने बृहस्पतिवार को तीन कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को डेढ़ साल तक स्थगित रखने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन संबंधी केन्द्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में किसान नेताओं ने सरकार के इस प्रस्ताव पर सिंघू बॉर्डर पर एक मैराथन बैठक में यह फैसला लिया गया। वहीं राजनीतिक गलिायरों में चर्चा छिड़ी हुई है कि दबाव के चलते मोदी सरकार कृषि कानूनों को होल्‍ड पर रखने के प्रस्‍ताव ला रही है। आईए जानते हैं वो पांच कारण जिसकी वजह से किसानों के मनाने के लिए सरकार ऐसे प्रस्‍ताव लाने के लिए मजबूर हो रही है। 

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बीजेपी को है संसद सत्र में घिरने का डर
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विपक्ष दल पूरी तरह आंदोलन को अपना समर्थन करता हुआ दिखाई दे रहा है। वहीं संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से शुरू होने वाला है। विपक्ष की पूरी तैयारी है कि सरकार को कृषि कानूनों और दिल्‍ली की सीमाओं पर जारी प्रदर्शन को लेकर घेर लिया जाए।  ऐसे में बीजेपी संसद में संसद में अलग-थलग पड़ सकती है। इसलिए मोदी सरकार किसी तरह से 29 बजट सत्र से पहले किसानों का मसला हल करना चाहती है ताकि विपक्ष दल को चुप करा सके। 

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ट्रैक्‍टर परेड होगी सरकार के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात
मोदी सरकार कभी नहीं चाहती कि गणतंत्र दिवस के मौके पर कसान ट्रैक्‍टर रैली निकालें। क्यों कि ऐसा करने पर सरकार  अगर ट्रैक्‍टर परेड निकलती है तो यह सरकार के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात होगी। वहीं अगर सुप्रीम कोर्ट की बात करें तो उन्होंने भी साफ कह दिया है कि किसानों की ट्रैक्‍टर रैली पर आखिर फैसला दिल्ली पुलिस को करना है। ऐसे में सरकार गणतंत्र दिवस से पहले ऐसा प्रस्ताव लाना चाहेंगी जिससे किसान मान जाएं। 

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संसद से पास कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की रोक 
सरकार को उम्मीद नहीं थी कि संसद से पास कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा देगी। दरअसल 12 जनवरी को अपने अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने तीनों नए कानूनों को लागू किए जाने पर रोक लगा दी थी। ऐसा कम ही होता है जब संसद से पास कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगाए। जब सुप्रीम कोर्ट ने एक एक्‍सपर्ट कमिटी बनाई तो सरकार को लगा कि यह इन विरोध-प्रदर्शनों को खत्‍म करने का एक रास्‍ता हो सकता है। हालांकि कई नेताओं ने से इसे न्‍यायिक सीमा का अतिक्रमण करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने के फैसला सरकार के लिए और मुसीबत का सबब बन गया। 

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पार्टी के भीतर से उठने लगी आवाजें
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जहां महीनों से किसान सड़को पर आंदोलन कर रहे हैं वहीं अब पार्टी के भीतर से आवाजें उठनी शुरू हो गई है। पार्टी के कई नेता यह कह चुके हैं कि सरकार को इन कानूनों पर और चर्चा करनी चाहिए थी ताकि किसी तरह की कोई मुसीबत खड़ी न होती। अब सरकार को यह डर सताने लगा है कि पार्टी के भीतर से कईं नेता इन बिलों का समर्थन करते हुए बोलने का मौका मिल सकता है।

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अमित शाह की बड़ी चूक
 इस आंदोलन से निपटने में सबसे बड़ी चूक अमित शाह की रही है। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) आंदोलन के समय शाह ने जिन तरीकों का इस्तेमाल किया था, उन्हें भरोसा था कि उसी तरह की तिकड़मों के जरिए किसान आंदोलन से भी निपटने में कामयाबी मिल जाएगी। सीएए-एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) आंदोलन के समय हिंदू-मुसलमान का सांप्रदायिक कार्ड खेलकर सरकार ने रास्ता निकाल लिया था। इसके साथ ही लगभग उसी समय कोविड के प्रकोप ने उस आंदोलन की वापसी करा दी थी। लेकिन इस आंदोलन में वह हथियार काम नहीं आया। बल्कि खालिस्तानी कार्ड खेलकर सरकार ने आंदोलन की धार तेज ही कर दी।


 

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