संत समाज का उद्घोष: राम का काज, नहीं कोई अपराध

Edited By vasudha,Updated: 01 Oct, 2020 10:47 AM

saint society statement on babri demolition case

बाबरी विध्वंस मामले में सी.बी.आई. की विशेष अदालत के बहुप्रतीक्षित फैसले का स्वागत करते हुए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने संत समाज की भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि राम के काज में कोई अपराध नहीं होता है। सनातन धर्म के अनुयायी...

नेशनल डेस्क: बाबरी विध्वंस मामले में सी.बी.आई. की विशेष अदालत के बहुप्रतीक्षित फैसले का स्वागत करते हुए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने संत समाज की भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि राम के काज में कोई अपराध नहीं होता है। सनातन धर्म के अनुयायी सत्य की राह पर चलते हैं और सत्य की हमेशा जीत होती है। 

 

महंत गिरि ने कहा कि अदालत ने भी माना कि बाबरी विध्वंस कोई सुनियोजित घटना नहीं थी और यह अचानक घटी घटना थी। न्यायालय ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। यह सच्चाई की जीत है जिसका संत समाज समेत पूरा देश स्वागत करता है। उन्होंने कहा कि न्यायालय के फैसले का सम्मान हर देशवासी को करना चाहिए और जो इसका आदर नहीं करता, उसे देशद्रोही कहना उचित होगा। उन्होंने कहा कि पूरा सनातन धर्म और हिंदू समाज इतना प्रसन्न है कि उसके मुख से जय श्री राम और महादेव के अलावा कुछ नहीं निकल रहा है।

 

केस की सुनवाई पूरी करके फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जज सुरेंद्र कुमार यादव को नहीं किया था रिटायर
28 बरस पुराने बाबरी मस्जिद विध्वंस केस का फैसला सुनाने वाले स्पैशल जज सुरेंद्र कुमार यादव की जिंदगी में ऐसा लगता है कि फैजाबाद रह-रहकर उनके पास लौटता रहा है। लखनऊ स्थित विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के पीठासीन अधिकारी की हैसियत से 30 सितम्बर, 2020 को उन्होंने इस मुकद्दमे का फैसला सुनाया।  फैजाबाद में एडीशनल मुंसिफ के पद की पहली पोस्टिंग  से शुरू हुआ उनका न्यायिक जीवन गाजीपुर, हरदोई, सुल्तानपुर, इटावा, गोरखपुर के रास्ते होते हुए राजधानी लखनऊ के जिला जज के ओहदे तक पहुंचा। अगर उन्हें विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के जज की जिम्मेदारी न मिली होती तो वे पिछले साल सितम्बर के महीने में ही रिटायर हो गए होते।

 

28 साल तक ऐसे चली कानूनी लड़ाई


6 दिसम्बर 1992 : विध्वंस हुआ अयोध्या पहुंचे करीब डेढ़ लाख कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहा दी।

05:15 बजे शाम को ढांचा पूरी तरह ध्वस्त होने के बाद राम जन्मभूमि थाने के प्रभारी पी.एन. शुक्ल ने अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकद्दमा दर्ज कराया। इसमें बाबरी मस्जिद गिराने का षड्यंत्र, मारपीट और डकैती की धाराएं लगाई गईं।

05:25 बजे शाम को एक अन्य पुलिस अधिकारी गंगा प्रसाद तिवारी ने 8 लोगों के खिलाफ राम कथा कुंज सभा मंच से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ धार्मिक उन्माद भड़काने वाला भाषण देकर बाबरी मस्जिद गिरवाने का मुकद्दमा दर्ज करवाया। अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा को नामजद किया गया।


8 दिसम्बर 1992 : गिरफ्तारी 
विध्वंस के बाद विवादित स्थल पर अस्थाई राम मंदिर बनाने के मामले में यू.पी. पुलिस ने अडवानी व अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया। मामले की जांच यू.पी.  पुलिस की सी.आई.डी. क्राइम ब्रांच ने शुरू की।
16 दिसंबर 1992 : आयोग गठित
केंद्र सरकार ने बाबरी विध्वंस की जांच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया
जनवरी 1993 : 47 और मुकद्दमे
अयोध्या विध्वंस में 47 अन्य मुकद्दमे दर्ज कराए गए, जिनमें पत्रकारों से लूटपाट और मारपीट जैसे आरोप थे।
फरवरी 1993 : आरोप पत्र दाखिल 
सी.आई.डी. ने अडवानी सहित आठों अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया, मामले की सुनवाई के लिए ललितपुर में विशेष अदालत स्थापित की गई, बाद में आवागमन की दिक्कत को देखते हुए अदालत रायबरेली ट्रांसफर कर दी गई। बाद में सरकार ने सभी 49 मामले जांच के लिए सी.बी.आई. को सौंप दिए।
9 सितम्बर 1993 : यू.पी.  सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के परामर्श से 48 मुकद्दमों की सुनवाई के लिए लखनऊ में विशेष अदालत का गठन किया। हालांकि इसमें रायबरेली की स्पैशल अदालत में चल रहा मामला शामिल नहीं था
8 अक्तूबर 1993 : सी.बी.आई. के अनुरोध पर रायबरेली की अदालत में चल रहा केस भी लखनऊ की स्पैशल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में जोड़ दिया गया। सी.बी.आई. ने इन सभी 49 मामलों में 40 लोगों को अभियुक्त बनाते हुए आरोप पत्र दायर किया। 
27 जनवरी 2003 : रायबरेली वाद में स्पैशल कोर्ट ने अडवानी समेत 8 लोगों के खिलाफ भड़काऊ भाषण का मुकद्दमा बहाल करने को कहा।
19 सितम्बर 2003 : रायबरेली के स्पैशल ज्यूडीशियल मैजिस्ट्रेट विनोद कुमार सिंह ने मामले से अडवानी को बरी करते हुए, अशोक सिंघल समेत बाकी सातों अभियुक्तों पर आरोप निर्धारण कर मुकद्दमा चलाने का निर्णय किया।
6 जुलाई 2005 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि पहली नजर में सभी आठों अभियुक्तों के खिलाफ मामला बनता है, इसलिए अडवानी को बरी नहीं किया जा सकता, इसके बाद रायबरेली वाले वाद में अडवानी पर भी मुकद्दमा बहाल हो गया। 
20 मई 2010 :  हाईकोर्ट के जस्टिस ए.के. सिंह ने सी.बी.आई. की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए लखनऊ की विशेष अदालत के अडवानी, कल्याण सिंह समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ मुकद्दमा स्थगित करने के आदेश को सही ठहराया
9 फरवरी 2011 : सी.बी.आई. ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की और अडवानी सहित सभी अभियुक्तों के खिलाफ विवादित ढांचा गिराने के षड्यंत्र व अन्य धाराओं का मुकद्दमा चलाने की मांग की।
19 अप्रैल 2017  : उच्चतम न्यायालय ने बाबरी विध्वंस मामले को लेकर रायबरेली की विशेष अदालत में चल रही कार्रवाई को लखनऊ स्थित सी.बी.आई. की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) में स्थानांतरित कर दिया। साथ ही पूर्व में आरोप के स्तर पर बरी किए गए अभियुक्तों के खिलाफ भी मुकद्दमा चलाने का आदेश दिया।  
30 मई 2017 : लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतम्भरा और विष्णु हरि डालमिया पर साजिश रचने का आरोप लगाया गया।
31 मई 2017 : बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अभियोजन की कार्रवाई शुरू हुई।


सुनवाई में आई तेजी

13 मार्च 2020
सी.बी.आई. की गवाही की प्रक्रिया तथा बचाव पक्ष की जिरह भी हुई पूरी। मामले में 351 गवाह और 600 दस्तावेजी साक्ष्य सौंपे।
4 जून 2020 
अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 113 के तहत अभियुक्तों के बयान दर्ज होना शुरू हुए। 
14 अगस्त 2020 
अदालत ने सी.बी.आई. को लिखित बहस दाखिल करने का आदेश दिया। 
31 अगस्त 2020  
सभी अभियुक्तों की ओर से अपना पक्ष दाखिल किया गया।
1 सितम्बर 2020  
दोनों पक्षों की मौखिक बहस पूरी हुई।
16 दिसम्बर 2020 
अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसले की तारीख घोषित की।
30 सितम्बर 2020 
विशेष सी.बी.आई. अदालत ने अपना फैसला सुनाया। सभी आरोपी बाइज्जत बरी हुए। 
 

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