और भी हैं कुछ नदियों के विवाद

Edited By ,Updated: 18 Mar, 2016 04:29 PM

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सुप्रीम कोर्ट ने एसवार्इएल मुद्दे पर कहा था कि पंजाब सरकार इस मामले में कोर्इ कदम न उठाए और नहर को पहले वाली स्थिति में बनाए

सुप्रीम कोर्ट ने एसवार्इएल मुद्दे पर कहा था कि पंजाब सरकार इस मामले में कोर्इ कदम न उठाए और नहर को पहले वाली स्थिति में बनाए रखे। इस फैसले के बाद नहर को बंद करने के कार्य को रोका जाना था, लेकिन बादल सरकार ने इसे दरकिनार करते हुए अपना प्रस्ताव को पास कर दिया। वह कह चुके हैं कि इस नदी के पानी पर पंजाब का पूरा अधिकार इसकी हिफाजत के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हैं। हरियाणा को कोर्ट के निर्देश से राहत मिली,लेकिन पंजाब के कड़े रवैये को देखते हुए उसकी चिंता बढ़ गई है। 

अंतर्राष्ट्रीय रायपेरियन कानून के तहत नदी जहां से बहती हो उस पर जमीन के स्वामी का अधिकार होता है। केवल वही उसका उपयोग करता है। अगर उसके लिए नदी का पानी के इस्तेमाल करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है तो वह इसे अपने साथ जुड़े भूखंड या किसी और को नहीं दे सकता है। वह इस पानी के उचित उपयोग के लिए स्वतंत्र है। प्रकाश सिंह बादल इसी कानून का हवाला देकर सतलुज का पानी देने को राजी नहीं हैं।

दिलचस्प बात यह है​ कि भारत ने पाकिस्तान के साथ जल संधि की हुई है, लेकिन हरियाणा और पंजाब के अलावा देश के कुछ अन्य राज्यों में भी नदी विवाद चल रहा है। इसी में कड़ी में आता है माही नदी जल विवाद। यह राजस्थान और गुजरात के बीच शुरू हुआ। इन दोनों राज्यों के बीच 1996 में समझौता हो गया, लेकिन गुजरात सरकार राजस्थान को पानी देने में ढिलाई दिखाती रही है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच 1957 से कृष्णा जल विवाद है। यह नदी महाराष्ट्र में 303 किमी, आंध्र में 1200 व कर्नाटक में 480 किसी की यात्रा कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र के बीच नर्मदा जल विवाद चल रहा है। नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध और अन्य बांध विवादों में रहे हैं। वंसधारा नदी के पानी के लिए उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के बीच विवाद है। इसका कारण रहा आंध्र का नदी पर बांध बना लेना। 

केरल कर्नाटक, तमिलनाडु और पुडुचेरी के बीच कावेरी जल विवाद है। इस झगड़े का कारण 1892 और 1924 में किए गए दो समझौते बताए जाते हैं। दोनों समझौते मद्रास प्रेसिडेंसी और तत्कालीन मैसूर राज्य के बीच हुए थे। वर्ष 1995 में पांच राज्यों हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश व हरियाणा के बीच यमुना जल पर समझौता हुआ था। इसके बावजूद इन राज्यों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर कई बार विवाद हो जाता है। 

छत्तीसगढ़ के ज्यादातर जल विवाद आंध्रप्रदेश, ओडिशा और झारखंड से हैं। बेलगाम पर कर्नाटक और महाराष्ट्र में पिछले कई सालों से विवाद है। यह अब कर्नाटक का हिस्सा है, लेकिन महाराष्ट्र भाषा के आधार पर इसकी मांग करता रहा है। मुना नदी के साथ लगते करीब 10 हजार एकड़ भूमि को लेकर हरियाणा व यूपी के गांवों में पिछले 36 सालों से टकराव है।

क्या नेता और अधिकारियों के साथ मिल बैठकर समस्याओं का सर्वमान्य समाधान नहीं खोज सकते। विभिन्न राज्यों के बीच जब कोई समस्या उत्पन्न हो जाए तो उसे सुलझाने के लिए विशेष तंत्र बनाया जाना चाहिए। उस पर सचिव स्तरीय अधिकारियों के बीच परस्पर बातचीत हो। कोई हल न हो तो मंत्री, मुख्यमंत्री विचार विमर्श करें। यदि फिर भी मामला उलझा ही रहे तो प्रधानमंत्री के स्तर पर ले जाना चाहिए। 

हालांकि केन्द्र हर मामले में हस्तक्षेप नहीं करता,लेकिन समाधान में मदद जरूर कर सकता है। इसका एक उदहरण है प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहाराव के समय कावेरी जल के मुद्दे पर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच हिंसा हुई थी। तब सरकार ने इसी प्रकार का तीन चरणों वाला समाधान तंत्र बनाया था। इसका एक अच्छा परिणाम भी मिला। कावेरी जल विवाद आज भी है लेकिन हिंसा अब नहीं होती। विवाद लंबे समय तक बने रहें तो उनसे निपटने के लिए संयम और संवाद जारी रहने चाहिए। 

भारत में राज्य नदियों के लिए भिड़ रहे हैं और एक मैकान नदी भी है, जो  चीन, म्यांमार, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड यानि छह देशों के बीच से बह रही है। इन देशों ने मैकान नदी आयोग बना कर विवाद को सुलझा लिया। वे मिलकर इस नदी के पानी का उपभोग करते हैं। उनमें कभी विवाद नहीं होता है। इसे समाधान की मानसिकता कहें या समझदारी की राह, उसे राजनीति से मुक्त रहना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो राजनीति से उठ कर सोचना चाहिए,ले​किन एक रोग ऐसा है जिसकी चपेट से कोई भारतीय दल नहीं बच पाया है। वह है वोट बैंक। इस बैंक को बचाने के लिए वे किसी भी स्तर पर उतर सकते हैं।

 

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