मलेशिया समिटः भारत के खिलाफ अपने ही बुने जाल में फंसे इमरान

Edited By Tanuja,Updated: 15 Dec, 2019 12:09 PM

pakistan prime minister imran khan arrives in saudi arabia

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भारत के खिलाफ अपने ही बुने् जाल में बुरी तरह फंस गए हैं। मामला मलेशिया में ...

दुबई/इस्लामाबादः पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भारत के खिलाफ अपने ही बुने् जाल में बुरी तरह फंस गए हैं। मामला मलेशिया में होने वाले एक समिट का है जिसको लेकर पाक को सऊदी अरब के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है। इन्हीं आशंकाओं और सऊदी अरब की सख्त नाराजगी के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान शनिवार को एक दिन की यात्रा पर सऊदी अरब पहुंचे। इमरान यहां सऊदी प्रिंस सलमान बिन अब्दुलअजीज से मुलाकात करेंगे। एक लिहाज से यह यात्रा बेहद अहम मानी जा रही है।

 


क्या है मलेशिया समिट का मामला
दरअसल, 18 से 20 दिसंबर तक मलेशिया में एक सम्मेलन होने वाला है। इसमें पाकिस्तान, मलेशिया, तुर्की और ईरान के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा लेंगे। सऊदी अरब और यूएई इसे आर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) के लिए चुनौती मानता है। इमरान प्रिंस सलमान की नाराजगी दूर करने और उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं। इमरान मई से दिसंबर मध्य तक चार बार सऊदी अरब की यात्रा कर चुके हैं। इस एक दिन की यात्रा का उद्देश्य प्रिंस सलमान बिन अब्दुलअजीज की नाराजगी दूर करके उनको यह समझाने की कोशिश करना है कि पाकिस्तान की अन्य मुस्लिम देशों से मेलजोल बढ़ाने कोशिशों के बावजूद उसके सऊदी अरब से गहरे रिश्ते बरकरार हैं।
  

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भारत से पंगा लेकर ऐसे फंसा पाकिस्तान
ओआईसी मुस्लिम देशों का सबसे मजबूत संगठन है। कश्मीर मुद्दे पर इसने पाकिस्तान के रुख का समर्थन न करते हुए भारत का पक्ष लिया। अगस्त में यूएन महासभा में मलेशिया और तुर्की ने ही पाकिस्तान का समर्थन किया। इसी दौरान पाकिस्तान, मलेशिया और तुर्की ने मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में 18 से 20 दिसंबर तक एक सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया। बाद में कतर भी इसमें शामिल होने तैयार हो गया। सऊदी और यूएई दोनों को लगता है कि इमरान मलेशिया के पीएम महातिर मोहम्मद और तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन के साथ मिलकर ओआईसी के समांतर संगठन खड़ा करना चाहते हैं। यह दोनों देशों को सीधी चुनौती लगी।

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सऊदी से क्यों घबराए हैं इमरान ?
सऊदी और यूएई दोनों ने कुआलालम्पुर समिट पर सख्त नाखुशी जाहिर की। पाकिस्तान को इस प्रतिक्रिया का अंदाजा नहीं था। घबराए इमरान ने पहले विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को रियाद भेजा। ‘द डॉन’ के मुताबिक, कुरैशी सऊदी प्रिंस और प्रशासन को मनाने में कामयाब नहीं रहे तो इमरान को खुद वहां जाने का फैसला करना पड़ा। हालांकि, अब यात्रा का कार्यक्रम उलझता नजर आ रहा है। अमेरिका भी सऊदी और यूएई के साथ है। पाकिस्तान की दिक्कत ये है कि वो अब मलेशिया समिट से पीछे भी नहीं हट सकता। और अगर वो आगे बढ़ता है तो सऊदी-यूएई समेत दूसरे मुस्लिम देश उससे दूर हो सकते हैं। यह हर लिहाज से उसके लिए घाटे का सौदा होगा।

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इमरान से प्रिंस सलमान की नाराजगी की वजह
उल्लेखनीय है कि 18 दिसंबर से कुआलालंपुर में हो रहे मुस्लिम देशों के एक अन्य सम्मेलन में पाकिस्तान की भागीदारी से सऊदी अरब काफी नाराज है। पाकिस्तान के ही दूसरे करीबी मददगार मलेशिया के प्रधानमंत्री डॉ. तुन महातिर मुहम्मद ने कुआलालंपुर सम्मेलन का आयोजन किया है। इसे सऊदी अरब इस्लामिक सहयोग संगठन (ओ.आई.सी.) के समानांतर संगठन खड़ा करने की कोशिश के रूप में देख रहा है। इस सम्मेलन में तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप एर्डोगन समेत कतर के शेख तमीम बिन हमद अल-थानी और ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी हिस्सा ले रहे हैं।

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इंडोनेशिया भी दबाव में
इंडोनेशिया के राष्ट्राध्यक्ष जोको विडोडो के भी इसमें भाग लेने की उम्मीद थी, लेकिन माना जा रहा है कि दबाव के चलते ही उन्होंने खुद न आकर अपने प्रतिनिधि को भेजा है। ओ.आई.सी. मुस्लिम देशों का एक बेहद मजबूत संगठन रहा है लेकिन इसके प्रभाव और उपयोगिता को लेकर बनते-बिगड़ते समीकरणों से मुस्लिम देशों में पिछले कुछ वर्षों से खींचतान चल रही है। जद्दाह मुख्यालय वाले ओ.आई.सी.की प्रत्यक्ष-परोक्ष बागडोर सऊदी अरब के हाथ में ही रही है।

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दो नांवों पर एक साथ सवारी कर रहे इमरान
इमरान इस समय दो नांवों पर एक साथ सवारी कर रहे हैं जो उनको डुबा भी सकती है। इमरान रियाद में मान-मनौव्वल करने के साथ-साथ ही कुआलालंपुर सम्मेलन के प्रति बेहद आशावान हैं।  उन्हें लगता है कि मुस्लिम विश्व की तमाम चुनौतियों के समाधान के लिहाज से यह शिखर सम्मेलन कारगर साबित हो सकता है। इधर इमरान खान ने पिछले कुछ समय में ईरान और सऊदी अरब के बीच मध्यस्थता करने की भी कोशिश की है जो खास सिरे नहीं चढ़ीं। इसी सब उठापटक के बीच इमरान खान अपने दोनों करीबी मददगारों को एकसाथ साधने की कवायद करते हुए मुस्लिम देशों के एक भरोसेमंद मध्यस्थ की भूमिका को बनाए रखने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं।






 

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