Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Apr, 2018 08:21 AM
धीमी गति से मगर विश्वसनीय तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मोदी विरोधी मोर्चा आकार ले रहा है। यह बात स्पष्ट तौर पर उभर रही है कि राकांपा नेता शरद पवार इस खेल के प्रमुख खिलाड़ी बनते जा रहे हैं। वे दिन लद गए जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शरद...
नेशनल डेस्कः धीमी गति से मगर विश्वसनीय तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मोदी विरोधी मोर्चा आकार ले रहा है। यह बात स्पष्ट तौर पर उभर रही है कि राकांपा नेता शरद पवार इस खेल के प्रमुख खिलाड़ी बनते जा रहे हैं। वे दिन लद गए जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शरद पवार निजी तौर पर सुखद क्षणों की सांझेदारी किया करते थे तथा सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे से अपनी एकता स्पष्ट करते थे। समय अब बदल गया है, विशेषकर तब जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह संकेत दिया कि वह 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं। आलोचकों ने राहुल के नेतृत्व की गुणवत्ता पर कटाक्ष किए। राहुल गांधी ने कुछ महीने पहले यह घोषणा की थी कि कांग्रेस का अपने बल पर 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने का लक्ष्य नहीं है।
बाद में गांधी परिवार के युवा नेता ने शरद पवार को अपनी एक बैठक के दौरान बताया कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं, यद्यपि विपक्ष में कांग्रेस एकल सबसे बड़ी पार्टी होगी। पवार उनके इस स्पष्ट बयान से हैरान हुए और बड़े धैर्यपूर्ण ढंग से उनकी बात सुनी। राहुल ने यहां तक कह दिया कि उनकी पार्टी 2019 में प्रधानमंत्री पद का दावा नहीं करेगी और उस किसी भी पार्टी या नेता का समर्थन करेगी जो गठबंधन को सफलतापूर्वक चला सके। गठबंधन के सांझेदारों की विश्वसनीयता बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अतीत के अनुभवों में 1967, 1977, 1989, 1996 और 1998 में ये विफल रहे इसलिए गठबंधन के नियम और शर्तें स्पष्ट होनी चाहिएं। कोई बात छिपाकर नहीं रखनी चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अगर गठबंधन जीतता है तो कांग्रेस पार्टी सरकार में उसको स्थिरता प्रदान करने के लिए शामिल होगी।